चौथा रॉयल रणथंभौर इंटरनेशनल टाइगर वीक शुरू, एक्सपर्ट्स बोले- लोग सिर्फ बाघ देखने नहीं जंगल को समझने और बचाने को आगे आएं
:- तीन दिवसीय आयोजन में देश-विदेश के विशेषज्ञ, पर्यावरणविद् और राजनयिक ले रहे हैं भाग
सवाई माधोपुर/दिव्यराष्ट्र/ ‘बाघों का संरक्षण ग्रास रूट से शुरू होता है। बुनियादी स्तर पर बाघ किन-किन प्रजातियों और पारिस्थिकी पर ज़िंदा हैं, उसे बचाना होगा।’ बाघों के संरक्षण से जुड़े कुछ ऐसे ही तथ्य शुक्रवार को सामने आए। मौका रहा लिव4फ्रीडम की ओर से आयोजित तीन दिवसीय चौथे रॉयल रणथंभौर इंटरनेशनल टाइगर वीक 2025 (आईटीडब्ल्यू) के पहले दिन का। यहां विभिन्न सत्रों में वाइल्ड लाइफ, टुरिज़्म एक्सपर्ट्स और पर्यावरणविदों ने विचार रखे। राजस्थान सरकार के कृषि, बागवानी एवं ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा भी शनिवार को जंगल और ग्रामीणों से जुड़े विषयों पर बात रखेंगे।
‘इंसानों ने बिगाड़ा बाघों से आपसी संबंध’
राजस्थान वाइल्डलाइफ बोर्ड की सदस्य नम्रता भारती के स्वागत भाषण और दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का आगाज हुआ। “लिविंग विद द स्ट्राइप्स: ह्यूमन-टाइगर कॉन्फ्लिक्ट एंड रेजोल्यूशन” सत्र में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एम.के. रणजीतसिंह झाला और ‘टाइगर मैन’ दौलत सिंह शक्तावत ने मानव-बाघ संघर्ष के समाधान पर विचार साझा किए। एम.के. रणजीत सिंह झाला ने कहा कि बाघ मरने की खबर प्रकाशित हो जाती है लेकिन बाघ जिस जानवर पर ज़िंदा है उनकी तादाद ख़त्म होती जा रही है, कुछ प्रजातियां तो विलुप्त हो हैं उस पर गौर नहीं किया जाता। पर्यटकों के आधिक्य ने जंगलों का चरित्र ही बिगाड़ दिया है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बाघों की नज़र ने इंसान की कोई इज़्ज़त नहीं रह गई। जानवरों और इंसानों में एक आपसी संबंध होता है, वो इंसान ने ख़राब कर दिया है। नेशनल पार्कों में एक बाघ के पास बीस-तीस गाड़ियाँ चलती है, और उन्हें अटैक करने को मजबूर किया जा रहा हैं। हमारे नेशनल पार्क्स बुनियादी रूप से टूरिज्म के लिए नहीं बने थे लेकिन टूरिज्म ने अपने लिए पार्क्स बना लिए हैं। भारत में पर्यटन दोधारी तलवार बन गया है। लोग सिर्फ जंगल में टाइगर देखने जाते हैं, उसे ही सफलता मानते हैं, जंगल देखने, उसे समझने में नहीं। मॉडरेशन एनटीसीए के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक पी.एस. सोमशेखर ने किया। आईएएस विक्रम सिंह (निदेशक, पर्यटन विभाग व प्रबंध निदेशक आरटीडीसी) और कार्तिकेय शंकर (सहायक संपादक, आउटलुक ट्रैवलर) ने “ट्रैवल विद ए पर्पज़: सपोर्टिंग कंजर्वेशन थ्रू रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म” विषय पर बात रखी। सत्र का संचालन नवरोज़ डी. धोंडी ने किया। “रीवाइल्डिंग: इंडियाज़ कंजर्वेशन एथोस” सत्र में संगीतकार और संरक्षण कार्यकर्ता अभिषेक रे ने अनुभव साझा किए। इसी के साथ बाघ संरक्षण में जुटे रणथंभौर टाइगर रिज़र्व के कर्मियों के लिए एक विशेष स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया गया, जिससे उनके योगदान को सम्मान दिया जा सके। साथ ही, “बच्चों की नजर से बाघ का जीवन” विषय पर स्थानीय विद्यालयों के बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें बच्चों की रचनात्मकता और वन्यजीवों के प्रति प्रेम झलका।
सात कैटेगरी में दिए जाएंगे अवॉर्ड
आईटीडब्ल्यू के दूसरे दिन “राजस्थान – द क्राउन ज्वेल ऑफ टाइगर कंजर्वेशन”, “बियॉन्ड द जंगल – सिक्योरिंग टुमारोज़ हैबिटैट्स”, “गार्डियन्स ऑफ द वाइल्ड – इनोवेशन इन कंबैटिंग वाइल्डलाइफ क्राइम एंड पोचिंग” और “थ्रू द लेंस ऑफ द वाइल्ड – द राइज़ ऑफ वाइल्डलाइफ फिल्ममेकिंग इन इंडिया” जैसे विषयों पर संवाद सत्र आयोजित किए जाएंगे। साथ ही वन्यजीव संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को सात श्रेणियों में सम्मानित किया जाएगा। कार्यक्रम के विशेष आकर्षणों में ऑस्कर-नॉमिनेटेड फिल्ममेकर सुब्बैया नल्लामुथु की बाघों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग और रोमांचक वाइल्डलाइफ सफारी भी शामिल हैं। गौरतलब है कि इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आयोजन में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, राजस्थान सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, बाघ संरक्षण में सक्रिय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, बाघ आबादी वाले देशों के राजनयिक, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और लेखक भाग ले रहे हैं।