(लेखक राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार सुशील झालानी)
यूं तो देश में राष्ट्रीय प्रेस दिवस हर साल 16 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन प्रेस की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है और भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India, PCI) के स्थापना दिवस के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। प्रेस परिषद का गठन 1966 में हुआ था, जिसका उद्देश्य प्रिंट मीडिया की स्वतंत्रता और नैतिकता की रक्षा करना था। हालांकि, आज की स्थिति को देखते हुए, यह दिवस केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है। वास्तविक समस्याओं और चुनौतियों पर कड़वी सच्चाई का निवारण करने की जगह फर्जी मीडिया संस्थानों,कर्मियो के प्रदर्शन का खेल बन गया है।
हाल के कुछ वर्षो में प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ा है।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का जश्न मनाना है, लेकिन वास्तविकता यह है कि आज भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गंभीर संकट में है। अंतर्राष्ट्रीय संगठन “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स” द्वारा जारी प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग हाल के वर्षों में लगातार गिरती जा रही है। पत्रकारों पर हमले, धमकियाँ, और गिरफ्तारी की घटनाएँ बढ़ रही हैं। कई बार पत्रकारों को सत्ता के खिलाफ लिखने या बोलने पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?
भारतीय प्रेस परिषद की सीमित भूमिका और प्रभाव
भारतीय प्रेस परिषद का उद्देश्य मीडिया में नैतिकता और स्वतंत्रता की रक्षा करना था। हालांकि, इसका प्रभाव और अधिकार सीमित हैं। यह एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, लेकिन इसके पास कोई दंडात्मक शक्ति नहीं है। यदि कोई मीडिया संगठन या पत्रकार नैतिकता का उल्लंघन करता है, तो परिषद के पास केवल अनुशंसा करने की शक्ति होती है, लेकिन इसे लागू कराने का अधिकार नहीं है। इस स्थिति में, प्रेस परिषद का वास्तविक प्रभाव सवालों के घेरे में आ जाता है।
मीडिया पर राजनीतिक और कॉर्पोरेट का बढ़ता दबाव भी गंभीर संकट है।
भारत में मीडिया पर राजनीतिक और कॉर्पोरेट दबाव लगातार बढ़ रहा है। कई मीडिया संस्थान बड़े कारोबारी घरानों के स्वामित्व में हैं, जो अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों के अनुसार खबरों को प्रभावित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप पत्रकारिता में निष्पक्षता और सटीकता की कमी देखी जाती है। सरकार भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके मीडिया की आवाज को नियंत्रित करने का प्रयास करती है, जैसे कि विज्ञापन रोकना, मानहानि के मुकदमे, और दबाव डालकर खबरों को सेंसर करना।
फेक न्यूज़ और पीत पत्रकारिता का बढ़ता चलन हमे कहां ले जाएगा?
हाल के वर्षों में, फेक न्यूज़ और पीत पत्रकारिता (Yellow Journalism) का चलन तेजी से बढ़ा है। मीडिया संस्थान टीआरपी और पाठक संख्या बढ़ाने के लिए सनसनीखेज खबरें चलाते हैं, जिससे समाज में गलत सूचना फैलती है और संवेदनशील मुद्दों पर गलत धारणाए बनती हैं। डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के विस्तार ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। फेक न्यूज़ का प्रसार मीडिया की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
पत्रकारों की सुरक्षा और कार्यस्थल पर उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आई है।
भारत में पत्रकारों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय है। कई पत्रकार भ्रष्टाचार, अपराध, और मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्टिंग करते हुए हमले और धमकियों का सामना करते हैं। कई बार उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी जाती है। इसके अलावा, महिला पत्रकारों को कार्यस्थल पर उत्पीड़न और ऑनलाइन धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके पेशेवर कार्य में बाधा आती है। यह स्थिति पत्रकारों के मनोबल को कमजोर करती है और प्रेस की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है।
कुल मिलाकर राष्ट्रीय प्रेस दिवस का उद्देश्य मीडिया की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का जश्न मनाना है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह एक औपचारिकता बनता जा रहा है। आज भारतीय मीडिया स्वतंत्रता और निष्पक्षता की चुनौती से जूझ रही है। राजनीतिक दबाव, आर्थिक हित, और फेक न्यूज़ के प्रसार ने मीडिया की विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है। इसके अलावा, भारतीय प्रेस परिषद की सीमित शक्ति और भूमिका इसे एक प्रभावशाली संस्था बनने से रोकती है।
यदि राष्ट्रीय प्रेस दिवस को सार्थक बनाना है, तो इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए, प्रेस परिषद को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए, और मीडिया संस्थानों को अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए। तभी हम एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस की स्थापना कर पाएंगे, जो लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी बन सकेगा।