बदलाव का दशक
कभी जल संकट का पर्याय बने सीकर में जल क्रांति ने दबे पांव दस्तक दी
सीकर। दिव्यराष्ट्र/ बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष मानों सीकरवासियों की नियती बन गई थी। घर के बड़े-बुजुर्गों से लेकर महिलाओं तक की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा पानी के इंतजाम में चला जाता। जल संकट की वजह से युवाओं के बेहतर भविष्य का सपना भी धुंधलाने लगा था, पर अब हालात बदल चुके हैं। कभी जल संकट का पर्याय बने सीकर में जल क्रांति ने दबे पांव दस्तक दी। न कोई शोर शराबा, न कोई ढोल नगाड़ा। हालात बदले तो कल तक जिस सीकर में पानी के लिए संघर्ष था, वहां अब आंखों में बेहतर भविष्य के सपने पल रहे हैं। यह क्षेत्र टिकाऊ जल प्रबंधन का नायाब उदाहरण बन चुका है। जहां चेक डैम्स ने जल प्रबंधन के जरिए इक्का दुक्का लोग ही नहीं बल्कि एक पूरी पीढ़ी में आशा का संचार किया है।
राजपुरा गांव के 70 वर्षीय किसान सुवाराम क्षेत्र में हुए बदलावों को बताते हैं। हरे-भरे खेतों की तरफ इशारा करते हुए सुवाराम कहते हैं कि 1955 में जब मैं यहां आया था, तब पानी की बहुत कमी थी। आज इस डैम के 20 किलोमीटर के दायरे में हर कोई सफलतापूर्वक खेती कर सकता है। सुवाराम अकेले नहीं हैं। ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जिनकी जिंदगी अब बदल चुकी है। यह संभव हुआ है आनंदना-कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन और सोशल एक्शन फॉर रुरल एडवांसमेंट (सारा) के सक्रिय सहयोग के चलते।
पूरे क्षेत्र में रणनीतिक रूप से स्थित चेक डैम्स ने जल उपलब्धता और प्रबंधन में क्रांति ला दी है। ये संरचनाएं भले ही साधारण दिखाई देती हैं, लेकिन इनमें मानसून के पानी को रोकने के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। इनकी खासियत है कि ये धीरे-धीरे पूरे वर्ष भूजल को पुनर्भरित करती हैं, जिसके परिणाम किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। जो कुएं पहले सूख चुके थे, अब उनमें पूरे साल पानी रहता है। यही नहीं क्षेत्र में जल स्तर में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे पूरे क्षेत्र की कृषि क्षमता में गुणात्मक सुधार आया है। इन चेक डैम्स का प्रभाव उनकी कंक्रीट संरचनाओं से कहीं अधिक व्यापक है। वे जल सुरक्षा की नींव पर बने एक नए अर्थतंत्र के निर्माता बन गए हैं। जहां एक समय किसान अपने सूखे हुए खेतों को देख हर समय चिंतित रहते थे, आज वे आत्मविश्वास से अपनी विविध फसलों को उपजा रहे हैं।
सुवाराम का खेत इस कृषि पुनर्जागरण का एक उदाहरण है। सुवाराम गर्व से कहते हैं कि हमें इस पानी से बहुत लाभ हुआ है। हमारी आय में 25 से 80 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। कृषि में विकास केवल दोगुना नहीं हुआ है, यह सौ गुना बढ़ा है। सुवाराम का यह दावा अतिशयोक्ति नहीं हैं। आंकड़ें भी उनके दावों की पुष्टि करते हैं। हकीकत तो यह है कि सीकर में इस तरह की सकारात्मक कहानियां भरी पड़ी हैं।
आंगनबाड़ी में काम कर रही 40 वर्षीय बजरी देवी की जिंदगी अब बदल चुकी है। अब उन्हें पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ती। घर में लगे नल से पानी मिल जाता है। उनके लिए सब्जी उगाने से लेकर हस्तशिल्प का उत्पाद बनाना आसान हो गया है।
कृषि उत्थान से आगे सामाजिक-आर्थिक बदलाव
जल की उपलब्धता ने स्थानीय समुदाय के जीवन के हर पहलू को छुआ है। शिक्षा के स्तर में भी सुधार हुआ है। परिवार को अब पानी की चिंता नहीं करनी पड़ती। लिहाजा वे बच्चों को नियमित स्कूल भेज सकते हैं। क्षेत्र के सिर पर हमेशा पलायन का खतरा मंडराता था, वो भी अब टल चुका है। युवा अब अपनी पैतृक भूमि से ही आर्थिक लाभ उठा रहे हैं। इस जनसंख्या स्थिरता ने सीकर के सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डाला है। गांव, जो कभी युवाओं के पलायन से पीड़ित थे, अब जीवंत समुदाय बन गए हैं। जहां कई पीढ़ियां एक साथ काम करती हैं, ज्ञान साझा करती हैं और भविष्य के लिए निर्माण करती हैं।
स्थानीय बाजार भी हो गए जीवंत
स्थानीय बाजार जीवंत हो गए हैं, क्योंकि बढ़ी हुई कृषि उपज से अधिक व्यापारिक अवसर सामने आए हैं। जल संसाधनों की कमी के कारण असंभव माने जाने वाले छोटे उद्योग अब उभरने लगे हैं, जो एक अधिक विविध और स्थायी स्थानीय अर्थव्यवस्था बना रहे हैं। नवाचार ने जड़ें जमा ली हैं। जैसे कि सुवाराम जैसे किसान पॉलीहाउस और ड्रिप सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं, जो जल उपयोग को कम करते हुए उपज को अधिकतम करते हैं। सौर ऊर्जा से संचालित सिंचाई प्रणालियां भी क्षेत्र में दिखने लगी हैं। किसान अब उच्च मूल्य वाली फसलों के साथ प्रयोग कर रहे हैं, जिन्हें इस शुष्क क्षेत्र में पहले उगाना असंभव था।