सौर तूफान, सूर्य चक्र एवं कुंभ: धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम

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— डॉ. मनोज गट्टानी,
ऊर्जा एवं पर्यावरण विशेषज्ञ

विश्व में खगोलीय घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाली अग्रणी संस्थाओं— नासा एवं एनओएए के अनुसार लगभग 11 वर्षों के अंतराल में सूर्य के मैग्नेटिक क्षेत्र में परिवर्तन (मैग्नेटिक रिकनेक्शन प्रोसेस) होता है। इसके कारण सूर्य की सतह पर उठने वाले सौर तूफान अपने प्रचंडतम रूप में पूरे सोलर सिस्टम में कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई)और संबंधित सौर ज्वाला उत्पन्न करते हैं। इन सौर तूफानों की अवधि कुछ महीनों से कुछ वर्ष तक होती है। सीएमई की इस घटना में लगभग 20 बिलियन टन सोलर मटेरियल रिलीज होता है, जिसकी पावर क्षमता लगभग एक बिलियन हाइड्रोजन बम के बराबर होती है और यह पदार्थ 500 किलोमीटर प्रति सैकंड या इससे भी अधिक गति से सोलर सिस्टम में प्रसारित होते हुए धरती की ओर भी बढ़ते रहते हैं।

सूर्य चक्र की 11 वर्ष की अवधि के दौरान अधिकतम तीव्रता के सौर तूफान के साथ ही तीन कम एवं  मध्यम तीव्रता के सौर तूफान घटित होते हैं। अत्यधिक पावरफुल मैग्नेटिक  विकिरण वाले ये सौर तूफान पृथ्वी के मैग्नेटोस्फेयर को भी प्रभावित करते हैं, जिसका असर सामान्य जन-जीवन (मनुष्य, पशु—पक्षी व वनस्पति) से लेकर उपग्रह, जीपीएस नेविगेशन, रेडियो सिग्नल के ब्लैकआउट्स, पावर तथा इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक संचार व्यवस्था को भी काफी हद तक बाधित करते हैं। 11 वर्षों के अंतराल से उठने वाले सौर तूफान की तीव्रता एक्स या जी स्केल में मापी जाती है। एक से लेकर पांच के स्केल पर जी5 की तीव्रता सबसे अधिक एवं  विनाशकारी होती है।

2025 का सौर तूफान जी5 तीव्रता का है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी तीव्रता लगभग 143 वर्ष पूर्व 1882 में आने वाले सौर तूफान के समकक्ष है। इससे पूर्व 1859 में अधिकतम तीव्रता का सौर तूफान मापा गया था, जो 1882 से लगभग 23 वर्ष पहले घटित हुआ था। सौर तूफान के इस 11 वर्ष के सूर्य चक्र में प्रत्येक तीन वर्षों में सीवियर सुपर स्टॉर्म, 25 वर्षों के अंतराल से ग्रेट सुपर स्टॉर्म तथा लगभग 144 वर्षों के अंतराल से विस्फोटक मैग्नेटो स्टॉर्म उत्पन्न होते हैं।

ऐसे में यह सवाल उत्पन्न होता है कि लगभग 11-12 वर्षों में सौर चक्र में उठने वाले तीन मध्यम तीव्रता के साथ एक अधिकतम तीव्रता के सौर तूफान का संबंध क्या कुंभ से हो सकता है। जिसका आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में एक पूर्ण कुंभ के साथ प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल से तीन छोटे एवं अर्ध कुंभ तथा 144 वर्षों के पूर्ण चक्र के साथ महाकुंभ के रूप में नदी किनारे होते हैं। कुंभ एवं सौर तूफान की समय सारणी का मिलान करें तो बहुत ही वैज्ञानिक सामंजस्य देखने  को मिलते हैं।

2025 में आयोजित हो रहे महाकुंभ के समय सौर तूफान की तीव्रता जी5 स्तर की है, जो पिछले महाकुंभ (लगभग 144 वर्ष पूर्व के) 1882 के समय के सौर तूफान के समकक्ष है। 1882 से 23 वर्ष पहले (1859 में) के अधिकतम तीव्रता के सौर तूफान उस समय के महाकुंभ के पहले दो पूर्ण कुंभ स्थिति को दर्शाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कुंभ के आयोजन में अनेकों प्रचलित धार्मिक कथाओं के साथ—साथ कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हो सकते हैं। सनातन संस्कृति में प्राकृतिक इको सिस्टम से जुड़ी तमाम घटनाओं को धर्म से जोड़कर जीवन में प्रचलित करवाने की परम्परा है। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि मानव जाति स्वयं का प्रकृति के साथ सानिध्य बिठाकर प्रकृति के अनुकूल जीवनयापन कर सके।

बहुत से वैज्ञानिक अध्ययनों से यह सामने आया है कि धरती पर उपलब्ध सभी तत्वों में पानी ही एकमात्र ऐसा तत्व है जो किसी भी प्रकार के पदार्थ या ऊर्जा को स्वयं में अवशोषित करने की क्षमता रखता है। अब ध्यान से देखें तो यह ज्ञात होगा कि सौर तूफान में आने वाले मैग्नेटिक विकिरण एवं मैग्नेटिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में होते हैं। हालांकि उनका अधिकतम अवशोषण पृथ्वी के वातावरण में हो जाता है, लेकिन धरती की सतह पर पहुंचने वाले विकिरणों का अवशोषण सतह के अंदर या किसी बड़े जलीय स्रोत द्वारा ही संभव हो पाता है।

ऐसे में सौर तूफान के समय काल के दौरान नदी किनारे कुंभ के आयोजन का वैज्ञानिक महत्व समझ आता है, क्योंकि सौर तूफान के समय काल में कुंभ के रूप में नदी किनारे करोड़ों लोगों का जमावड़ा होता है, ताकि इन हानिकारक सौर विकिरणों से मानव जाति का बचाव हो सके। कुंभ एवं विज्ञान के वास्तविक संबंधों एवं तत्वों के सही सत्यापन के लिए और अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता है और संभव है कि उन्नत होती वैज्ञानिक तकनीकों के साथ निकट भविष्य में इसका उत्तर मिल जाए।

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