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भगवान परशुराम किसी जाति के आराध्य नहीं बल्कि वे मानव मात्र के आराध्य

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(परशुराम जयंती पर पंडित रवि दत्त शास्त्रीद्वारा दिव्यराष्ट्र के लिए)

सामाजिक बैमनस्यता फैलाकर सनातन धर्म व सनातन संस्कृति के वैभव को धूमिल करने के कुत्सित प्रयास के तहत् भगवान परशुराम द्वारा 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की बात का पूर्णतः झूठा प्रचार किया गया है और आज भी किया जा रहा है।

भगवान परशुराम जी ने युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मान्ध और आतताई राजाओं का संहार किया था। सनातन विरोधी शक्तियों ने शायद इन्ही 21 दुष्ट राजाओं के संहार की घटना को विकृत कर 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने वाली बात में परिवर्तित कर दिया। भगवान परशुराम के बारे में “दुष्ट क्षत्रम् विनाशाय” शब्द आया है । यहां क्षत्रम् का अर्थ क्षत्रिय नहीं बल्कि क्षत्र या क्षत्रप है जिसका आशय राजा होता है।

भगवान परशुराम जी ने दुष्ट राजाओं का संहार, किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं बल्कि मानव मात्र के कल्याण हेतु सुख, शांति, समृद्धि और वैभवशाली विश्व की स्थापना के लिए किया। अतः हमारा दायित्व है कि भगवान परशुराम जी के लोक कल्याणकारी रूप को समाज के सम्मुख रखकर उन्हें मानव मात्र का आराध्य बनाएं और उनके प्राकट्योत्सव को लोक उत्सव बनाएं।

परशुराम भगवान विष्णु के 10 अवतारों में छठे और 24 अवतार में 18 वे क्रम पर विराजमान है lपरशुराम का अवतार वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था lराजा प्रसनजीत की सुपुत्री रेणुका और भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि के पांच पुत्रों में सबसे छोटे परशुराम है जिन्हें शिव की कृपा से दिव्य परशु प्राप्त हुआ lशिवतेज से प्रकाशित परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा जाता हैl आचार्य द्रोण को दुर्लभ ब्रह्मास्त्र का ज्ञान देने वाले, भीष्म पितामह को अस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाले, परशुराम से जब कर्ण नकली ब्राह्मण बनकर समस्त विद्या सीखने गएl एक बार जंगल में परशुराम थक गए , तब वे कर्ण की गोद में सिर रख कर सो गए lतभी एक कीड़ा करण की जांघ पर आ गया और खून पीने लगा lगुरु की नींद में बाधा न पड़े इस बात का ख्याल कर कर्ण बिना हिले डोले बैठे रहे जब परशुराम की नींद खुली तो उन्होंने कर्ण से सारी बात पता कर लीl

परशुराम बोले तुम ब्राह्मण नहीं हो सकते क्योंकि कोई ब्राह्मण कुमार इतना कष्ट नहीं सह सकताl तुमने मेरे साथ छल किया है इसीलिए मैंने जो विद्या तुम्हें सिखाई है जरूरत के समय तुम उसे भूल जाओगे lमहाभारत युद्ध में कर्ण के साथ ऐसा ही हुआl श्री परशुराम से जुड़े तीर्थ स्थान ,कुंड और देवालय पूरे देश में है जहां हर वर्ष परशुराम जयंती के दिन रौनक देखने बनती हैl सचमुच शस्त्र और शास्त्र के समन्वय वाले प्रणम्य देव है” परशुराम ” जिन्हें चिरकाल से महेंद्र पर्वत पर निसार करने के कारण चिरंजीवी देवता भी कहा जाता है l

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