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मणिपाल हॉस्पिटल, सॉल्ट लेक ने भयानक दुर्घटना में घायल कारोबारी के हाथ को सुरक्षित बचाया

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कोलकाता: दिव्यराष्ट्र/ ज़िंदगी एक पल में बदल सकती है। एक पल में सब कुछ सामान्य होता है, और अगले ही पल कुछ ऐसा हो जाता है जिसके बारे में व्यक्ति ने कभी सोचा न हो, और फिर उसके भविष्य की दिशा ही बदल जाती है। बारासात के रहने वाले 66 साल के कारोबारी, गोपाल रॉय का मामला भी कुछ ऐसा ही था। एक सामान्य सा लगने वाला दिन कभी न ख़त्म होने वाले बुरे सपने में बदल गया। दरअसल उस दिन एक दुर्घटना में वे बाइक से गिर गये और एक बस उसके हाथ पर चढ़ गई, जिससे उनका हाथ गंभीर रूप से घायल हो गया। उन्हें और उनके परिवार को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भागना पड़ रहा था, और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा। शुरुआती डायग्नोसिस के नतीजे दिल दहला देने वाले थे। उनका हाथ में लगी चोट इतनी गंभीर थी कि उसे ठीक नहीं किया जा सकता था। हड्डियाँ टूट चुकी थीं और उनके उस हाथ को काटे जाने की नौबत आ गई थी। उन्होंने उम्मीद खोनी शुरू कर दी थी, और अंत में उन्हें सॉल्ट लेक के मणिपाल हॉस्पिटल ले जाया गया, जहाँ विशेषज्ञ सर्जनों की एक टीम ने उनके हाथ के साथ-साथ उनके जीवन जीने के तरीके को बचाने को अपना मिशन बना लिया।
डॉ. आर्या रॉय, कन्सल्टेंट- ऑर्थोपेडिक (हाथ एवं कलाई) सर्जन, मणिपाल हॉस्पिटल, सॉल्ट लेक, ने कहा, “अक्सर ऐसे मामलों में सारा ध्यान मरीज की जान बचाने पर होता है, और किसी अंग में लगी चोटों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन मणिपाल जैसे सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल में, हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि शरीर के हर अंग को उचित उपचार मिले, जिसकी उसे ज़रूरत है। अगर रॉय को लाने में कुछ घंटे की देरी हुई होती, तो शायद हम भी उनका हाथ नहीं बचा पाते। समय और विशेषज्ञता के बेहद नाज़ुक संतुलन की वजह से ही यह संभव हो पाया।”
उनके सभी महत्वपूर्ण अंगों की हालत स्थिर थी, लेकिन उनके हाथ को काफी गंभीर चोट पहुँची थी। ऑपरेशन थियेटर को एक बहुत ही नाजुक और बेहद जोखिम भरी प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया, जो लगभग तीन घंटे तक चली। हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट था — हम खून के बहाव को पहले जैसा बनाना, टूटी हड्डियों को स्थिर करना और अंगुलियों को फिर से ठीक करना चाहते थे। हाथ की एक अंगुली को ठीक करना संभव नहीं होने के कारण उसे काटना पड़ा, लेकिन हाथ के बाकी हिस्से को बचा लिया गया।
प्रारंभिक सर्जरी तो बस शुरुआत थी। दो दिन बाद, सॉल्ट लेक के मणिपाल हॉस्पिटल में प्लास्टिक एवं रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के कन्सल्टेंट, डॉ. सईद फैज़ल की निगरानी में रॉय को एक और प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया, “चोट बहुत गंभीर थी। पहले हमें लगा कि इसके लिए फ्लैप कवरेज की ज़रूरत हो सकती है, जो अक्सर हाथों में गंभीर चोट के मामलों में आवश्यक होता है। हालाँकि, प्रक्रिया शुरू करने के बाद हमने पाया कि उनका हाथ उम्मीद से बेहतर स्थिति में था। जैसा कि कहा गया है कि स्किन ग्राफ्टिंग की ज़रूरत थी, और हमने हर संभव तरीके से बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने के लिए बेहद सावधानी से काम किया। हमने हर कदम पर, हाथ की कामकाजी क्षमता को फिर से पहले जैसा बनाने को सबसे ज़्यादा अहमियत दी।”
इसके कुछ दिनों के बाद रॉय को कुछ फटे हुए टेंडन की मरम्मत करने और हाथ की संरचना को मजबूत करने के लिए एक और सर्जरी करवानी पड़ी। दिन-प्रतिदिन उनकी हालत बेहतर होती चली गई। कप पकड़ना, कोई वस्तु उठाना या यहाँ तक कि अपनी उंगलियों पर नियंत्रण महसूस करना जैसी छोटी-छोटी बातें भी उनके ठीक होने के सफ़र में नई उपलब्धियाँ बन गईं।

मरीज के बेटे, अर्पण रॉय ने इस आपबीती के बारे में बात करते हुए कहा, “उनके ठीक होने का सफ़र काफी लंबा रहा है, लेकिन जिस तरह से डॉक्टर हर कदम पर हमारे साथ खड़े रहे, उससे बहुत फ़र्क पड़ा। मणिपाल हॉस्पिटल पहुँचने से पहले दो अन्य अस्पतालों ने हमें मना कर दिया था। लेकिन यहाँ इमरजेंसी रूम में पहुँचते ही हमें पता चल गया कि, हम सही जगह पर आ गए हैं। डॉ. आर्या रॉय और डॉ. सईद फैज़ल ने सिर्फ़ मेरे पिता का इलाज ही नहीं किया; उन्होंने हमें उम्मीद भी दी। मेरे पिता के हाथ के कुछ हिस्सों में लगभग कोई टिश्यू नहीं बचा था, इसके बावजूद टीम ने हार नहीं मानी। उन्होंने हाथ को बिल्कुल सही सलामत बचाने के लिए अपनी ओर से हर संभव तरीका अपनाया।

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