दिव्यराष्ट्र, जयपुर: स्कोलियोसिस एक चिकित्सीय स्थिति है जिसमें रीढ़ की हड्डी एक ओर असामान्य रूप से मुड़ जाती है, जिससे वह “एस” या “सी” आकार की दिखाई देती है। यह स्थिति अक्सर बच्चों और किशोरों में वृद्धि की अवधि के दौरान देखी जाती है, लेकिन यह वयस्कों में भी हो सकती है। यह मामूली लक्षणों से शुरू हो सकती है, लेकिन यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा कर सकती है।
जयपुर, एसएमएस अस्पताल के न्यूरोसर्जन डॉ. अरविंद शर्मा और आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अवतार सिंह बलावत के अनुसार, “स्कोलियोसिस के बारे में जागरूकता बढ़ाना इसके प्रारंभिक पहचान, प्रभावी उपचार और बेहतर प्रबंधन के लिए अत्यंत आवश्यक है। खासकर बच्चों में इसका जल्दी पता चलना जरूरी है, क्योंकि वृद्धि के समय उनकी रीढ़ की हड्डी तेजी से आकार बदलती है। अगर इसे जल्दी पहचान लिया जाए, तो इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है और इससे बच्चों के विकास, शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर दीर्घकालिक प्रभावों से बचा जा सकता है। समय पर जांच इसमें अहम भूमिका निभाती है।”
डॉ. अरविंद शर्मा बताते हैं, “नेविगेशन और इंट्राऑपरेटिव न्यूरोमॉनिटरिंग जैसी तकनीकी प्रगति ने विकृति सुधार सर्जरी को और अधिक सुरक्षित बना दिया है। स्कोलियोसिस सर्जरी के बाद कई रोगियों को दर्द से राहत, बेहतर मुद्रा और सांस लेने में सुधार मिलता है, जिससे उनका दैनिक जीवन काफी बेहतर हो जाता है और वे अधिक स्वतंत्रता से जीवन जी सकते हैं।”
डॉ. अवतार सिंह बलावत कहते हैं, “सर्जरी के बाद मरीज पाचन में सुधार, बेहतर संतुलन और मानसिक रूप से भी अधिक सकारात्मक अनुभव करते हैं। यदि सही समय पर सर्जरी की जाए और सभी एहतियात बरते जाएं, तो इसके दीर्घकालिक लाभ इसके जोखिमों से कहीं अधिक होते हैं।”
स्कोलियोसिस के सामान्य लक्षणों में असमान कंधे या कमर, एक तरफ का कूल्हा ऊंचा होना, एक ओर पसलियों का ज्यादा उभरा होना, रीढ़ में स्पष्ट वक्रता दिखाई देना, और वयस्कों में लगातार पीठ दर्द शामिल हो सकते हैं। इसका निदान शारीरिक परीक्षण और एक्स–रे जैसे इमेजिंग टेस्ट द्वारा किया जाता है, जो रीढ़ की वक्रता को विस्तार से दिखाते हैं।
उपचार की विधियाँ वक्रता की तीव्रता, रोगी की आयु और सामान्य स्वास्थ्य पर निर्भर करती हैं। हल्के मामलों में केवल नियमित निगरानी पर्याप्त हो सकती है। मध्यम वक्रता वाले बच्चों और किशोरों के लिए ब्रेसिंग की सलाह दी जाती है ताकि वक्रता को बढ़ने से रोका जा सके। व्यायाम और स्ट्रेचिंग जैसी फिजिकल थेरेपी से मुद्रा सुधारने, मांसपेशियों को मजबूत करने और असुविधा को कम करने में मदद मिलती है। गंभीर मामलों में, वक्रता को ठीक करने और रीढ़ को स्थिर करने के लिए सर्जरी (स्पाइनल फ्यूजन) की आवश्यकता हो सकती है।