
डायबिटिक मैकुलर एडिमा के बढ़ते बोझ पर प्रकाश डाला जाएगा
दिल्ली, दिव्यराष्ट्र/: एबवी, अभिनव दवाओं और समाधानों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, वैश्विक स्तर पर अग्रणी बायोफार्मास्युटिकल कंपनी ने विश्व रेटिना दिवस पर इंडिया हैबिटेट सेंटर, दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। डायबिटिक लोगों में दृष्टि हानि के प्रमुख कारणों में से एक, डायबिटिक मैकुलर एडिमा (डीएमई) पर प्रकाश डालना इस सम्मलेन का प्रमुख उद्देश्य था। क्लीवलैंड क्लिनिक की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 14 डायबिटिक में से 1 व्यक्ति को डीएमई होता है। मधुमेह के कारण होने वाली दृष्टि हानि को डायबिटीज़ मैक्युलर एडिमा (डीएमई) कहा जाता है, इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने और भारत में रेटिना की बढ़ती समस्याओं के बोझ से निपटने के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श करने के लिए मशहूर विशेषज्ञ एकत्रित हुए।
राष्ट्रीय सम्मेलन में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सबूतों पर आधारित उपचारों ने मरीज़ों के परिणामों में उल्लेखनीय सुधार किया है, फिर भी कई गंभीर चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। सीमित जागरूकता, उपचार के महंगे खर्च, बार-बार इंजेक्शन लगाने का बोझ और रेटिना देखभाल सभी को उपलब्ध न हो पाना, समय पर निदान और प्रभावी प्रबंधन में बाधा बन रही हैं। इन चर्चाओं में नीति-स्तरीय उपायों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया। राष्ट्रीय मधुमेह कार्यक्रमों में अनिवार्य रेटिना स्क्रीनिंग को शामिल करना, विशिष्ट रेटिना देखभाल सेवाओं का विस्तार करने के लिए सार्वजनिक और निजी भागीदारी को मज़बूत करना, और टियर-2 और टियर-3 शहरों में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करना आदि पर विचार-विमर्श किया गया।
एबवी इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर और जनरल मैनेजर,सुरेश पट्टाथिल ने कहा, “एबवी में, हमें गर्व है कि हम 75 वर्षों से अधिक की वैश्विक नेत्र देखभाल विशेषज्ञता के साथ, भारत में डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा (डीएमई) से पीड़ित 30 लाख लोगों के जीवन में सार्थक बदलाव ला रहे हैं। विश्व रेटिना दिवस पर आयोजित किए गए राष्ट्रीय सम्मेलन ने दृष्टि हानि पर मधुमेह के प्रभाव पर प्रकाश डाला है। अनुमान है कि, भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या 2045 तक 13.42 करोड़ तक पहुंचेगी, साथ ही दृष्टि हानि की समस्या भी बढ़ने की संभावना काफी ज़्यादा है। हम चाहते हैं कि, समस्या की जल्द से जल्द पहचान होना, उन्नत उपचारों तक पहुंच का विस्तार होना और नवीन समाधानों को अपनाना बहुत ज़रूरी है। हमारा लक्ष्य है, दृष्टि की रक्षा करना, मरीज़ों को मिलने वाले परिणामों को बेहतर बनाना और एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना, रोकथाम किए जाने योग्य अंधापन रहे ही नहीं।”
इस सम्मेलन में रेटिना देखभाल, एंडोक्रिनोलॉजी और स्वास्थ्य सेवा नीति के क्षेत्र में कार्यरत अग्रणी हस्तियों का प्रतिनिधित्व करते हुए, भारत भर के स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल्स का एक प्रतिष्ठित पैनल शामिल हुआ, जिसमें डॉ. ललित वर्मा, डॉ. महिपाल सचदेव, डॉ. आर. किम, डॉ. एम.आर. डोगरा, डॉ. चैत्रा जयदेव और डॉ. शशांक जोशी शामिल थे। इस पैनल ने डीएमई के बढ़ते बोझ और व्यापक नेत्र जांच तथा मरीज़-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर विचार-विमर्श किया। अधिकांश डायबिटिक मरीज़ डीएमई, सुलभ और किफायती उपचार के बारे में जानते भी नहीं हैं, इसलिए जन जागरूकता के ज़रिए समस्या की जल्द से जल्द पहचान करना ज़रूरी है।
चर्चाओं में उपलब्ध अलग-अलग उपचारों जैसे एंटी-वीईजीएफ शॉर्ट-एक्टिंग, कॉर्टिकोस्टेरॉइड लॉन्ग-एक्टिंग इम्प्लांट्स, और लेजर थेरेपी पर प्रकाश डाला गया।
विशेषज्ञों ने डीएमई और इसके दूरगामी परिणामों से निपटने के लिए साथ मिलकर कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया। डॉ. ललित वर्मा ने कहा, “डीएमई कामकाजी