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कैलाश मानसरोवर यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव

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जयपुर दिव्यराष्ट्र/ कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए रवाना हुए तीसरे जत्थे में जयपुर के एकमात्र यात्री नंदकिशोर शर्मा ने कैलाश मानसरोवर की अपनी यह यात्रा 23 जून से आरंभ कर, जुलाई 15, 2025 को पूरी की। झील का दर्शन करने पर अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। कभी झील का पानी बेहद सफेद तो कभी हल्का नीला तो कभी गहरा नीला दिखाई देता है। रात्रि के समय झील के पानी में एक अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। कैलाश की परिक्रमा के कैलाश पर्वत में शिव के अस्तित्व का एहसास भी प्रत्येक यात्री को अभिभूत कर देता है। हर दिशा से कैलाश पर्वत का स्वरूप अलग-अलग दिखाई देता है। शिव के धाम पर जाने के बाद यात्री शिवमय हो जाते हैं। यह यात्रा उनके जीवन की अविस्मरणीय यात्रा बन जाती है।

शिवपुराण, स्कंदपुराण और मत्स्यपुराण जैसे ग्रंथो में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का धाम बताया गया है मान्यता है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का स्थाई निवास है जहाँ वह माता पार्वती और अपने पुत्रों के साथ विराजमान है। इसे मेरु पर्वत भी कहा गया है ‘मेरुः पृथ्वीराज नाभिः’ यानी यह धरती की नाभि है।इसी कारण यह स्थानधरती पर स्वर्ग है

मानसरोवर यात्रा प्रधानमंत्री की पहल पर आरंभ की गई है। विदेश मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्राकेलिएऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होने के बाद कंप्यूटर द्वारा चयन किया जाता है ।50- 50 यात्रियों के 15 बैच बनाकर जिसमे 10 बैच सिक्किम से नाथुला दर्रे से होकर 21 दिन में कैलाश मानसरोवर की यात्रा पूरी करते हैं।
5 बैच उत्तराखंड से यात्रा करते हैं जिन्हें यात्रा पूरी करने में 22 दिन का समय लगता है।
पांच वर्षों के बाद से शुरु हुई ये यात्रा 30 जून से शुरू हुई जो 25 अगस्त 2025 तक चल रही है
इस यात्रा के दो रूट हैं जिनमे पहला नाथुला रूट (सिक्किम) दिल्ली- गंगटोक, नाथुला, तिब्बत और मानसरोवर जबकि दूसरा लिपुलेख रूट (उत्तराखंड) दिल्ली, पिथौरागढ़, धारचूला, गंजी, लिपुलेख दर्रा, तिब्बत और मानसरोवर है।

धरती पर स्वर्ग है कैलाश मानसरोवर । यह स्थान न सिर्फ सनातन धर्म को मानने वालों के लिए है बल्कि जैन, बौद्ध और सिखों के लिए भी आस्था का केंद्र है।

कैलाश पर्वत के पास स्थित पवित्र मानसरोवर झील विशेष महत्व है। मानसरोवर का अर्थ है मन से उत्पन्न पवित्र जल। यह मान्यता है कि मानसरोवर झील में स्नान करने के से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
मानसरोवर को स्कंदपुराण और वायुपुराण में ‘ऋषियों की तपोभूमि और शिव -पार्वती का स्नान स्थल’ कहा गया है।

कैलाश पर्वत चीन नियंत्रित तिब्बत क्षेत्र में स्थित है। इस पर्वत की ऊंचाई लगभग 6638 मी (22028फीट)है। यह पर्वत किसी भी धर्म या देश की सरकार द्वारा अस्पृश्य घोषित है जिस पर अभी तक कोई भी आधिकारिक रूप से नहीं चढ़ पाया है। तीर्थयात्री अपनी यात्रा में कैलाश की 38 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं और मानसरोवर झील से बाल्टी भरकर झील के पास स्नान करते हैं। मानसरोवर झील समुद्र तल से लगभग 4500 मी (15000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है ।जो मीठे पानी की दुनिया की सबसे ऊंचाई वाली झीलों में से एक है। इसके पास स्थित राक्षस झील खारे पानी की है।

नाथुला दर्रे से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर निकले तीसरे जत्थे में जयपुर के नंदकिशोर शर्मा ने पूरे भारतवर्ष से आये यात्रियों के साथ मिलकर ओम नमः शिवाय ,जय भोलेनाथ, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं, हर हर महादेव, जयकारा वीर बजरंगी, हर हर महादेव, भोले की फौज करेगी मौज ,भारत माता की जय ,वंदे मातरम आदि नारों से भारत के साथ-साथ चीन और तिब्बत में भी गूंजायमान कर वहाँ की आम जनता को भी जयघोष करने को मजबूर कर दिया।

कैलाश मानसरोवर यात्रा विदेश मंत्रालय के मार्गदर्शन मे सिक्किम की ओर से जाने रास्ते से यात्रियों से 2,83,000 रुपये प्रति यात्री लिया जाता है।साथ इस मार्ग पर करीब 38 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी होती है।
साथ ही उत्तराखंड के रास्ते से जाने वाले तीर्थ यात्रियों से 1,74,000रुपये लिए जाते हैं। इस मार्ग पर 200 किलोमीटर की परिक्रमा
करनी पड़ती है। कुछ राज्यों द्वारा यात्रियों को अनुदान की भी व्यवस्था की गई है।
यह यात्रा कैलाश मानसरोवर भवन गाजियाबाद से शुरू होकर वापस कैलाश मानसरोवर भवन गाजियाबाद में समाप्त होती है।

नन्द किशोर शर्मा ने बताया कि स्वर्गीय कैलास आचार्य उदय कौशिक सन 2000 से कैलाश यात्रा के संचालन देख रहे थे। 2014 तक वे दिल्ली सरकार तीर्थ यात्रा विकास समिति के चेयरमैन रहे और इस दौरान उन्होंने आज की कैलाश यात्रा का प्रारूप बनाया। चेयरमैन रहते वे इस यात्रा को नई दिल्ली स्थित अशोक यात्री निवास से श्री दिल्ली गुजराती समाज सदन ले कर गए, जहाँ यात्रियों को पहली बार रुकने के लिए वातानुकूलित जगह उपलब्ध कराई एवं 4 दिन के रात्रि भोजन की भी व्यवस्था की गई।
इसके अतिरिक्त उन्होंने इस दौरान दिल्ली एवं अनेक अन्य राज्यों ( उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान आदि) द्वारा सब्सिडी भी शुरू करायी। उन्होंने हर यात्री दल को एक परिवार की तरह जोड़ कर विदा करा और उससे भी अच्छे से उन का वापस आने पर स्वागत करा। जब यात्रियों को खाने की व्यवस्था सरकार की तरफ़ से नहीं थी, तब वे अपने घर से हर यात्रियों के लिए खाना बनवा कर लाते थे और बड़े प्रेम से खिलाते थे।
फिर उदय कौशिक को कैलाश मानसरोवर यात्री राष्ट्रीय स्वागत परिषद (पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार) में वाईस चेयरमैन बनाया गया। इस दौरान उन्होंने एक प्रथा बनायी कि हर बैच को सुबह 4 बजे हवन करा कर विदा करते थे एवं लिपुलेख से जाने वाले सभी जत्थों को अपनी तरफ़ से कैलाश यात्रा में चाइना में रुकने के दौरान जो भी राशन होता था ,वो देते थे। इसी दौरान वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले एवं उन्होंने कैलाश मानसरोवर भवन की ग़ाज़ियाबाद में नींव रखी। कैलाश मानसरोवर भवन को बहुत भावनाओं से और तप से बनवाया, इस भवन को बना रहे मज़दूरों को रोज़ पूजा करके प्रसाद बांटते थे और फिर यहाँ कैलाश से लाए हुए शिवलिंग को स्थापित किया। इस शिवलिंग को कैलाश विनायक महादेव कहा जाने लगा और 5 साल तक रोज़ इनका अभिषेक कर प्रार्थना की । आखिरकार 2025 में यहाँ से यात्रा शुरू हुई और पहले बैच को आरती करा विदा कर उनके साथ ही उदय कौशिक ने 15 जून 2025 की सुबह अपना शरीर त्याग दिया।

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