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ब्राह्मणत्व का पुनर्जागरण — गुण, ज्ञान और गरिमा की पुनः प्रतिष्ठा

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(दिव्यराष्ट्र के लिए डॉ. गोविंद पारीक)

भारतवर्ष की सांस्कृतिक चेतना में ब्राह्मण केवल एक वर्ण नहीं, अपितु वह आध्यात्मिक और नैतिक स्तंभ है, जिसने युगों-युगों से ज्ञान, धर्म और संस्कृति की लौ को जलाए रखा है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में वर्णित है कि सृष्टि के आदि में परम पुरुष के शरीर से चार वर्णों की उत्पत्ति हुई—मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और पैरों से शूद्र। यह प्रतीकात्मक वर्णन समाज की दार्शनिक संरचना को दर्शाता है, जो ऊँच-नीच नहीं, अपितु कार्य और उत्तरदायित्व पर आधारित थी।

ब्राह्मणत्व का आदर्श और ऋषि परंपरा

ब्राह्मण का “मुख” होना मात्र शारीरिक नहीं, बल्कि वैचारिक और आध्यात्मिक नेतृत्व का प्रतीक है। समाज को दिशा देने, धर्म को स्थिर रखने और ज्ञान की ज्योति जलाए रखने की जिम्मेदारी ब्राह्मण पर रही है। यह उत्तरदायित्व अनेक ऋषि-महर्षियों और आचार्यों ने युगों तक निभाया।

महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ और श्रीराम को धर्म, न्याय और जीवन की नीति सिखाई। महर्षि विश्वामित्र केवल क्षत्रिय नहीं, ब्रह्मर्षि बनकर ब्रह्मविद्या के ज्ञाता हुए और गायत्री मंत्र जैसी कालजयी ऋचा का प्राकट्य किया। महर्षि वेदव्यास ने वेदों का संहिताकरण कर, महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना की, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता मानवता के लिए अमूल्य धरोहर बनी।

आदि शंकराचार्य ने जब पूरे भारतवर्ष में भ्रमण कर चार मठों की स्थापना की, तब सनातन धर्म को वैदिक दर्शन के साथ पुनः जाग्रत किया। उनकी अद्भुत तर्कशक्ति और उपनिषदों पर भाष्य ने आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया। कणाद, जैमिनि, भास्कराचार्य, भृगु, पाणिनि, पतंजलि जैसे विद्वानों ने गणित, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद और योग जैसे विषयों को वैज्ञानिक विधियों से समृद्ध किया। इन ब्राह्मण मनीषियों ने न केवल वेदों का प्रचार किया, बल्कि विज्ञान, तर्क, खगोल, आयुर्वेद, नीति और संगीत जैसे विषयों में भी विश्व को अद्वितीय योगदान दिया।

आधुनिक भारत में भी ब्राह्मणों ने अपनी बौद्धिक और नैतिक क्षमता से समाज का नेतृत्व किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन — एक दार्शनिक, शिक्षाविद और राष्ट्रपति बने, जिनका जीवन शिक्षा और नीति का पर्याय रहा। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर शिक्षा की महान परंपरा को पुनः स्थापित किया।

डॉ. सी.वी. रमन, डॉ. होमी भाभा, डॉ. वेंकटरमन रामकृष्णन जैसे वैज्ञानिकों ने विश्व मंच पर भारतीय बौद्धिकता का परचम लहराया। पं. जवाहरलाल नेहरू, विनोबा भावे, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने सामाजिक चेतना, राजनीति और विचारधारा में आदर्श प्रस्तुत किए।
यह सभी उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि ब्राह्मणत्व का अर्थ केवल वेदपाठ नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व, सेवा, मार्गदर्शन और चरित्र निर्माण है।

आज की चुनौती: ब्राह्मणत्व को पुनः जागृत करना

आज जब आरक्षण, अवसरों की असमानता और जातीय राजनीति के कारण ब्राह्मण समाज को कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि ब्राह्मण अपनी आंतरिक शक्ति को पहचाने।

सरकारी नौकरियाँ सीमित हैं, परंतु आज का युग निजी क्षेत्र, स्टार्टअप, वैश्विक शिक्षा, डिजिटल नवाचार और परामर्श सेवाओं के अनंत द्वार खोलता है। यदि ब्राह्मण युवा अपनी परंपरा की जड़ों को आधुनिक शिक्षा से जोड़कर आत्मनिर्भरता और समाज सेवा को अपनाते हैं, तो वे न केवल स्वयं आगे बढ़ेंगे, बल्कि समाज को भी दिशा देंगे।

ब्राह्मणत्व की वैज्ञानिक और नैतिक व्याख्या

आज विज्ञान यह स्वीकार करता है कि किसी भी जाति में जन्म से श्रेष्ठता नहीं होती, परंतु यदि पीढ़ियों तक कोई समाज अध्ययन, स्वाध्याय और अनुशासन में संलग्न रहता है, तो वह बौद्धिक रूप से परिष्कृत हो सकता है। ब्राह्मणों की जीवनशैली—सात्त्विक आहार, ध्यान, संयम, चिंतन और नियमित दिनचर्या—मानसिक और बौद्धिक विकास के श्रेष्ठ उपकरण हैं।

मनोवैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जिन समुदायों में अध्ययन और चिंतन की परंपरा रही है, उनमें तार्किक क्षमता, भाषिक दक्षता और निर्णय शक्ति अधिक होती है। आज भी ब्राह्मण युवाओं ने प्रशासन, विज्ञान, साहित्य, तकनीक और आध्यात्मिक नेतृत्व में अपने स्थान बनाए हैं—यह उनकी जड़ें नहीं, उनकी साधना का प्रतिफल है।

ब्राह्मण ज्ञान और करुणा का युग-निर्माता है। ब्राह्मण समाज के लिए आज आवश्यकता है आत्मचिंतन, संगठन और सेवा भावना की। पुनः यह स्वीकारना होगा कि ब्राह्मणत्व केवल जन्म से नहीं, बल्कि तप, त्याग, गुण और आचरण से आता है।

आज ब्राह्मण को चाहिए कि वह समाज में संवाद का सेतु बने, शिक्षा और परामर्श में नेतृत्व करे, और करुणा तथा धर्म के माध्यम से सर्वसमावेशी दृष्टि अपनाए। वह गर्व से नहीं, गौरव से जिए; प्रचार से नहीं, प्रभाव से समाज को दिशा दे। जब ब्राह्मण अपनी ज्ञान–दीपिका से अंधकार मिटाएगा, तब वह न केवल समाज का दीपक, अपितु पुनः सृष्टि का प्रज्ञा-स्तंभ बन जाएगा।

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