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कादेड़ा में मां बगुलामुखी शक्तिपीठ

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जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ माँ बगलामुखी, दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप हैं, जो शत्रुओं का स्तम्भन करती हैं और भक्तों को वाकसिद्धि विजय और मोक्ष प्रदान करती हैं। इनको उपासना से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में शांति और सफलता प्राप्त होती है।

कादेड़ा में मां का चमत्कारी आगमन
जयपुर जिले के कादेड़ा कस्बे में स्थित मां बगलामुखी शक्तिपीठ की स्थापना 19 अप्रैल 2017 को आशुतोष बगुलामुखी पीठाधीश्वर महाराज के संरक्षण में हुई। एक विशेष साधना के दौरान मां ने उन्हें आदेश दिया कि हे पुत्र, मेरा धाम अब कादेड़ा में स्थापित करो। मैं स्वयं वनखंडी से चलकर वहां वास करूंगी’ इस दिव्य संदेश के अनुसार, मां बगुलामुखी वनखंडी से चलकर कादेड़ा धाम में प्रकट हुई।
तंत्र-मंत्र की सात्विक साधना का केंद्र यह शक्तिपीठ तंत्र मंत्र की सात्विक साधना का प्रमुख केंद्र बन चुका है। यहां साधक शत्रु बाधाओं से मुक्ति, वाकसिद्धि और जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए माँ की उपासना करते हैं। पीले वस्त्र, हल्दी की माला और पीले फूलों से मां की पूजा की जाती है, जो उनकी पीताम्बरा स्वरूप को दर्शाता है।
श्रद्धालुओं का केंद्र आमजन से लेकर विशिष्ट हस्तियां तक कादेड़ा धाम में आम श्रद्धालुओं के साथ-साथ कई फिल्मी सितारे, टीवी कलाकार राजनेता, उद्योगपति और नामचीन हस्तियां भी माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। वे वहां आकर अपने जीवन के संकटों और चुनौतियों के समाधान के लिए माता श्री के चरणों में अरदास करते हैं।
स्वर्णमयी मंदिर 51 किलो सोने से सजेगा मां का धाम
मां बगुलामुखी का यह मंदिर 51 किलो शुद्ध सोने से निर्मित होने
की दिशा में अग्रसर है। इसका उद्देश्य केवल भव्यता नहीं बल्कि मां की दिव्यता को प्रतीकात्मक रूप प्रदान करना है। स्वर्णमयी मंदिर बनने के पश्चात यह धाम केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि चे अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाएगा।
चमत्कारिक अनुभवों का केंद्र कई भक्तों ने यहां आकर अपने जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन महसूस किए हैं। वर्षों पुरानी अदालती लड़ाइयों में विजय, पारिवारिक विवादों में समाधान, आर्थिक संकटों से मुक्ति और मानसिक शांति की प्राप्ति जैसे अनुभवों ने इस धाम को एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र में परिवर्तित कर दिया है।
जैसा कि आशुतोष महाराज कहते हैं ‘यह मंदिर किसी मानव की कल्पना नहीं बल्कि मां बगुलामुखी की साक्षात प्रेरणा का प्रतिफल है। एक ऐसी प्रेरणा जो वनखंडी से चलकर कादेड़ा में स्वयं विराजमान हुई।

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