(दिव्य राष्ट्र के लिए गिरिराज अग्रवाल) –
ऑपरेशन सिंदूर के पश्चात, भारतीय व्यापारियों ने जिस तीव्र गति और दृढ़ संकल्प के साथ अजरबेजान और तुर्की जैसे देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंध समाप्त करने का निर्णय लिया, वह उनकी देशभक्ति और राष्ट्रीय हितों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह निर्णय इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि राष्ट्र सर्वोपरि है और किसी भी देश का समर्थन जो भारत के हितों के विपरीत खड़ा होता है, व्यापारिक लाभ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। व्यापारियों का यह स्पष्ट संदेश सराहनीय है कि ‘देश से बड़ा व्यापार नहीं हो सकता’।
हालांकि, इस परिदृश्य में एक विरोधाभास ध्यान आकर्षित करता है। वह यह कि चीन, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया है, अभी भी भारतीय व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। यह विसंगति कई सवाल खड़े करती है, खासकर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत चीन के लिए सबसे बड़े बाजारों में से एक है। यदि राष्ट्रीय हितों की रक्षा सर्वोपरि है, तो भारतीय व्यापारियों को चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को समाप्त करने का फैसला उतनी ही तेजी से क्यों नहीं लेना चाहिए, जितनी तेजी से उन्होंने अजरबेजान और तुर्की के मामले में लिया?
इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए, हमें भारत और चीन के बीच व्यापार की गतिशीलता, व्यापार संतुलन के आंकड़े और अन्य संबंधित तथ्यों का विश्लेषण करना होगा। भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध मात्रा के हिसाब से काफी बड़े हैं। पिछले कुछ वर्षों में, द्विपक्षीय व्यापार में लगातार वृद्धि देखी गई है। हालांकि, इस व्यापार का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह भारत के पक्ष में बहुत अधिक झुका हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत चीन से बड़ी मात्रा में तैयार माल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनरी, रसायन और फार्मास्युटिकल सामग्री का आयात करता है, जबकि चीन को निर्यात मुख्य रूप से कच्चे माल और कुछ अर्ध-तैयार उत्पादों तक सीमित रहता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल (अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक) भारत ने चीन को लगभग 16.67 अरब डॉलर का सामान बेचा। भारत ने चीन से लगभग 101.75 अरब डॉलर का सामान खरीदा। इसका मतलब है कि हमें लगभग 85.08 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अगर पूरे साल 2023 की बात करें तो दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 136.22 अरब डॉलर का था। भारत ने 16.67 अरब डॉलर का सामान बेचा। चीन से 119.55 अरब डॉलर का सामान आया। इस तरह हमें लगभग 102.88 अरब डॉलर का घाटा हुआ। उपरोक्त आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि भारत और चीन के बीच व्यापार में एक महत्वपूर्ण व्यापार घाटा है। भारत चीन से जितना आयात करता है, उसका एक छोटा सा हिस्सा ही निर्यात कर पाता है। यह व्यापारिक असंतुलन भारत को चीन पर आर्थिक रूप से कुछ हद तक निर्भर बनाता है।
हालांकि भारतीय व्यापारियों के चीन के साथ व्यापारिक संबंध तोड़ने में हिचकिचाहट के कई संभावित कारण हो सकते हैं जैसे कई भारतीय उद्योग अपने उत्पादन के लिए चीनी कच्चे माल, घटकों और मशीनरी पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर हैं। अचानक व्यापारिक संबंध समाप्त करने से इन उद्योगों में भारी व्यवधान आ सकता है, जिससे उत्पादन में कमी और लागत में वृद्धि हो सकती है। कुछ विशिष्ट उत्पादों और तकनीकों के लिए, भारत के पास चीन के अलावा तत्काल और लागत-प्रभावी विकल्प उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश और आपूर्ति श्रृंखलाओं को पुनर्गठित करने में समय और संसाधन लग सकते हैं। चीन एक विशाल बाजार है और कई भारतीय कंपनियां वहां अपने उत्पादों का निर्यात करती हैं। इस बाजार को खोना उनके लिए महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान का कारण बन सकता है। कुछ भारतीय व्यापारियों को यह डर हो सकता है कि चीन के साथ व्यापारिक संबंध तोड़ने से उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करने में कठिनाई होगी, खासकर यदि उनके प्रतिस्पर्धी अभी भी चीनी आपूर्तिकर्ताओं के साथ काम कर रहे हों।
हालांकि, इन आर्थिक कारणों के बावजूद, राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा के दृष्टिकोण से चीन के साथ व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार करना अत्यंत आवश्यक है। चीन न केवल पाकिस्तान का एक मजबूत समर्थक है, बल्कि सीमा विवादों और क्षेत्रीय प्रभुत्व को लेकर भारत के साथ उसके गंभीर मतभेद भी हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियां और भारत के पड़ोसी देशों के साथ उसके बढ़ते सैन्य और आर्थिक संबंध भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय हैं। इसके अतिरिक्त, यह ध्यान रखना जरूरी है कि भारत भी चीन के लिए बहुत बड़ा बाजार है। भारतीय उपभोक्ताओं की विशाल संख्या और बढ़ती क्रय शक्ति चीन के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती है। यदि भारतीय व्यापारी सामूहिक रूप से चीन के साथ व्यापारिक संबंध समाप्त करने का निर्णय लेते हैं, तो यह चीनी अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
अजरबेजान और तुर्की के साथ व्यापारिक संबंध समाप्त करने के भारतीय व्यापारियों के फैसले ने एक शक्तिशाली मिसाल कायम की है कि राष्ट्रीय हित व्यापारिक लाभ से ऊपर हैं। अब, इस सिद्धांत को चीन के मामले में भी लागू करने का समय आ गया है। यह सच है कि चीन के साथ व्यापारिक संबंध तोड़ने से भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ अल्पकालिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा, राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा और चीन को एक स्पष्ट संदेश देगा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है।
भारतीय व्यापारियों को अब इस दिशा में तेजी से और निर्णायक रूप से कदम उठाना चाहिए। उन्हें सरकार के साथ मिलकर एक चरणबद्ध योजना तैयार करनी चाहिए ताकि चीनी आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके और वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं का विकास किया जा सके। ‘राष्ट्र प्रथम’ का जो नारा उन्होंने अजरबेजान और तुर्की के मामले में बुलंद किया था, उसे चीन के साथ व्यापारिक संबंधों के संदर्भ में भी उतनी ही दृढ़ता से लागू करने का समय आ गया है। यह न केवल राष्ट्रीय कर्तव्य है, बल्कि एक आत्मनिर्भर और सुरक्षित भारत के भविष्य के लिए भी आवश्यक है।