प्रेस रिलीज
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से राजस्थान में बाल विवाह के खात्मे की उम्मीदें परवान चढ़ीं; ‘जस्ट राइट्स’ एलायंस समर्थन में उतरा
- नए दिशानिर्देशों से उत्साहित ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ एलायंस ने राजस्थान से बाल विवाह के खात्मे का संकल्प दोहराते हुए सरकार को पूर्ण समर्थन का वादा किया
- एलायंस ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देशों की मदद से हम साथ मिलकर 2030 से पहले ही कर सकते हैं बाल विवाह का खात्मा
- सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए विभिन्न मंत्रालयों को जारी किए दिशानिर्देश
- एलायंस ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान का समर्थक है जिसके सहयोगियों की याचिका पर आया है सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
दिव्या राष्ट्र, जयपुर – बाल विवाह की रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर विभिन्न मंत्रालयों को विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने के बाद जोश से लबरेज रास्थान के नागरिक समाज संगठनों ने 2030 तक राज्य से बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य को हासिल कर लेने का विश्वास जताते हुए प्रदेश सरकार को इन प्रयासों में हरसंभव सहयोग व समर्थन का संकल्प दोहराया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस (जेआरसीए) के साथ ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के अलावा एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन और गायत्री सेवा संस्थान जैसे तमाम सहयोगी गैरसरकारी संगठन राजधानी राजधानी जयपुर में इकट्ठा हुए जहां उन्होंने बाल विवाह के खात्मे के लिए रणनीतियों और उन पर प्रभावी अमल के तरीकों पर चर्चा की। इन संगठनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों से पंचायतों के साथ मिलकर काम करने, जागरूकता के प्रसार और बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लिए विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं को साथ जोड़ने जैसे उनके जमीनी कार्यों को और गति व मजबूती मिलेगी।
गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन जेआरसीए बाल विवाह के खिलाफ ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान को भी समर्थन दे रहा है जिसके सहयोगी सदस्य और संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी के नतीजे में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के खात्मे के लिए ऐतिहासिक फैसले में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। जेआरसीए के समर्थन से चल रहा यह अभियान पहले से ही बाल विवाह के खात्मे के लिए ‘पिकेट’ (पीआईसीकेईटी) रणनीति पर अमल कर रहा है और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों में इसकी छाप स्पष्ट है। ‘पिकेट’ रणनीति का खाका ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ (सीएमएफआई) अभियान के संस्थापक भुवन ऋभु ने अपनी किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में पेश किया था। यह एक समग्र रणनीति है जिसमें नीति, संस्थान, समन्वय या संम्मिलन, परिवेश और तकनीक जैसी सभी चीजें समाहित हैं। इस रणनीति पर अमल करते हुए सीएमएफआई ने पिछले एक साल में 120,000 से ज्यादा बाल विवाह रुकवाए हैं।
इस ऐतिहासिक फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताते हुए बाल विवाह मुक्त भारत के संयोजक राजीव भारद्वाज ने कहा, “हम भारत के नौनिहालों के अधिकारों की रक्षा के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं। बाल विवाह की जड़ें सदियों से हमारे सामाजिक ताने-बाने में गहरे तक पसरी हैं जिससे मुकाबले के लिए एक बहुआयामी रणनीति और दृष्टिकोण की जरूरत है। इस फैसले से बाल विवाह के खात्मे के हमारे संकल्प को और मजबूती मिली है। जेआरसीए के सदस्य के नाते यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजस्थान में एक भी बच्चे को बाल विवाह के दलदल में नहीं धकेला जाए और प्रत्येक बच्चा शिक्षित व सुरक्षित हो, हम राज्य सरकार को पूर्ण समर्थन व सहयोग का वादा करते हैं।”
एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन के वरिष्ठ निदेशक मनीष शर्मा ने भी सहमति जताते हुए कहा, “बाल विवाह बच्चों से बलात्कार है और इस अपराध के खात्मे के लिए पंचायत से लेकर पुलिस तक सभी हितधारकों के साझा प्रयासों की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देशों में उन्हीं रणनीतियों पर जोर दिया है जिन पर हम पहले से ही जमीनी स्तर पर अमल करते आ रहे हैं। हम बच्चों के खिलाफ इस जघन्य अपराध के खात्मे के लिए सरकार के सभी प्रयासों में उसके साथ हैं और साथ मिलकर संभवत: हम 2030 से पहले ही बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी ‘टिपिंग प्वाइंट’ यानी निर्णायक बिंदु तक पहुंच सकते हैं।”
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देशभर के 180 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है। गठबंधन की विभिन्न याचिकाओं पर बाल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के कई दूरगामी फैसले आए हैं जिसमें हाल ही में ‘चाइल्ड पोर्न’ यानी बच्चों के अश्लील वीडियो व अश्लील सामग्री रखने, देखने या साझा करने को अपराध घोषित करने का फैसला भी शामिल है।
बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) अभियान के गठबंधन सहयोगियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर को एक ऐतिहासिक फैसले में ग्रामीण समुदायों की लामबंदी पर जोर देते हुए बाल विवाह की रोकथाम के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। इन दिशानिर्देशों में बच्चों के सशक्तीकरण, उनके अधिकारों के संरक्षण, यौन शिक्षा और समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण पर जोर देने के साथ ही बाल विवाह की रोकथाम के लिए पंचायतों, स्कूलों और बाल विवाह निषेध अधिकारियों की जवाबदेही तय की गई। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 पर प्रभावी तरीके से अमल के लिए बचाव, संरक्षण व अभियोजन की रणनीति पर काम करते हुए कानूनी कार्रवाई को आखिरी विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाए।