बच्ची कॉकरेच मारने के लिये घर पर बनाये गये जहरीले घोल को गलती से पी गई थी, समय पर इलाज और विशेषज्ञ देखभाल से बची जान
मुंबई, दिव्यराष्ट्र/– नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने हाल ही में दो साल की एक बच्ची की जिंदगी बचाने में सफलता हासिल की। बच्ची ने खेलते समय गलती से घर में बना एक कॉकरेच मारने वाला घोल (बेकिंग सोडा और चीनी का मिश्रण) पी लिया था, जो उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता था।
बच्ची को बेहद गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया था। घोल पीने के कुछ घंटों के भीतर ही बच्ची को उल्टी, खून की उल्टी, होंठों में सूजन और मुंह में कई दर्दनाक छाले जैसे गंभीर लक्षण दिखने लगे।
शुरुआत में बच्ची को एक अन्य अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर उसे नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक इंटेन्सिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) में शिफ्ट किया गया। वह काफी असहज और परेशान थी, उसका दिल तेजी से धड़क रहा था और उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। हल्की सी घरघराहट के बावजूद बच्ची का ऑक्सीजन स्तर सामान्य था और उसे अतिरिक्त ऑक्सीजन की ज़रूरत नहीं पड़ी। जांच में होठों और मुंह के अंदर घाव साफ़ नज़र आए।
डॉक्टरों ने पूरी सावधानी से जांच की प्रक्रिया अपनाई, जिसमें एंडोस्कोपी ( ओजीडी स्कॉपी) और खून की जांच शामिल थी। एक हफ्ते बाद किए गए बैरियम निगलने के टेस्ट से पता चला कि बच्ची की भोजन नली में सिकुड़न (एसोफैजियल स्ट्रिक्चर) हो गई है — जो एक गंभीर स्थिति है और जिसमें लंबे समय तक चलने वाले इलाज और धीरे-धीरे किए जाने वाले ऑपरेशन की जरूरत होती है।
शुरुआती इलाज के दौरान बच्ची को तीन हफ्तों तक कुछ भी खाने-पीने नहीं दिया गया। उसे पीआईसीयू में रखा गया, जहां उसे नसों के जरिए पोषण (टीपीएन) और हाई-ग्रेड एंटीबायोटिक्स दिए गए। कुछ समय बाद उसे धीरे-धीरे खाना शुरू कराया गया। लेकिन भोजन नली में लगातार बनी सिकुड़न की वजह से उसे कई बार बैलून डाइलेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा, जो कई महीनों तक चला।
इलाज के दौरान कुछ जटिलताएँ भी सामने आईं — जैसे फेफड़ों और छाती के बीच संक्रमण (मीडियास्टिनाइटिस) और फेफड़ों में हवा भरना (न्यूमोथोरैक्स)। इसके चलते बच्ची को दोबारा पीआईसीयू में भर्ती करना पड़ा, जहां इंटरकोस्टल ड्रेन (आईसीडी) डाला गया और उसकी नाज़ुक हालत को संभालने के लिए विशेष दवाओं (इनोट्रोप्स) का सहारा लिया गया। आखिरकार छह महीने की लंबी चिकित्सकीय देखरेख के बाद बच्ची की जि़ंदगी बचाने के लिए एक जटिल लेकिन अहम सर्जरी — गैस्ट्रिक पुल-अप के साथ फीडिंग जेजुनोस्टॉमी — की गई।
डॉ. रसिक शाह, सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक सर्जरी, नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, “बच्चों में होने वाली कॉरोसिव इंजरी यानी कि ऐसी चोट जो तेज़ केमिकल के कारण शरीर के अंदर और बाहर जलने जैसी हालत पैदा करे, बेहद गंभीर और जटिल हो सकती हैं। इस केस में हमें इलाज के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा — भोजन नली में सिकुड़न से लेकर इलाज के बाद की जटिलताएँ तक। लेकिन गैस्ट्रिक पुल-अप सर्जरी की सफलता और बच्ची का दोबारा मुंह से खाना खा पाना हमारे पूरी पीडियाट्रिक टीम की मेहनत और समन्वय का परिणाम है।”
ऑपरेशन के बाद की देखभाल में स्कोपियों की निगरानी और पोषण संबंधी सहायता शामिल थी। बच्ची ने धीरे-धीरे मुंह से खाना लेना शुरू किया और पीआईसीयू, एनेस्थीसिया, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और सर्जरी टीमों की समन्वित देखभाल में निरंतर सुधार करती गई। इमरजेंसी से लेकर आईसीयू, ऑपरेशन थिएटर और पोस्ट-ऑपरेटिव के हर चरण में अस्पताल की मल्टी-डिसिप्लिनरी प्रोटोकॉल ने न केवल उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि एक स्थिर और सफल रिकवरी में भी अहम भूमिका निभाई — जिससे वह सामान्य रूप से खाना खाने की ओर लौट सकी।
डॉ. ज़ुबिन परेरा, फ़ैसिलिटी डायरेक्टर, नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, यह मामला यह दिखाता है कि बच्चों के लिए इंटीग्रेटेड पीडियाट्रिक केयर कितनी ज़रूरी है। इमरजेंसी, क्रिटिकल केयर और एडवांस सर्जरी – जब ये सभी सुविधाएं एक ही छत के नीचे मिलती हैं, तो इलाज का असर और बेहतर होता है। हमारी टीम ने चौबीसों घंटे मेहनत की ताकि बच्ची को पूरी तरह ठीक किया जा सके।’’