नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र/ हर साल भारत में कई बच्चे गंभीर लिवर संबंधी बीमारियों से जूझते हैं, जैसे बायलरी एट्रेसिया, अनुवांशिक लिवर विकार या अचानक हुआ लिवर फेल्योर। ऐसे मामलों में लिवर ट्रांसप्लांट सिर्फ एक इलाज नहीं, बल्कि ज़िंदगी की आखिरी उम्मीद बन जाता है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है—ऑर्गन डोनेशन की भारी कमी।
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि बच्चों को लिवर ट्रांसप्लांट के लिए पूरा लिवर नहीं, बल्कि उसका एक हिस्सा ही पर्याप्त होता है, जो किसी स्वस्थ जीवित डोनर — जैसे कि माता-पिता या नजदीकी रिश्तेदार — से लिया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि लिवर शरीर का एकमात्र अंग है जो समय के साथ दोबारा विकसित हो सकता है। यही वजह है कि डोनर और रिसीवर दोनों पूरी तरह स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
अगर जीवित डोनर उपलब्ध न हो, तो ब्रेन डेड डोनर से प्राप्त लिवर भी किसी बच्चे की जान बचा सकता है। दुर्भाग्य से, जानकारी की कमी के कारण बहुत कम परिवार समय पर अंगदान के लिए तैयार होते हैं। जबकि एक सही समय पर लिया गया फैसला किसी बच्चे को फिर से हँसने, खेलने, स्कूल जाने और पूरी ज़िंदगी जीने का अवसर दे सकता है।
आज ही अपने परिवार से बात करें। उन्हें बताएं कि आप अंगदान करना चाहते हैं। आप नोटो (नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन) की वेबसाइट पर या नजदीकी अस्पताल में रजिस्टर कर सकते हैं। आपका एक फैसला किसी के लिए चमत्कार बन सकता है — एक नई सांस, एक नई जिंदगी।
एक पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट के रूप में, मैंने अपनी आंखों के सामने देखा है कि कैसे समय पर किया गया लिवर ट्रांसप्लांट किसी बच्चे को मौत के मुंह से खींचकर ज़िंदगी की ओर लौटा सकता है। यह सिर्फ एक इलाज नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत होती है।
ट्रांसप्लांट के बाद किसी बच्चे के चेहरे पर लौटती मुस्कान और फिर से भागदौड़ करते देखना किसी जादू से कम नहीं होता। अंगदान सिर्फ एक चिकित्सकीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि इंसानियत का प्रतीक है — एक बच्चे को उसका भविष्य लौटाने का माध्यम।
– डॉ. आदित्य कुलकर्णी, कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और हेपेटोलॉजी, नारायणा हेल्थ द्वारा प्रबंधित एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल,मुंबई