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जेएलएफ के 18वें संस्करण ने एक बार फिर सार्थक संवाद के महत्व को सिद्ध किया

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जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ –वेदांता की प्रस्तुति, मारुति सुज़ुकी के सहयोग और वेदा द्वारा संचालित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 18वें संस्करण का समापन अत्यंत शानदार तरीके से हुआ, जिसमें दुनियाभर से लेखक, विचारक, और खेल एवं मनोरंजन जगत के प्रसिद्ध सितारे एक मंच पर आए। यह फेस्टिवल विचार, कहानी और संस्कृति के उत्सव का बेहतरीन प्रतीक बनकर उभरा। क्लार्क्स आमेर में आयोजित इस वर्ष के फेस्टिवल में 600 से अधिक वक्ताओं ने रोचक चर्चाओं, वाद-विवाद और प्रस्तुतियों में भाग लिया।

यह आयोजन न केवल स्थापित और उभरते साहित्यकारों को एक मंच पर लाया, बल्कि उन सभी को एकजुट किया, जो साहित्य की प्रेरक, चुनौतीपूर्ण और बदलाव लाने वाली क्षमता में विश्वास रखते हैं।

दिन की मुख्य झलकियाँ*
‘द रूट्स ऑफ़ रिदम रिमेन: ए जर्नी थ्रू ग्लोबल म्यूज़िक’ सत्र में प्रसिद्ध संगीत निर्माता जो बॉयड ने कैरोलाइन ईडन से चर्चा की। जो बॉयड इससे पहले पिंक फ़्लॉइड, निक ड्रेक और आर.ई.एम. जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम कर चुके हैं। उन्होंने अपनी नई किताब एंड दार रूट्स ऑफ रिदम रिमाइंन पर चर्चा की। बॉयड ने कहा,“मैं उस संगीत के बारे में लिख रहा हूँ, जिसे हम तथाकथित पश्चिमी दुनिया में सबसे अधिक जानने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तव में उसके बारे में कुछ नहीं जानते। सभी को रेगे, लैटिन म्यूज़िक, ब्राज़ीलियन सांबा, अर्जेंटीनी टैंगो, पूर्वी यूरोपीय जिप्सी संगीत और भारतीय संगीत पसंद है। यह किताब इन सभी शैलियों को साथ लेकर चलती है और हमारे संगीत में इन शैलियों के प्रवेश और उत्पत्ति को समझने का प्रयास करती है।” यह पुस्तक पश्चिमी लोकप्रिय संगीत पर वैश्विक प्रभावों और उसके इतिहास का भावनात्मक वर्णन करती है।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन की शुरुआत लेखक और अभिनेता मानव कौल के अपनी पहली लेखन यात्रा के के बारे में अनुभव साझा करने से हुई। ‘ए बर्ड ऑन माई विंडो सिल’ सत्र में उन्होंने कहा, “आप मुझे मेरे चेहरे के बजाय मेरे लेखन से ज्यादा पहचान सकते हैं।” उन्होंने किताबों, एकांत और अकेले यात्रा करने के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया। उन्होंने ‘चाय’ से जुड़ी अपनी यादों का भी ज़िक्र किया और बताया कि यह उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा कैसे बन गई, जो बाद में उनकी लेखनी का भी जरूरी पहलू बन गई। कौल ने बताया कि असली अनुभवों से मिली प्रेरणा ही उनके लेखन का आधार है। उन्होंने कहा, “शब्दों को आने देना होता है, और जब वे आते हैं, तो उससे सुंदर कुछ नहीं होता।” उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया, “मैं और मेरा दोस्त सलीम होशंगाबाद रेलवे स्टेशन पर बैठकर गुजरती ट्रेनों को देखा करते थे। हम हमेशा सोचते थे कि ये तेज़ रफ़्तार ट्रेनें कहाँ जा रही हैं, कहाँ समाप्त होती हैं। मैं उन सभी जगहों को देखना चाहता था, और आज भी मुझमें वही बच्चा ज़िंदा है, जो उन जगहों पर जाना और उन लोगों से मिलना चाहता है।”

बहुचर्चित सत्र ‘एम्पायर: उधम सिंह – द मैन एंड द मिथ’ में अनीता आनंद और विलियम डैलरिंपल ने अपने लोकप्रिय पॉडकास्ट ‘एम्पायर’ को लाइव श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। सोमवार सुबह, इस सत्र में आनंद ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उधम सिंह की न्याय की 20 साल लंबी खोज के बारे में बताया। उन्होंने अपने परिवार का इस त्रासदी से जुड़ाव बताते हुए उस क्षण को याद किया जब वह अपने बच्चों के साथ जलियांवाला बाग गईं और महसूस किया कि इतिहास ने अगर करवट न ली होती, तो उनकी तो शायद उनके अपने बच्चे भी इस भयानक घटना का शिकार हो सकते थे। इसी व्यक्तिगत जुड़ाव ने उन्हें इस कहानी को दर्शकों तक पहुँचाने के लिए प्रेरित किया है। आनंद की कहानी उस क्षण से शुरू हुई जब उधम सिंह ने अपने चारों ओर सैकड़ों लोगों को मरते देखा, और फिर उन दो गोलियों तक पहुँची, जिन्होंने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया। डैलरिंपल की चुटीली टिप्पणियों और हास्यपूर्ण शैली ने इस सत्र को और भी रोचक बना दिया, जिससे सत्र के अंत तक बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।

‘छौंक: भोजन, अर्थशास्त्र और सुरक्षा’ सत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और शेयेन ओलिवियर ने वीर सांघवी से बातचीत की। बनर्जी और ओलिवियर ने यह चर्चा की कि कैसे अर्थशास्त्र समाज से गहराई से जुड़ा हुआ है, खासकर खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में। ओलिवियर ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए बताया कि वहाँ भोजन बनाने की प्रक्रिया अक्सर बस कई सामग्रियों को इकट्ठा करने तक सीमित रह जाती है, जबकि सच्ची पाक-कला सीमित संसाधनों में रचनात्मकता लाने में निहित होती है। बनर्जी ने कहा कि संतुलन और संयम न केवल खाना पकाने में, बल्कि जीवन में भी आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की कि उन्होंने बड़े आर्थिक सिद्धांतों को कला और कार्टून के माध्यम से आम दर्शकों के लिए सरल बनाने की कोशिश की। उन्होंने खुद को एक ‘नौसिखिया पाठक’ की दृष्टि से देखने का प्रयास किया, ताकि जटिल आर्थिक अवधारणाओं को आधुनिक दर्शकों के लिए सहज बनाया जा सके। उन्होंने इस दिलचस्प तथ्य को भी उजागर किया कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय व्यंजन – चाहे वह पिज़्ज़ा हो, खिचड़ी हो या चाउमीन – वास्तव में आम जनता के भोजन से ही जन्मे हैं।

बनर्जी ने कहा, “अर्थशास्त्र हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ है।” इसके बाद उन्होंने जोड़ा, “मैं अक्सर इस बारे में सोचता था कि अर्थशास्त्र को अधिक सहज और रुचिकर कैसे बनाया जाए। कैसे लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, कठिन भाषा में उलझाए बिना? तभी मुझे एहसास हुआ कि भोजन के माध्यम से इस विषय को जोड़ना एक शानदार तरीका हो सकता है… बेहतरीन व्यंजन अक्सर कम संसाधनों से जन्म लेते हैं – कम से कम से कुछ स्वादिष्ट बना लेना, यही भारतीय भोजन की सबसे बड़ी खासियत है – यहाँ रोज़मर्रा की सामान्य सामग्रियों से भी बेहद स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं।”

सत्र ‘अ डे इन द लाइफ ऑफ आबेद सेलमा’ में नाथन थ्रॉल ने गईथ अब्दुल-अहद के साथ बातचीत की। अहद की किताब अ डे इन द लाइफ ऑफ आबेद सेलमा एक दिल दहला देने वाली कहानी बयान करती है, जिसमें सेलमा अपने बेटे को एक बस दुर्घटना में खो देता है। व्यक्तिगत त्रासदी की इस कहानी के माध्यम से थ्रॉल ने इज़रायली राज में जीवन का वर्णन किया है। इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को करीब से देखने वाले नाथन थ्रॉल यरुशलम में रहकर रिपोर्टिंग करते हैं। उनकी किताब इस दर्दनाक घटना के पीछे की वास्तविक परिस्थितियों को सामने लाती है, जिसने सेलमा के बेटे को उनसे छीन लिया। थ्रॉल ने पुस्तक की मुख्य कथा को एक तेज़-तर्रार बस दुर्घटना की कहानी के रूप में गढ़ा, जिससे पाठक पुस्तक से जुड़े रहें और इसकी गहराई में उतर सकें।
खचाखच भरे सत्र ‘जब वी मेट’ में इम्तियाज अली ने अनुपमा चोपड़ा से बातचीत के दौरान अपने बीस वर्षों के फिल्म निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक के सफर के अनुभव साझा किए। अली ने सोशल मीडिया के प्रभावों पर बात की और बताया कि कैसे सोशल मीडिया लोगों को मूर्ख बनाता है, क्योंकि यह हमेशा वही दिखाता है जो आप देखना चाहता है। अली ने कहा, “सफलता वह चीज़ है जिसे लोग पसंद करते हैं या चाहते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि असफलता आपको बहुत कुछ सिखा सकती है। जीवन केवल सफलता और असफलता तक सीमित नहीं है, यह इस पर भी निर्भर करता है कि आपके रिश्ते कैसे हैं, आप क्या हासिल करना चाहते हैं, आदि। इन सभी चीज़ों पर सफलता या असफलता का असर नहीं पड़ता। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने काम में लगातार बेहतर बनने की कोशिश करें।”

साथ ही, जयपुर बुकमार्क के दौरान फेस्टिवल डायरेक्टर्स’ राउंडटेबल का आयोजन हुआ, जो एक एशिया का सबसे बड़ा प्रकाशन सम्मेलन है। इस चर्चा में इरेनोसेन ओकोजिए, एलिस मोंग, गोविंद डीसी, जान्हवी प्रसादा, जेनी निवेन, जेसी फ्राइडमैन, जुआन मैनुअल गुइमेरांस, नमिता गोखले, निकोला टक्सवर्थ, ओल्गा ड्रेंडा और शुभ संजा उर्स शामिल थे। नमिता गोखले ने व्यावहारिक दृष्टिकोण रखते हुए विषय पर बात की और आतिउत्साही लोगों व पत्रकारों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को संबोधित किया। इरेनोसेन ओकोजिए और ओल्गा ड्रेंडा ने सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व के महत्व पर ज़ोर दिया। जुआन मैनुअल गुइमेरांस और शुभा उर्स ने स्थानीय संस्कृति और साहित्यिक परिदृश्य के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला। जान्हवी प्रसादा ने त्योहारों को एक ऐसे अवसर के रूप में देखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जो त्रासदियों से भरी दुनिया से कुछ पल के लिए राहत प्रदान कर सके।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की बहुप्रतीक्षित समापन-डिबेट, ‘पैसिफिज्म इज फॉर लूजर्स,’ के लिए एक शानदार पैनल मंच पर मौजूद था, जिसमें मुकुलिका बनर्जी, मनप्रीत वोहरा, गीडियोन लेवी, सलील त्रिपाठी, यारोस्लाव ट्रोफिमोव और जॉर्जिना गोडविन शामिल थे, और इसकी अध्यक्षता एवं संचालन वीर सांघवी ने किया। इस बहस का मुख्य विषय था, “हम जिस टूटी-फूटी दुनिय और संघर्ष के इस युग में हैं, क्या उसमें युद्ध ही एकमात्र विकल्प है?” बहस के दौरान, ट्रोफिमोव ने कहा, “मैं सहमत हूं कि शांतिपूर्ण बदलाव हिंसक समाधानों से कहीं बेहतर है, लेकिन कभी-कभी यह असंभव हो जाता है। मैं मानता हूं कि पैसिफिज्म ताकतवर लोगों का हथियार है, दुर्भाग्यवश कई लोग जो कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, वे ताकतवर नहीं होते।”

अपने उद्घाटन भाषण में, गोडविन ने कहा, “हिंसा बदलाव ला सकती है लेकिन इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। यह एक राष्ट्र के शरीर में एक जहर घोल देती है। हिंसक क्रांतियां अक्सर एक उद्धारक नेतृत्व उत्पन्न करती हैं जिसके लोकतान्त्रिक होने की संभवना बहुत कम होती हैं।” वोहरा ने कहा, “गांधी के देश, भारत में हम पैसिफिज्म को एक अच्छा विचार मानते हैं क्योंकि हम इसे उस बहुत ही अपूर्ण अंग्रेजी अनुवाद से जोड़ते हैं जिसका मतलब है अहिंसा और सविनय अवज्ञा है। ये अंग्रेजी शब्द हैं, लेकिन ये उस विचारधारा की आत्मा को व्यक्त नहीं करते, जो सत्याग्रह का अर्थ है— पैसिफिज्म नहीं है।” लेवी ने कहा, “मेरा तर्क इस प्रकार होगा जैसा महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘अहिंसा ताकतवर व्यक्ति का हथियार है।’ और सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश मैं एक ऐसे राज्य का प्रतिनिधित्व करता हूं जो ताकतवर है।”

वेदांता की प्रस्तुति, मारुति सुज़ुकी के सहयोग और वेदा द्वारा संचालित इस वर्ष का जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल समाप्ति की ओर है। यह अवसर हमें उन प्रेरणादायक चर्चाओं, साझा अनुभवों और फेस्टिवल में बनी नई मित्रताओं के स्थायी प्रभाव पर विचार करने का मौका देता है। विचारों की अनूठी विविधता के साथ, फेस्टिवल ने एक बार फिर अपने स्थान को साहित्य उत्सवों की अग्रणी धरोहर के रूप में स्थापित किया है। आज यह घोषणा की गई कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का अगला संस्करण 15 से 19 जनवरी 2026 तक आयोजित किया जाएगा।

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