(डॉ.सीमा दाधीच)
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रथम सरसंंग चालक डॉ केशव राव बलिराव हेडगेवार द्वारा रोपित संघ बीज आज सम्पूर्ण विश्व में वट वृक्ष की तरह स्थापित होकर हिंदुत्व के प्रति श्रद्धा का भाव रखकर प्रखर राष्ट्रवाद की भावना प्रत्येक हिंदुस्तानी में जगा रहा है। डॉ.केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हिन्दू नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम बलिराम पंत और माता का नाम रेवतीबाई था। उनके परिवार का परिवेश पारंपरिक और धार्मिक विचारों से युक्त था। बचपन से ही क्रांतिकारी और ओजस्वी प्रवृति के रहे और उन्हें अंग्रेज शासको से घृणा थी। हेडगेवार अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे। जब वे महज 10 साल की उम्र में थे तब रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50 वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई को फेंक कर विदेशी राज्य की खुशियां मनाने से इनकार कर दिया था।
स्कूली जीवन में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़कर बालक हेडगेवार के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विचारों के बीज अंकुरित हो गये । स्कूल में पढ़ते समय निरीक्षण के लिए आए अंग्रेज इंस्पेक्टर के सामने अपने कुछ सहपाठियों के साथ “वन्दे मातरम” के जयघोष से स्वागत किया जिस पर अंग्रेज इंस्पेक्टर बिफर गया और उसके आदेश पर केशव राव को स्कूल से निकाल दिया गया और इनकी आगे की पढ़ाई पूना के नेशनल स्कूल से पूरी हुई। हेडगेवार ने 1910 में मेडिकल की शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए ,उस वक्त इनका कई क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ और वहां से इनको काफी कुछ सीखने को मिला।
डॉक्टरी की शिक्षा पूरी करने के बाद वह बंगाल की अनुशीलन समिति में भी शामिल हुए थे इनको देश भर में क्रांतिकारी सामग्री और शस्त्र आदि के वितरण का जिम्मा सौंपा गया था, वहां रहते रहते अनुशीलन समिति के अनुभवों से ही इन्होंने संगठनात्मक क्षमता सीख ली, लेकिन अनुशीलन समिति से जल्दी ही वे दूर हो गए, क्योंकि उन्हें तब महसूस हुआ कि क्रांतिकारी गतिविधियों के जरिए लोंगो को जोड़ना बहुत मुश्किल है,इसीलिए उन्होंने कांग्रेस से जुड़ने का फैसला किया, ताकि लोगों को देश की आजादी के लिए जोड़ सके। डॉ. हेडगेवार 1916 के कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में शामिल हुए थे,वे समकालीन हिंदू नेताओं के साथ हिंदू विचारक बाल गंगाधर तिलक,बंकिम चंद्र चटर्जी जैसे नेताओं से भी बहुत प्रभावित हुए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने युवाओं को एकजुट करने का काम किया। लेकिन जल्दी ही कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया जब इन्होंने देखा कि किस तरह से खिलाफत आंदोलन को तवज्जो दी गई जबकि देश के हिंदुओं को जागने की जरूरत है।तब इनके भीतर नई क्रांति का बीज फूटा और 1925 को दशहरे के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक की स्थापना की जिसका लक्ष्य हिंदु समुदाय का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान था जिसके माध्यम से एकीकृत भारत की स्वतंत्रता को हासिल किया जा सकता है, हेडगेवार ने हिदुओं के लिए एक मंच के निर्माण की जरूरत महसूस की और यहीं से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस)की स्थापना के बीज पड़े, जिसमें डॉ हेडगेवार ने साम्प्रदायिकता का शिकार होने की जगह हिंदुओं के आत्म उत्थान और जागरण पर ज्यादा ध्यान दिया।
मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर साहब 1915 में नागपुर लौट गए और नए युग का आगाज ग्रैंड ओल्ड पार्टी ‘कांग्रेस’ से किया लेकिन उनको ये रास नहीं आई,आगे चलकर ये स्वयं पथ प्रदर्शक बने इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से संस्कारशाला की स्थापना की तब इनकी उम्र 36 वर्ष थी संघ की स्थापना जो दिखने में साधारण किन्तु परिणाम में चमत्कारी सिद्ध हुई।
हिंदुओं को संगठित कर एक माला मे पिरोने के ऐसे संगठन की स्थापना की जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है।
डॉ. हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को नागपुर में हुआ। उनके निधन के बाद भी उनकी विचारधारा और उनके द्वारा स्थापित संगठन, आरएसएस, भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में कार्यरत हैं। एक सोच जो लोगों को जोड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।