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पद्मिनी कोल्हापुरे ने साझा की पृथ्वीराज के राज्याभिषेक और राजा सोमेश्वर की विरासत पर अपनी भावनाएं

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मुंबई, दिव्यराष्ट्र/: सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित हो रही ऐतिहासिक महागाथा ‘चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान’ भारत के सबसे महान राजाओं में से एक के उदय को बेहद खूबसूरती से दर्शाती है। अब वह बहुप्रतीक्षित क्षण आ चुका है जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था — युवा पृथ्वीराज का राज्याभिषेक, जो राजा सोमेश्वर की भावुक और मार्मिक मृत्यु के बाद होगा।
यह शो अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा है। वे इसमें राजमाता की भूमिका निभा रही हैं — एक ऐसी माँ, जिसने अभी-अभी अपने बेटे राजा सोमेश्वर को खोया है, और अब उसे अपने भीतर की पूरी शक्ति जुटाकर अपने युवा पोते के साथ खड़ा होना है, जो अब राज्य का नया सम्राट बनने जा रहा है। यह भावनाओं से भरपूर कथा न केवल पृथ्वीराज के शासनकाल की शुरुआत को दर्शाती है, बल्कि एक स्त्री के भीतर छिपी असीम शक्ति और धैर्य को भी उजागर करती है।
राजमाता की भूमिका पर अपने अनुभव साझा करते हुए पद्मिनी कोल्हापुरे ने कहा, “राजमाता के रूप में मुझे एक ऐसी स्त्री का किरादर निभाना था, जो अपने बेटे राजा सोमेश्वर को खोने के बाद अंदर से टूट चुकी है, लेकिन फिर भी मजबूती से खड़ी है। अब उसका पोता पूरे राज्य की उम्मीद बन चुका है। दर्द और गर्व की इस दोहरी भावना को पर्दे पर उतारना आसान नहीं था, लेकिन एक कलाकार के रूप में यह अनुभव बेहद संतोषजनक रहा। एक पुरानी कहावत है – ‘कुछ महान घटित हो, उससे पहले कुछ समाप्त होना जरूरी होता है।’ यह इस कहानी के इस हिस्से पर पूरी तरह लागू होती है। राजा सोमेश्वर का निधन राज्य के इतिहास का एक अध्याय समाप्त करता है, लेकिन यह पृथ्वीराज के सम्राट बनने और अपने लोगों के रक्षक बनने की शुरुआत भी है। पृथ्वीराज की भूमिका निभा रहे उर्वा सावलिया एक बेहद प्रतिभाशाली युवा कलाकार हैं। उनकी अदाकारी में एक सच्चाई है जो बहुत कम देखने को मिलती है — जब वे देखते हैं, तो लगता है उनकी आंखों में भावनाएं सच में जिंदा हो उठी हैं। मैंने हमेशा माना है कि कुछ किरदार आपके जीवन में इसीलिए आते हैं ताकि वे आपको शांति की शक्ति और दबाव में भी गरिमा बनाए रखने की याद दिला सकें — और राजमाता मेरे लिए ठीक वैसा ही किरदार रही है।”

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