जयपुर।(दिव्यराष्ट्र के लिए डॉ.सीमा दाधीच)*। राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (एसएमएस) में रविवार रात को हुई आग की घटना ने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने 6 से 8 मरीजों की जान ले ली, जबकि 5 अन्य गंभीर रूप से घायल हैं। यह कोई पहला हादसा नहीं है; 2024-25 में राज्य के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से नवजातों की मौतें, एम्बुलेंस दुर्घटनाएं और आगजनी जैसी घटनाएं बार-बार सामने आई हैं। ये हादसे न केवल मरीजों की जिंदगियां छीन रहे हैं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही और संसाधनों की कमी को उजागर कर रहे हैं। क्या यह सब ‘अनहोनी’ है या व्यवस्था की ‘नाकामी’?
हादसों का सिलसिला: आंकड़े जो झकझोर दें*
राजस्थान में सरकारी अस्पतालों पर लाखों मरीजों का भरोसा टिका है, लेकिन हाल के वर्षों में यहां की घटनाएं भयावह रूप लेती जा रही हैं। रविवार की घटना में एसएमएस ट्रॉमा सेंटर के न्यूरो आईसीयू में स्टोरेज एरिया में शॉर्ट सर्किट से आग लगी। धुंधला धुआं फैलने से 24 मरीजों को निकाला गया, लेकिन 11 भर्ती मरीजों में से 6 (दो महिलाएं और चार पुरुष) दम घुटने से मर गए। परिवारों का आरोप है कि स्टाफ ने चेतावनियों को नजरअंदाज किया – एक परिजन ने बताया, “डॉक्टर और कंपाउंडर भाग गए, सिर्फ 4-5 मरीजों को ही बचाया गया।” अस्पताल अधीक्षक डॉ. और ट्रॉमा इंचार्ज ने मौतों की संख्या 6 बताई, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में 8 का जिक्र है।
यह घटना 2025 की तीसरी बड़ी दुर्घटना है। मार्च 2025 में राजस्थान के एक जिला अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई चेन की नाकामी से 24 घंटों में 15 नवजात शिशुओं की मौत हो गई। प्रशासन ने पहले इनकार किया, बाद में स्वीकारा। इससे पहले नवंबर 2024 में गुजरात से जोधपुर के एक सरकारी अस्पताल ले जाए जा रहे घायल अशोक की एम्बुलेंस पाली-जोधपुर हाईवे पर डंपर से टकराई, जिसमें 4 अन्य लोगों की मौत हुई। अशोक खुद दो दुर्घटनाओं का शिकार बने। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी – आग बुझाने के उपकरणों, ऑक्सीजन बैकअप और स्टाफ ट्रेनिंग – कितनी घातक साबित हो रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी अस्पताल आगजनी की घटनाएं चिंताजनक हैं। 2024 में दिल्ली के विवेक विहार में 7 नवजातों की मौत हुई, जबकि झांसी के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज में नवंबर 2024 की आग ने 18 शिशुओं को निगल लिया। राजस्थान में भी सड़क हादसों के शिकार मरीजों को सरकारी अस्पतालों में ही दोबारा खतरा झेलना पड़ रहा है, जैसे दिसंबर 2024 के जयपुर-अजमेर हाईवे गैस टैंकर ब्लास्ट में 14 मौतें हुईं और घायलों का इलाज एसएमएस में ही चला।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं*
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सोमवार सुबह अस्पताल का दौरा किया और 6 सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसके प्रमुख मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर इकबाल खान हैं। स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा, “लापरवाही बरतने वालों पर कठोर कार्रवाई होगी।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया, जबकि पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने हाई-लेवल जांच की मांग की। विपक्ष नेता टीकाराम जूली ने स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे की मांग की, कहते हुए, “यह राज्य सरकार की घोर लापरवाही है।” एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी गुस्सा भड़क रहा है – कांग्रेसी नेता पवन खेड़ा ने इसे “शासन की नाकामी” बताया।बयानबाजी ठीक है, लेकिन सवाल वही पुराना: जांच रिपोर्ट कब आएगी और कार्रवाई कब होगी? पिछले हादसों में भी वादे हुए, लेकिन सुधार न के बराबर दिखे।
सुधार की बेला आ गई है*
राजस्थान का स्वास्थ्य बजट 2024-25 में बढ़ा है, लेकिन ‘मुख्यमंत्री निःशुल्क निरोगी राजस्थान’ जैसी योजनाओं के बावजूद बुनियादी सुविधाएं लंगड़ा रही हैं। आग बुझाने के सिलेंडर न होना, स्टाफ की भागदौड़ और पुरानी वायरिंग – ये सब ‘सिस्टम फेलियर’ के लक्षण हैं। सरकार को न सिर्फ जांच बल्कि तत्काल कदम उठाने चाहिए: सभी सरकारी अस्पतालों में फायर ऑडिट, ऑक्सीजन बैकअप और इमरजेंसी ट्रेनिंग अनिवार्य हो। मृतकों के परिवारों को 20-25 लाख का मुआवजा और मुफ्त इलाज का वादा पूरा हो।
ये हादसे चेतावनी हैं* – अगर सुधार न हुए, तो भरोसा टूटेगा और मरीज निजी अस्पतालों की ओर भागेंगे, जहां खर्चा आसमान छूता है। राजस्थान सरकार अब फैसला ले: क्या ये मौतें ‘आंकड़े’ बनकर रहेंगी, या सबक बनेंगी? समय है जागने का, वरना अगला हादसा किसी और के घर को उजाड़ देगा।