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संघ के वरिष्ठ प्रचारक माणकचंद ‘भाईजी’ को श्रद्धांजलि

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आदर्श विद्यामंदिर में आयोजित हुई सभा

जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पाथेय कण पत्रिका के संरक्षक माणकचंद ‘भाईजी’ के निधन के उपरांत रविवार को अम्बाबाड़ी स्थित आदर्श विद्यामंदिर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रबुद्ध नागरिकों ने उपस्थित होकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए।
सभा में वक्ताओं ने भाईजी के जीवन, उनके कार्य एवं आदर्शों को स्मरण करते हुए कहा कि माणकचंद जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रसेवा को समर्पित किया। प्रचारक जीवन की कठिन साधना करते हुए उन्होंने संगठनात्मक, बौद्धिक एवं वैचारिक कार्य में अनुकरणीय योगदान दिया।
माणक जी का जीवन कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत: कन्हैयालाल चतुर्वेदी
पाथेय कण के पूर्व संपादक कन्हैयालाल चतुर्वेदी ने कहा कि माणकचंद्र जी से उनका परिचय 1973 में हुआ, जब वे संघ शिक्षा वर्ग करने गए थे। वे उत्कृष्ट कबड्डी खिलाड़ी थे। जिस टीम में वे होते, उसकी जीत सुनिश्चित मानी जाती थी।
उन्होंने कहा कि 1985 में जब उन्हें पाथेय कण की जिम्मेदारी मिली, तब माणक जी 1989 में पत्रिका के प्रबंध संपादक बने। पाथेय के विकास में माणक जी का योगदान 90 प्रतिशत तक माना जा सकता है। चतुर्वेदी ने बताया कि वर्ष 1989 से 2019 तक उन्होंने माणक जी के साथ लगातार कार्य किया। इस दौरान माणक जी की पहचान पाथेय कण से इतनी गहराई से जुड़ गई थी कि वे जहां भी जाते, लोग उन्हें ‘माणक जी भाई साहब’ कहकर पुकारते। उनका काम के प्रति समर्पण और मधुर स्वभाव हर कार्यकर्ता के लिए आदर्श था। उन्होंने कहा कि माणक जी ने कभी थककर पीछे हटना नहीं सीखा, वे अंतिम समय तक कर्मशील रहे। उनके भीतर जो सहजता, विनम्रता, निष्ठा और समर्पण था, वह प्रत्येक कार्यकर्ता में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि माणक जी के जाने से ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं की एक पूरी पीढ़ी का अंत हो गया है, लेकिन उनके कार्य और विचार सदा प्रेरणा देते रहेंगे।

संघ और माणक जी एकाकार हो गए थे: प्रचारक विश्वजीत

संघ के प्रचारक विश्वजीत ने कहा कि ब्रह्मा जी के चार मुख चार गुणों के प्रतीक हैं, जिनमें एक गुण है मैत्री। माणक जी ने अपने जीवन में इस मैत्री भाव को इतनी गहराई से आत्मसात कर लिया था कि वे स्वयं संघ के साथ एकाकार हो गए थे। माणक जी ने न केवल संगठन के कार्यकर्ताओं को अपना माना, बल्कि संघ हर स्वयंसेवक को आत्मीयता और स्नेह के सूत्र में बांधा। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है। वे कभी भी अपने दुख को ज़ाहिर नहीं होने देते थे। दूसरों के दुख की हर जानकारी लेते थे।

माणक जी थे सरलता और आत्मीयता की मिसाल : दीनानाथ
सुजानगढ़ के मूल निवासी दीनानाथ ने माणकचंद्र जी की सहजता और आत्मीयता को याद करते हुए कहा कि उनका परिचय कराने का तरीका बहुत अनूठा था। चाहे भोजन के समय हो या बैठकों में, वे सहज ही लोगों का परिचय करा देते थे। उनका मधुर और आत्मीय व्यवहार ही था कि जेल में रहते हुए भी वे एक पेड़ के पास आकर कार्यकर्ताओं को आवश्यक सूचनाएं दिया करते थे।

दीनानाथ ने बताया कि माणक जी जब स्वयंसेवकों के घर जाते थे तो उनके परिजनों से घुल-मिल जाते थे और वर्षों बाद भी न केवल स्वयंसेवक का नाम, बल्कि उनके परिजनों का नाम भी उन्हें याद रहता था। वे इतने सहज थे कि घर में रसोई में जाकर जो भी बना होता, बिना किसी संकोच के खा लेते थे। माणक जी की यही सरलता उन्हें सबका प्रिय बनाती थी।
माणक जी का जीवन रहा परिवार के लिए प्रेरणा स्रोत : भतीजे विजय
माणक जी के भतीजे विजय ने कहा कि उनका विनम्र स्वभाव हमेशा हमारे पूरे परिवार के लिए प्रेरणास्पद रहेगा। इतने बड़े परिवार के बीच रहते हुए भी वे समय की पाबंदी और अनुशासन के प्रतीक रहे। उनके जीवन की प्राथमिकता हमेशा शाखा समय पर पहुँचना होती थी।
विजय ने भावुक होते हुए कहा कि माणक जी का संपूर्ण जीवन हमारे परिवार के लिए एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत रहा है। परिवार में उन्हें स्नेह से “मिश्री वाले काकाजी” कहा जाता था। यह नाम ही उनके मधुर और सहज स्वभाव की पहचान बन गया था।
माणक जी का जीवन रहा आदर्श प्रचारक का उदाहरण : सुरेश
संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश ने माणकचंद्र जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनका जीवन एक आदर्श प्रचारक का जीवन था। वे जहां भी रहे, संघ कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित रहे। उन्होंने प्रचारक जीवन की हर मर्यादा का पालन किया और अपनी शुचिता, सादगी तथा सेवा से सभी के हृदय में स्थान बनाया। छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं के प्रति श्रद्धा रखते थे।
उन्होंने कहा कि माणक जी का स्वभाव अत्यंत आत्मीय और स्नेहिल था। वे संघ के बाहर से आए हुए कार्यकर्ताओं को भी वही अपनापन और आत्मीयता प्रदान करते थे जो अपने निकटतम लोगों को दी जाती है। उनका जीवन जल की तरह निर्मल और पवित्र था। उन्होंने बताया कि माणक जी ने जीवन भर पाथेय कण के लिए अर्थ की व्यवस्था करते रहे, लेकिन कभी अपने लिए किसी प्रकार की इच्छा या अपेक्षा नहीं रखी। कार्य के दौरान वे सभी सहयोगियों को सम्मान देते थे और उनका व्यवहार इतना विनम्र था कि सभी सहयोगी उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते थे।
श्रद्धांजलि सभा के प्रारंभ में पाथेय कण के संपादक प्रो. रामस्वरुप अग्रवाल ने माणकचंद्र जी का विस्तार से जीवन परिचय दिया। उपसंपादक मनोज गर्ग ने भी अपने विचार रखे।
इस अवसर पर सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी समेत बड़ी संख्या में समाज के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

उल्लेखनीय है कि संघ के वरिष्ठ प्रचारक माणकचंद का निधन 30 जुलाई को एसएमएस अस्पताल, जयपुर में हुआ था। वे 83 वर्ष के थे और पिछले एक माह से किडनी की बीमारी से ग्रसित थे। उनका जन्म 2 नवम्बर 1942 को नागौर जिले के कसारी-बड़ा गांव में हुआ था। वर्ष 1966 में वे पूर्णकालिक प्रचारक बने और लगभग छह दशकों तक संघ कार्य से जुड़े रहे। राजस्थान सहित अनेक प्रांतों में उन्होंने संघ के प्रचार और विस्तार हेतु अथक परिश्रम किया।

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