(30-09-1883 से 12-10-1968 )
मारवाड़ के रेगिस्तान मे शिक्षा कि अलख जगाने वालो मे
चौधरी गुल्लाराम का नाम स्वर्णिम अक्षरो मे अंकित है।
चौधरी_गुल्लाराम का जन्म जोधपुर जिले की तह्सील भोपालगढ़ के गाँव रतकुड़िया में विक्रम संवत आश्विन कृष्णा 14 (30 सितम्बर 1883) को एक साधारण बेन्दा गोत्र के जाट किसान परिवार में हुआ। इनके पिताजी का नाम गेनाराम बेन्दा और माताजी का नाम श लालीबाई था। सात भाई बहिनों में उनका पांचवां स्थान था. आपका बचपन ग्रामीण परम्परा के अनुसार गायें चराते हुए गाँव में ही बीता. आपकी पढ़ने की बहुत इच्छा थी परन्तु गायें चराने के लिए कोई दूसरी व्यवस्था न होने और गाँव में कोई स्कूल न होने के कारण औपचारिक शिक्षा न ग्रहण कर पाए. परन्तु कृषि कार्य से जब भी समय मिलता गाँव के गुरूजी के पास जाकर बैठ जाते और थोड़े समय में अक्षर ज्ञान और गिनती सीख ली. 18 वर्ष की आयु में खांगटा गाँव के चौधरी श् अमराराम गोदारा की पुत्री इंदिराबाई से उनका विवाह हुआ.।
शासकीय_सेवा
1900 में चौधरी गुल्लाराम ने पढने की इच्छा तथा नौकरी की तलाश में जोधपुर आए.। जोधपुर रेलवे स्टेशन के मैनेजर टॉड ने उनको गैंगमेन के पद पर काम लगाया.। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ते थे बीमार पड़ने के कारण रेलवे का काम छुट गया. फ़िर आप आबू चले गए जहाँ पर श्रमिकों को पानी पिलाने का काम किया. साथ ही हिन्दी और गुजराती तथा अंगरेजी का ज्ञान प्राप्त किया. एक दिन आपको अंगरेजी बोलता देखकर आबू हाई अकूल के प्रिंसिपल वी. अच. स्केल्टन ने 1 अक्टूबर 1901 चौधरी गुल्लाराम को डेरी के काम में लगा दिया. उनकी योग्यता तथा मेहनत से प्रभावित होकर चौधरी गुल्लाराम को डेरी सहायक तथा बाद में डेरी प्रबंधक नियुक्त किया. 7 अप्रेल 1904 तक आपने डेरी का काम संभाला. परन्तु अंग्रेज अधिकारी की रंगभेद नीति के कारण काम छोड़कर जोधपुर आ गए. यहाँ पर रेलवे के इन्जीनियरिंग विभाग में मेट की नौकरी कर ली. मि. स्केल्टन को जब गलती का अहसास हुआ तो पुनः आबू बुलाया और 1909 में पुनः डेरी का मनेजर बना दिया. 1912 में स्केल्टन के विदेश जाने पर डेरी बंद कर दी और आपको जोधपुर भेज दिया जहाँ पर सार्वजनिक निर्माण विभाग में नक्शा बनाने और भूमी का सर्वे करने का काम दिया. काम में कुशल होने से आपको 1 मार्च 1914 को ओवरसियर बना दिया तथा आबू, जस्वन्तपुर, सांचौर, भीनमाल आदि के भवनों की देख रेख का जिम्मा आपको सौंपा. आपका मुख्यालय आबू था जहाँ 1924 तक आप रहे इसके बाद स्थानांतरण पिचिकिया बाँध पर कर दिया. बेडा ठाकुर पृथ्वी सिंह की मांग पर आपको 1 जनवरी 1924 को बेडा ठिकाने का मुख्य कामदार बना दिया. 1926 में जोधपुर सरकार ने नीलगिरी उटकमंड में एक विशाल भवन ख़रीदा जिस के देख रेख के लिए आपको 7 मार्च 1927 को प्रबंधक नियुक्त किया. 1948 तक आप वहीं सेवा करते रहे और वहीं से सम्मान पूर्वक राजकीय सेवा से अवकाश ग्रहण किया.
आजादी के पूर्व मारवाड़ में किसानों की हालत,*
जिस समय चौधरी गुल्लाराम जी का जन्म हुआ, उस समय मारवाड़ में किसानों की हालत बडी दयनीय थी। मारवाड़ का 83 प्रतिशत इलाका जागीरदारों के अधिकार में था इन जागीरदारों में छोटे-बडे सभी तरह के जागीदार थे। छोटे जागीरदार के पास एक गांव था तो बडे जागीरदार के पास बारह से पचास तक के गांवो के अधिकारी थें और उन्हें प्रशासन, राजस्व व न्यायिक सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे। ये जागीरदार किसानों से न केवल मनमाना लगान (पैदावार का आधा भग) वसूल करते थे बल्कि विभिन्न नामों से अनेक लागबाग व बेगार भी वसूल करते थें किसानों का भूमि पर कोई अधिकार नहीं था और जागीरदार जब चाहे किसान को जोतने के लिए दे देता थां किसान अपने बच्चों के लिए खेतों से पूंख (कच्चे अनाज की बालियां) हेतु दो-चार सीटियां (बालियां) तक नहीं तोड सकता था।
शिक्षा_प्रचार*
चौधरी गुल्लाराम ने मारवाड़ के किसानों की हालत सुधारने का बीडा उठाया. निमंत्रण मिलने पर आप चौधरी मूल चंद सियाग नागौर के साथ 27 मार्च 1921 को संगरिया जाट स्कूल के वार्षिक जलसे में पहुंचे, जिसका सभापतित्व करने रोहतक से सर छोटूराम आए थे. समय लेकर उन्होने अलग से सर छोटूराम से मिले और मारवाड़ के जाट किसानों की समस्या के समाधान और उनकी जागृति तथा उत्थान के लिए परामर्श किया. उन्होंने सलाह दी कि वे राजनैतिक और सामाजिक उत्थान से पहले किसानों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अपनी प्रतामिकता बनायें और शासन सत्ता के विरोध में अपनी शक्ति का अपव्यय न करें. इसलिए यह तय किया गया की सबसे पहले मारवाड़ के किसानों को शिक्षित किया जाए ।
चौधरी गुल्लाराम एक निश्चित विचार लेकर संगरिया से लौटे. रास्ता बनाने के लिए सर्वप्रथम चौधरी सर छोटूराम को 1921 की गर्मियों में अपने गाँव रतकुड़िया आमंत्रित किया. एक बड़ा जुलूस गाँव में होकर निकाला गया. सभा हुई जिसमें सर छोटूरामजी ने शिक्षा तथा संगठन पर भाषण दिया. इस तरह वातावरण अनुकूल बनाकर चौधरी गुल्लाराम ने 1 जुलाई 1921 को गाँव के पास उम्मेद स्टेशन पर एक पाठशाला स्थापित कर मास्टर नैनसिंह को बच्चों को पढाने का कार्य सौंपा. 1924 तक यह पाठशाला रही जिसका समस्त व्यय आपने वहन किया, परन्तु किसी का सहयोग न मिलने तथा जातीय भाई अशिक्षित होने के कारण इस स्कूल का फायदा नहीं उठा सके और यह पाठशाला बंद हो गयी.
चौधरी गुल्लाराम ने हार नहीं मानी. अक्टूबर 1925 में कार्तिक पूर्णिमा को अखिल भारतीय जाट महासभा का एक अधिवेशन पुष्कर में हुआ था उसमें मारवाड़ के जाटों में जाने वालों में चौधरी गुल्लाराम, चौधरी मूलचंद जी सियाग, मास्टर धारासिंह, चौधरी रामदान जी, भींया राम सिहाग आदि पधारे थे. इस जलसे की अध्यक्षता भरतपुर के तत्कालीन महाराजा किशनसिंह ने की. इस समारोह में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली के अलावा राजस्थान के हर कोने से जाट सम्मिलित हुए थे. इन सभी ने पुष्कर में अन्य जाटों को देखा तो अपनी दशा सुधारने का हौसला लेकर वापिस लौटे. उनका विचार बना की मारवाड़ में जाटों के पिछड़ने का कारण केवल शिक्षा का आभाव है.।
जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर” की स्थापना*
कुछ समय बाद चौधरी गुल्लाराम के रातानाडा स्थित मकान पर चौधरी मूलचंद सिहाग नागौर, चौधरी भिंयारामजी सिहाग परबतसर, चौधरी गंगारामजी खिलेरी नागौर, बाबू दूधारामजी और मास्टर धारा सिंह की एक मीटिंग हुई. यह तय किया गया कि किसानों से विद्या प्रसार के लिए अनुरोध किया जाए. तदनुसार 2 मार्च 1927 को 70 जाट सज्जनों की एक बैठक राधाकिसन मिर्धा की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में चौधरी गुल्लारामजी ने जाटों की उन्नति का मूलमंत्र दिया कि – “पढो और पढाओ” . साथ ही एक जाट संस्था खोलने के लिए धन की अपील की गयी. यह तय किया गया कि बच्चों को निजी स्कूल खोल कर उनमें भेजने के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजा जाय पर उनके लिए ज्यादा से ज्यादा होस्टल खोले जावें. चौधरी गुल्लाराम ने इस मीटिंग में अपना रातानाडा स्थित मकान एक वर्ष के लिए छात्रावास हेतु देने, बिजली, पानी, रसोइए का एक वर्ष का खर्च उठाने का वायदा किया. इस तरह 4 अप्रेल 1927 को चौधरी गुल्लाराम के मकान में “जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर” की स्थापना की ।
1930 तक जब जोधपुर के छात्रावास का काम ठीक ढंग से जम गया और जोधपुर सरकार से अनुदान मिलने लग गया तब चौधरी मूलचंद , बल्देवराम जी मिर्धा, भींया राम सियाग, गंगाराम खिलेरी, धारासिंह एवं अन्य स्थानिय लोगों के सहयोग से बकता सागर तालाब पर 21 अगस्त 1930 को नए छात्रावास की नींव नागौर में डाली । बाद में चौधरी रामदान के सहयोग से बाडमेर में व 1935 में चौधरी पूसराम पूलोता, डांगावास के महाराज कमेडिया, प्रभु घतेला, तथा बिर्धरामजी मेहरिया के सहयोग से मेड़ता में छात्रावास स्थापित किया गया.
उन्होने जाट नेताओं के सहयोग से अनेक छात्रावास खुलवाए । बाडमेर में 1934 में चौधरी रामदानजी डऊकिया की मदद से छात्रावास की आधरसिला राखी । 1935 में मेड़ता छात्रवास खोला । आपने जाट नेताओं के सहयोग से जो छात्रावास खोले उनमें प्रमुख हैं:- सूबेदार पन्नारामजी ढ़ीन्गसरा व किसनाराम जी रोज छोटी खाटू के सहयोग से डीडवाना में, ईश्वर रामजी महाराजपुरा के सहयोग से मारोठ में, भींयाराम सीहाग के सहयोग से परबतसर में, हेतराम के सहयोग से खींवसर में छात्रावास खुलवाए । इन छात्रावासों के अलावा पीपाड़, कुचेरा, लाडनुं, रोल, जायल, अलाय, बीलाडा, रतकुडि़या, आदि स्थानों पर भी छात्रावासों की एक श्रंखला खड़ी कर दी । इस प्रकार मारवाड़ के जाट नेताओं जिसमें चौधरी बल्देवराम मिर्धा, चौधरी गुल्लाराम, चौधरी मूलचंद, चौधरी भींयारामजी, चौधरी रामदान बाडमेर आदि प्रमुख थे, ने मारवाड़ में छात्रावासों की एक श्रंखला स्थापित करदी तथा इनके सुचारू संचालन हेतु एक शीर्ष संस्था “किसान शिक्षण संस्थान जोधपुर” स्थापित कर जोधपुर सरकार से मान्यता ले ली, जिसे सरकार से छात्रावासों के संचालन हेतु आर्थिक सहायता प्राप्त होने लगी इस शिक्षा प्रचार में मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़ा होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया ।
चौधरी गुल्लाराम जहाँ अपनी सारीशक्ति छात्रावासों में लगाते थे, वहीं होनहार व मेधावी गरीब छात्रों को अपनी जेब से आर्थिक सहायता भी देते थे. कुछ बच्चों को तो उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए भी आर्थिक मदद की. जिन छात्रों को आपने विशेष सहायता दी उनमें प्रमुख हैं गुरुदयालसिंह, रामदयालसिंह, मुन्शीसिंह, ओमप्रकाश जाट, जालूराम प्रजापत आदि.
मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के संस्थापक
सन् 1937 में चटालिया गांव के जागीरदार ने जाटों की 8 ढाणियों पर हमला कर लूटा और अमानुषिक व्यवहार किया । चौधरी साहब को इससे बड़ी पीड़ा हुई और उन्होंने तय किया की जाटों की रक्षा तथा उनकी आवाज बुलंद करने के लिए एक प्रभावसाली संगठन आवश्यक है । अतः जोधपुर राज्य के किसानों के हित के लिए 22 अगस्त 1938 को तेजा दशमी के दिन परबतसर के पशु मेले के अवसर पर “मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा” नामक संस्था की स्थापना की । चौधरी मूलचंद इस सभा के प्रधानमंत्री बने, चौधरी गुल्लाराम जी रतकुडिया इसके अध्यक्ष नियुक्त हुए और भींया राम सिहाग कोषाध्यक्ष चुने गए । इस सभा का उद्देश्य जहाँ किसानों में में फ़ैली कुरीतियों को मिटाना था, वहीं जागीरदारों के अत्याचारों से किसानों की रक्षा करना भी था.
उन दिनों जगह-जगह सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें कुरीतियों को छोड़ने के प्रस्ताव पास किए गए. छात्रावासों के चंदे हेतु प्रति हल एक रूपया व विवाह के अवसर पर तीन से ग्यारह रुपये तक लिए जाने तय किए. इन उपदेशकों में ठाकुर हुकुमसिंह व भोलासिंह, उपदेशक, अखिल भारतीय जाट महासभा, हीरा सिंह पहाड़सर, पंडित दत्तुराम बहादरा, चौधरी गणपतराम , चौधरी जीवनराम , चौधरी मोहरसिंह आदि प्रमुख थे. इस प्रकार मारवाड़ के किसानों में कुरीतियों के निवारण में चौधरी गुल्लाराम जी अग्रणी व्यक्ती थे.
मारवाड़ किसान सभा की स्थापना
किसानों की प्रगती को देखकर मारवाड़ के जागीरदार बोखला गए । उन्होंने किसानों का शोषण बढ़ा दिया और उनके हमले भी तेज हो गए । जाट नेता अब यह सोचने को मजबूर हुए की उनका एक राजनैतिक संगठन होना चाहिए । सब किसान नेता 22 जून 1941 को जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर में इकट्ठे हुए जिसमें तय किया गया कि 27 जून 1941 को सुमेर स्कूल जोधपुर में मारवाड़ के किसानों की एक सभा बुलाई जाए और उसमें एक संगठन बनाया जाए । तदानुसार उस दिनांक को मारवाड़ किसान सभा की स्थापना की घोषणा की गयी और मंगल सिंह कच्छवाहा को अध्यक्ष तथा बालकिशन को मंत्री नियुक्त किया गया.
मारवाड़ किसान सभा का प्रथम अधिवेशन 27-28 जून 1941 को जोधपुर में आयोजित किया गया । मारवाड़ किसान सभा ने अनेक बुलेटिन जारी कर अत्याधिक लगान तथा लागबाग समाप्त करने की मांग की । मारवाड़ किसान सभा का दूसरा अधिवेशन 25-26 अप्रेल 1943 को सर छोटू राम की अध्यक्षता में जोधपुर में आयोजित किया गया । इस सम्मेलन में जोधपर के महाराजा भी उपस्थित हुए । वास्तव में यह सम्मेलन मारवाड़ के किसान जागृति के इतिहास में एक एतिहासिक घटना थी । इस अधिवेशन में किसान सभा द्वारा निवेदन करने पर जोधपुर महाराज ने मारवाड़ के जागीरी क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त शु्रू करवाने की घोषणा की । मारवाड़ किसान सभा जाटों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी । मारवाड़ के जागीरदारों ने इस घोषणा का कड़ा विरोध किया. अपनी विभिन्न सभाओं में भूमि बंदोबस्त का सामुहिक विरोध करने हेतु सेटलमेंट के कर्मचारियों के साथ सहयोग न करने का निश्चय किया तथा भूमि नापने की सर्वे झंडियों को अनेक गावों से हटा दिया. सरकार ने इसपर जागीरदारों को कड़ी चेतावनी दी तथा बोरावड व खींवसर ठाकुर के ख़िलाफ़ कार्यवाही की. परिणामस्वरुप सेटलमेंट कार्य का विरोध तो बंद हो गया, परन्तु जागीरदारों ने अब किसानों को आतंकित करना शुरू कर दिया. जगह जगह किसानों पर हमले किए गए. लाटा न लाटना, पशुओं को नीलाम करना, नई-नई लागें लगाना, झूठे मुकदमें बनाना, खेती करने से रोकना, चोरियाँ करवाना आदि रोजमर्रा के कार्य हो गए. किसानों द्वारा विरोध करने पर जागीरदारों ने अपने गुंडों व अजेंटों से उनके मकानों व खेतों को जला दिया गया, कईयों की सम्पति नष्ट कर दी, कईयों के अंगभंग व हत्याओं जैसे काण्ड भी हुए, जिसमें 13 मार्च 1947 का डाबाड़ा कांड प्रमुख है. इसमें 6 आदमी मारे गए और अनेकों घायल हुए. बाद में तो जागीरदारों द्वारा सरंक्सित कुख्यात डाकुओं की गोलियों से अनेक किसान शहीद हुए जिसमें 31 अक्टूबर 1951 को दीवाली के रामसामा के दिन मल्लार-भुन्दाना में 16 निरपराध किसानों को दिन दहाड़े गोलियों से भुनाने तथा पचासों को घायल करने की घटना विशेष उल्लेखनीय है. इस तरह जोधपुर राज्य के किसानों को सबसे अधिक बलिदान देने पड़े, जहाँ सामंतवाद अपने खुले बर्बर रूप में प्रकट हुआ. उस समय चौधरी बलदेव राम मिर्धा और चौधरी गुल्लारम को ही श्रेय था की आप दोनों ने किसानों को जागीरदारों से सीधे टकराने से रोका और उनसे सब भाँती शान्ति से काम लेने की अपील की. इसका नतीजा यह हुआ की मारवाड़ के किसान सब प्रकार की तकलीफों के बावजूद शांत बने रहे और व्यर्थ के खून-खराबे से बच सके. मारवाड़ के किसानों के मध्य बलदेव राम मिर्धा के बाद आपका ही दूसरा स्थान था.
रतकुड़िया स्कूल की स्थापना*
1948 में सरकारी सेवा से अवकाश लेने के बाद चौधरी गुल्लाराम जी पूर्ण रूप से शिक्षा को समर्पित हो गए. आपने गाँव रतकुड़िया में 1956 में निर्विरोध सरपंच बनाने के बाद एक शिक्षण संस्था स्तापित की. 1957 में इस संस्था को उच्च प्राथमिक, 1960 में माध्यमिक व 1962 में इसे उच्च माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत करवाया. 1963 में इसमें गणित व 1964 में जीव विज्ञान की कक्षा खुलवा कर तो आपने ग्रामीण विद्यार्थियों के लिए सुनहरे अवसरों के द्वार खोल दिए. आपने रात-दिन परिश्रम कर न केवल इस स्कूल के लिए विशाल भवन बनवाया बल्कि एक विशाल छात्रावास व अध्यापकों के लिए उन्नीस निःशुल्क आवास स्थापित कराये. 1956 से लेकर 1968 तक चौधरी गुल्लाराम ने इस विद्यालय के लिए घोर परिश्रम किया और अन्तिम समय तक इसकी उन्नति में लगे रहे. आपके प्रयास से ही इस स्कूल का उस समय पूरे राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में एक विशिष्ठ स्थान बन गया और यह विज्ञान के उन्नत शिक्षा केन्द्रों में गिना जाने लगा था, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने यहाँ आने लगे थे.इसके बारे में कहा गया है –
रतकुड़िया कुण जानतो, साधारण सो गाँव ।गुल्लाराम परकट कियो, मारवाड़ में नांव ।।धन्य धन्य तुम धन्य हो, चौधरी गुल्लाराम ।रतकुड़िया निर्मित कियो, विद्यालय शुभ धाम।।*
उनके पुत्रों में रामनारायण चौधरी व हरीसिंह् राजस्थान सरकार में चीफ इंजीनियर, सिंचाई विभाग से सेवानिवृत हुए जबकि चौधरी गोवर्धनसिंह् राजस्थान में जाट जाति के पहले आई ए एस अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त किया और राजस्थान सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए भी किसानों व जाट जाति के उन्नति के लिए काम करते रहे.
स्वर्गवास
इस महान शिक्षा प्रेमी, किसानों के हितेषी नेता और साहसी समाज सुधारक चौधरी गुल्लाराम का 12 अक्टूबर 1968 को स्वर्गवास हो गया. उनके स्वर्गवास के बाद परिवार ने इस संस्था को राजस्थान सरकार को समर्पित कर दिया और सरकार द्वारा उनके नाम पर इस विद्यालय का नाम “चौधरी गुल्लाराम राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रतकुड़िया” रखा गया है.।