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एनयू की सस्टेनेबिलिटी इम्पेक्ट रिपोर्ट जारी

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दिव्यराष्ट्र, जयपुर: वन महोत्सव 2024 के अवसर पर एनआईआईटी यूनिवर्सिटी (एनयू), ने सस्टेनेबिलिटी इम्पेक्ट रिपोर्ट 2024 प्रस्तुत कर दी है, जिसमें अरावली पर्वतमाला और आसपास के क्षेत्रों के पोषण के लिए एनयू द्वारा की गई दीर्घकालिक पहलों को प्रदर्शित किया गया है। वर्ष 2009 में स्थापित, नीमराना में एनयू का ग्रीनकैम्पस सभी क्षेत्रीय पर्यावरण मानदण्डों का अनुपालन करता है, जिसमें प्रभावी हरित आर्किटेक्चरल डिजाइन मापदण्डों वाली इमारतें हैं, जिससे कार्बन फुटप्रिंट में उल्लेखनीय कमी आई है। कैम्पस ने सतह की रूपरेखा के अनुसार संरचनाओं को अनुकूलित करके भूमि की प्राकृतिक संरचना को बनाए रखा है, जिससे स्थानीय भूविज्ञान पर निर्माण के प्रभाव में भारी कमी आई है।

पिछले 14 वर्षों में किए गए प्रयासों के बारे में बात करते हुए, डीन स्टूडेन्ट अफेयर्स और चीफ ऑपरेशन ऑफिसर, एन.यू. मेजर जनरल ए.के. सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘‘एनआईआईटी यूनिवर्सिटी की हरित पहल पर्यावरण पुनरुत्थान और स्थिरता के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। अरावली पहाड़ियों को पुनर्जीवित करके और अभिनव जल संरक्षण रणनीतियों को लागू करके, हम न केवल स्थानीय ईको सिस्टम को बढ़ा रहे हैं, बल्कि दूसरों के अनुसरण के लिए टिकाऊ प्रथाओं का एक मानक भी स्थापित कर रहे हैं।‘‘

परिसर में किए गए कार्यां में: 1 लाख से ज्यादा पेड़ लगाकर परिसर के आस-पास की अरावली पर्वतमाला को हरा-भरा बनाया गया। इससे पहाड़ियों के हरित आवरण में काफ़ी सुधार हुआ है। साबी नदी पुनरुद्धार परियोजना का नेतृत्वः पिछले 30 वर्षों में, सीकर जिले में धारा जी का मंदिर से निकलने वाली साबी नदी सूख गई थी, जिसके बाद 5 सितंबर, 2015 को डॉ राजेंद्र सिंह जी के नेतृत्व में एनयू जीआईएस टीम के तकनीकी सहयोग से पुनरुद्धार की पहल की गई। नदी के किनारे 57 गांवों की कम्यूनिटिज को शामिल करते हुए इस परियोजना को व्यापक समर्थन मिला है। इसकी आंशिक सफलता का प्रमाण मसानी बैराज में तालाब है। एनयू द्वारा अपनाए गए जल संरक्षण उपायों से कैम्पस में जल स्तर में कमी को रोका जा सका है, साथ ही जल संकट से जूझ रहे नीमराना के आस पास के इलाकों में भी यह संभव हो पाया है। एनयू ने 15 चेक डैम और 5 वॉटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए हैं। अपशिष्ट जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से रिसाइकिल किया जाता है और वनरोपण के लिए पुनः उपयोग किया जाता है। कैम्पस के बाहर से पानी की एक भी बूंद नहीं ली जाती है। प्रोजेक्ट कृष्ण लीला:  दो साल पहले, एनआईआईटी यूनिवर्सिटी ने प्रोजेक्ट कृष्ण लीला के लिए प्रसिद्ध पर्यावरणविद् श्री प्रदीप कृष्ण के साथ मिलकर अरावली को और अधिक हराभरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। यह परियोजना उस क्षेत्र के मूल निवासी पेड़ लगाकर चट्टानी अरावली के पूर्वी हिस्से में एक बड़े भूभाग को बहाल करने का एक प्रयास है। यह परियोजना सफल हो रही है और चट्टानी सतह पर 90 प्रतिशत पेड़ जीवित हैं। सस्टेनेबिलिटी इनिशिएटिव के कारण कैम्पस के आसपास का सूक्ष्म माइक्रोक्लाइमेट 2 डिग्री कम है और एआईक्यू आसपास के क्षेत्र की तुलना में 50 प्रतिशत कम है।

भारतीय फिल्म निर्माता और प्रकृतिविद् प्रदीप कृष्ण ने कहा, ‘‘प्रोजेक्ट कृष्ण लीला मार्च 2022 में शुरू हुआ था। तब से, हमने वनस्पति का प्रारंभिक सर्वेक्षण किया है, बीज एकत्र करना शुरू किया है; अपनी नर्सरी स्थापित की है; गड्डे खोदे हैं और इस मानसून में अपनी पहली दो साइटों पर पौधे लगाने की तैयारी कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि ये मॉडल के रूप में काम करेंगे, जिसका उपयोग स्थानीय टीम बाकी परिदृश्य को बहाल करने के लिए कर सकती है।‘‘

प्रोजेक्ट कृष्ण लीला पर काम करने के अपने अनुभव को साझा करते हुए, एनयू के सस्टेनेबिलिटी क्लब की छात्रा तान्या वर्मा ने कहा, ‘‘इस प्रोजेक्ट के बारे में मुझे जो सबसे अच्छी बात पसंद आई, वह है प्रकृति को करीब से समझना और उसका अवलोकन करना। हम अपने शिक्षकों के साथ ट्रेक पर गए और हमें विभिन्न प्रकार के बीजों के बारे में पता चला, जिनके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था।‘‘

एनआईआईटी यूनिवर्सिटी की यह इनिशिटिव वाइब्रेंट, बौद्धिक रूप से उत्तेजक शिक्षा प्रदान करने की इसकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है जो अकादमिक शिक्षा को उसके आस पास के वातावरण के साथ सहजता से एकीकृत करती है। जैसा कि हम वन महोत्सव 2024 मना रहे हैं, एनयू एक हरित भविष्य को बढ़ावा देकर और अरावली क्षेत्र के आसपास रहने वाली स्थानीय कम्यूनिटी के लिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाकर उदाहरण पेश करना जारी रखना चाहती है।

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