आत्मीयता के प्रतिरूप : कृष्णचंद्र भार्गव (भैया जी)

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27 जुलाई जयंती विशेष पर

(दिव्यराष्ट्र के लिए लेखराम बिश्नोई)

जयपुर, दिव्य राष्ट्र/,भारतवर्ष के महान राष्ट्रसेवकों की परंपरा में अनेक ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। उन्हीं में से एक महान और सरल व्यक्तित्व थे कृष्णचंद्र भार्गव, जिन्हें संघ में स्वयंसेवक स्नेहपूर्वक भैया जी कहते थे। उनका जन्म 27 जुलाई, 1926 को अजमेर (राजस्थान) में कन्हैयालाल भार्गव के घर हुआ। उनका जीवन कार्य, समर्पण, त्याग, आत्मीयता और संगठन निष्ठा का एक अनुपम उदाहरण है।
भैया जी एक शिक्षित, सम्पन्न एवं प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे थे। उनके बड़े भाई पुलिस विभाग में डी.एस.पी. थे। इस पद पर उन दिनों प्रायः अंग्रेज ही होते थे। वे पढ़ाई के साथ-साथ हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों में भी निपुण थे। 1941 में जब उनके मित्र शाखा जाने लगे, तो वे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। इसके बाद उनका जीवन देश और समाज के लिए समर्पित हो गया।
1942 में उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भाग लिया। बाद में उन्होंने 1943, 1944 और 1946 में संघ के तीनों वर्ष का प्रशिक्षण पूर्ण कर प्रचारक जीवन को चुना। सबसे पहले उन्हें बीकानेर में जिला प्रचारक का दायित्व दिया, जहां उन्होंने 20 रुपये में खरीदी साइकिल से जिले का प्रवास किया।
1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा और वे 17 महीने तक बीकानेर जेल में बंद रहे। जेल में उन्हें सामान्य अपराधियों जैसा भोजन मिलता था, परंतु उन्होंने कभी आत्मबल नहीं खोया।
कठिनाइयों और प्रतिबंध के बाद भी उन्होंने संघ के कार्य में कोई कमी नहीं आने दी। चुरू, अजमेर, जोधपुर जैसे विभागों में उन्होंने प्रचारक के रूप में कार्य किया। असम की नम जलवायु के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयाँ हुईं, पर वे फिर राजस्थान लौटकर पुनः संघ कार्य में जुट गए। वे सादा जीवन जीते थे और कई बार विभाग प्रचारक होते हुए भी साइकिल से ही प्रवास करते थे।
1952 में गोरक्षा आंदोलन के लिए हुए हस्ताक्षर अभियान में उन्होंने पुष्कर मेले में प्रदर्शनी लगाई, जिसे लाखों लोगों ने देखा और समर्थन दिया। भैया जी एक अच्छे गायक, वंशीवादक, चित्रकार और दंड के प्रशिक्षक भी थे। वे हर व्यक्ति से आत्मीयता से मिलते थे और इसीलिए उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति उन्हें नहीं भूलता। वे होली जैसे पर्व पर रंग नहीं खेलते थे, बल्कि किसी को एक सुंदर चित्र भेंट करते थे। वे कांग्रेस सांसद मुकुट बिहारी भार्गव जैसे लोगों से भी श्रद्धानिधि एकत्र कर लेते थे – यह उनके आत्मीय व्यवहार और सामाजिक समरसता की अद्भुत मिसाल है।
1975 के आपातकाल में वे भूमिगत रहे, परन्तु एक दिन मौलवी के वेश में पुलिस ने उन्हें पहचान लिया और वे मीसा के तहत बंद कर दिए गए। प्रतिबंध हटने के बाद उन्हें सहप्रांत प्रचारक, फिर 1987 में प्रांत प्रचारक और बाद में 1992 में क्षेत्र प्रचारक नियुक्त किया गया। 1998 में वे क्षेत्र सेवा प्रमुख और 1999 में क्षेत्र प्रचारक प्रमुख बने।
उनका जीवन अत्यंत सादा और अनुशासित था। उनका पूरा सामान एक थैले में समा जाता था। उसमें लटकता एक तामचीनी का मग उनका तकिया भी बन जाता था। वे स्वयंभू नहीं, आत्मीयता से जुड़ने वाले थे। वे संघ कार्य में एक प्रेरणा, एक सच्चे आदर्श स्वयंसेवक और समर्पित कार्यकर्ता थे।
14 मई, 2011 को जोधपुर में उनका निधन हुआ। परंतु उनका जीवन आज भी हजारों कार्यकर्ताओं को सेवा, समर्पण और आत्मीयता का मार्ग दिखा रहा है।
भैया जी का जीवन राष्ट्रसेवा, सादगी और आत्मीयता का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने संघ कार्य में जिस निष्ठा, प्रेम और त्याग का परिचय दिया, वह आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। उनका जन्मदिवस 27 जुलाई हम सबको यह संकल्प देता है कि हम भी अपने जीवन को समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित करें। वे वास्तव में “आत्मीयता के प्रतिरूप” थे।

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