जयपुर , दिव्यराष्ट्र / श्रीदर्शन पंचांग कर्ता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि कार्तिकी अमावस्या जिस दिन प्रदोष व्यापिनी हो उस दिन लक्ष्मी पूजन करें। यदि दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी हो तो दूसरे दिन करे।
इस बार दृक् और सौर गणित पद्धतियों से प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या अर्थात् कर्मकाल व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूम्बर को ही है।
प्रदोष समये दीपदान उĺल्काप्रदर्शन लक्ष्मीपूजनानि कृत्वा भोजनं कार्यम्*
अर्थात् जिस दिन अमावस्या को सायं देवताओं के लिए दीपदान करने, पितरों के निमित्त उल्का दिखाने, विधिवत् लक्ष्मीपूजन करके व्रती को भोजन का पूर्ण समय प्रदोष काल में मिल जावे, उसी दिन लक्ष्मी पूजन आदि करें। यही कर्मकाल है। इतना कर्म करने के लिए पूरा प्रदोषकाल चाहिए। केवल प्रदोषस्पर्श से कार्य नहीं हो सकता। प्रदोष काल का मान सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त अर्थात् छः घटी अर्थात् 144 मिनट का समय होता है । कुछ विद्वान प्रदोष का स्पर्श मात्र मान रहे है, जबकि प्रदोष तो पूरा ही होना चाहिए । इसी प्रकार 31 अक्टूबर को अमावस्या दोपहर 03.54 पर शुरू हो रही है और 1 नवंबर को शाम को 6.18 पर समाप्त हो रही है । भीनमाल का सूर्यास्त का समय शाम को 6:00 बजे, अहमदाबाद 6.01, मुंबई 6.04 है, अमावस्या 6.18 तक है, अर्थात सूर्यास्त के बाद अमावस्या 24 मिनट भी नहीं है और 24 मिनट की एक घटी होती है । इसलिए 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है ।
त्रिवेदी ने बताया कि अमावस्या का कुल मान 26 घण्टे 24 मिनट आ रहा है । अहोरात्र या तिथि के आठवें भाग को याम या एक प्रहर कहते है। इस प्रकार अमावस्या के मान के 8 भाग करने पर 3 घंटे 18 मिनट प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रथम भाग या पहले प्रहर को सिनीवाली अमावस्या कहते है । बीच के 5 प्रहर को दर्श कहते है और अन्तिम 2 प्रहर को कुहू अमावस्या कहा जाता है। दीपावली पूजन दर्श अमावस्या में किया जाता है, जो 1 नवम्बर को प्रातः 11.42 बजे तक ही दर्श अमावस्या प्राप्त हो रही है। अर्थात् 1 नवम्बर को प्रदोषकाल में दर्श अमावस्या नहीं है, तो 31 अक्टूम्बर को ही दीपावली शास्त्र सम्मत है। दीपावली के लिए धर्म सिंधु में कहा है
अथाश्विनामावास्यायां प्रातरभ्यंग प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम्। तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकाधिकरात्रिव्यापिनी दर्शे सति न संदेहः।।*
इसमें स्पष्ट लिखा है कि सूर्यास्त के बाद रात्रि में एक घटी से अधिक दर्श हो तो उस दिन दीपावली होने में कोई संदेह नहीं है।
राजमार्तण्ड में कहा है
दण्डैकरजनी प्रदोषसमये दर्शो यदा संस्पृशेत्।कर्त्तव्या सुखरात्रिकात्र विधिना दर्शाद्यभावे तदा।पूज्या चाब्जधरा सदैव च तिथिः सैवाहनि प्राप्यते।कार्या भूतविमिश्रिता जगुरिति व्यासादिगर्गादयः।।*
अर्थात् यदि रात्रि को प्रदोष के समय एक दण्ड (घटी) भी दर्श का स्पर्श हो रहा हो तो उस दिन रात्रि में दर्श आदि के अभाव में भी विधिपूर्वक सुखरात्रिका करें। लक्ष्मी की पूजा सदैव उसी दिन करनी चाहिए जिस दिन प्रदोषव्यापिनी तिथि (दर्श) की प्राप्ति होती हो। यह चतुर्दशी मिश्रिता अमावस्या में भी करनी चाहिए । ऐसा व्यास गर्ग आदि ऋषियों का कथन है। इस उर्द्धत कर तिथि निर्णय में कहा है ।
अमावस्या यदा रात्रौ दिवाभागे चतुर्दशी।पूजनीया तदा लक्ष्मीर्विज्ञेया सुखरात्रिका।इति वचनद्वयमुभयत्र प्रमाणं वेदितव्यम्*
अर्थात् यदि दूसरे दिन दिवाभाग में ही दर्श मिले और समाप्त हो जाए व पहिले दिन के प्रदोष में दर्श मिल रहा हो तो चतुर्दशी विद्धा अमावस्या भी ग्राह्य है । ज्योतिः शास्त्र में कहा है यदि दूसरे दिन की रात्रि में दर्श का एक दण्ड योग व्याप्ति हो तो पहले दिन को छोड़कर दूसरे दिन सुखरात्रिका होती है। परंतु दूसरे दिन एक दण्ड यानि एक घटी अर्थात् 24 मिनट भी नहीं है इसलिए रात्रि में अमावस्या हो और दिन में चतुर्दशी हो तो उसी रात्रि में लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए । इसे सुखरात्रिका कहते है। इन दोनों वचनों को प्रमाण माना जाना चाहिए।
इन सभी प्रमाणों को देखते हुए 31 अक्टूम्बर को ही प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने से दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है।