नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र/ नमामि गंगे मिशन के अधिकारियों ने लोकसभा चुनाव के सातवें चरण से ठीक पहले गंगा की सफाई पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की टिप्पणी को भ्रामक बताते हुए भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है।
नमामि गंगे मिशन के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यह मिशन 2014 में शुरू हुआ था। शुभारंभ के बाद से ही इस मिशन के तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों के कायाकल्प के लिए अपशिष्टजल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, घाट के विकास, वृक्षारोपण, जैवविविधता संरक्षण समेत विभिन्न कार्यक्रम चला संचालित किए जा रहे हैं। यह मिशन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में किस हद तक सफल रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र ने नमामि गंगे मिशन को दुनिया की शीर्ष 10 संरक्षण पहलों में शामिल किया।
गंगा में बढ़ी ऑक्सीजन की मात्रा—
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की पांच राज्यों पर केंद्रित हालिया सर्वे में गंगा जल की गुणवत्ता में सुधार का उल्लेख है। गंगा के पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा पहले से बेहतर हुई है। इसी का परिणाम है कि गंगा में डॉल्फिन समेत विभिन्न जीवों की संख्या पूर्व के मुकाबले बढ़ी है।
डब्लूआईआई के मुताबिक गंगा में लगभग 4000 डॉल्फिन हैं। वहीं, गंगा बेसिन वाले 5 राज्यों में बीओडी की मात्रा नियंत्रित हुई है। जहां पहले यह आंकड़े चिंताजनक थे, वहीं अब इनमें पहले से काफी सुधार आया है। इन सभी जगहों पर बीओडी की मात्रा 3 से कम हुई है। नदी में प्रवाह की पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए 10 अक्टूबर 2018 को गंगा नदी के लिए पर्यावरणीय प्रवाह को अधिसूचित किया गया था। यह देश में अपनी तरह का पहला निर्णय था।
सीवरेज उपचार क्षमता में वृद्धि—
नमामि गंगे मिशन के अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान में, गंगा नदी के किनारे बसे शहरों में सीवरेज उपचार क्षमता 3110 एमएलडी हो चुकी है। मिशन के दूसरे चरण की समाप्ति तक इसमें 3108 एमएलडी की और बढ़ोतरी होगी। अधिकारियों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुईं राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) की बैठकों के अलावा केंद्रीय जलशक्ति मंत्री की अध्यक्षता में गठित टास्कफोर्स की अब तक 11 बैठक हो चुकी है। आईआईटी के समूह के अलावा सी-गंगा ने नमामि गंगे मिशन के विभिन्न पहलुओं पर 22 रिपोर्ट तैयार की।
पारदर्शी प्रक्रिया—
परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोपों को निराधार बताते हुए मिशन के अधिकारियों ने कहा कि प्रोजेक्ट से जुड़ी सभी प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों की इनमें दिलचस्पी लेना इस बात का प्रमाण है। सीवरेज परियोजनाएं 40 से अधिक कंपनियों को दी गई हैं। परियोजनाओं का आवंटन पारदर्शी बोली प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। वहीं, नमामि गंगे में वित्तीय प्रबंधन और वित्तीय अनुशासन की पर्याप्त व्यवस्था संस्थागत है, जिसकी निरंतर समीक्षा की जाती है। वित्तीय वर्ष के अंत में अप्रयुक्त शेष राशि राजकोष में वापस कर दी जाती है।