सप्त ऋषियों में शामिल, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाई जाती हैं जयंती
ब्राह्मण और राजपूत समाज में गौतम वंशज, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर समेत कई जिलों में भरपूर
(दिव्यराष्ट्र के लिए दिनेश गौतम.जयपुर)
महर्षि गौतम प्राचीन भारत के महान ऋषियों में से एक थे। जिनकी जयंती रविवार को मनाई गई। जयपुर, पुष्कर, सवाईमाधोपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, जोधपुर समेत 36 जिलों में धूमधाम से उनके वंशजों ने उनको याद किया। ये वही महर्षि गौतम हैं जिन्होंने करीब 2530 वर्ष पहले अपनी तपस्या, ज्ञान से न्याय शास्त्र की रचना की। इतना सटीक विश्लेषण किया कि आज सभी अदालत और कानून उनके सिद्धांत का अनुसरण कर रहे हैं। इसके अलावा वे धार्मिक ग्रंथों के लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। वे गौतम गोत्र के प्रवर्तक माने जाते हैं और उनके नाम पर ही यह गोत्र प्रसिद्ध हुआ। उनका उल्लेख वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
महर्षि गौतम को न्याय दर्शन का संस्थापक माना जाता है। उनके द्वारा रचित न्यायसूत्र भारतीय तर्कशास्त्र (लॉजिक्स) और दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उनके वंशजों को गौतम गोत्र से जोड़ा जाता है।
गौतम ऋषि आश्रम – उनका एक प्रसिद्ध आश्रम बिहार के गया और त्र्यंबकेश्वर, नासिक में बताया जाता है। त्र्यंबकेश्वर में उनकी पत्नी अहिल्या से जुड़ी कथा प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनकी पत्नी अहिल्या को इंद्र ने छल से मोहित किया था, जिससे नाराज होकर गौतम ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया। बाद में भगवान श्रीराम ने अहिल्या का उद्धार किया। ऋग्वेद, महाभारत और रामायण में महर्षि गौतम का वर्णन मिलता है।
महर्षि गौतम ने अपने न्याय दर्शन के माध्यम से ज्ञान और तर्कशक्ति पर विशेष बल दिया। उनका दर्शन सत्य, प्रमाण और तर्कशक्ति पर आधारित था, जो बाद में भारतीय दर्शन और न्यायशास्त्र की नींव बना। उन्होंने अनेक शिष्यों को ज्ञान प्रदान किया, जो आगे चलकर वेदों और शास्त्रों के प्रचारक बने। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी न्याय और तर्क के क्षेत्र में मार्गदर्शन देती हैं।
ऋग्वेद में गौतम ऋषि का उल्लेख मिलता है। वे अंगिरस वंश के ऋषि थे और अनेक वैदिक ऋचाओं के दृष्टा माने जाते हैं। वेदों में उनका एक महान ज्ञानी और तपस्वी के रूप में वर्णन किया गया है।
वाल्मीकि रामायण (बालकांड) में महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या की कथा प्रसिद्ध है। गौतम ऋषि ने त्र्यंबकेश्वर (नासिक) में अपना आश्रम स्थापित किया था।
महाभारत में महर्षि गौतम का उल्लेख उनके पुत्र शरद्वान के संदर्भ में किया गया है। उनके पुत्र शरद्वान महान धनुर्धर थे और उन्हें युद्धविद्या में अपार निपुणता प्राप्त थी। महर्षि गौतम स्वयं वेदों और शास्त्रों के ज्ञाता थे और कई राजाओं के गुरु भी रहे।
महर्षि गौतम का विभिन्न पुराणों में वर्णन मिलता है। ब्रह्माण्ड पुराण कहा गया है कि वे अपने समय के प्रमुख महर्षियों में से एक थे और उन्होंने धर्म और न्याय पर विशेष ज्ञान दिया।
वामन पुराण में उनके योगबल और तपस्या का वर्णन है। उनके तपोबल से कई देवता भी प्रभावित हुए।
पद्म पुराण में गौतम ऋषि को यज्ञ, तपस्या और वेदज्ञान का प्रमुख आचार्य बताया गया है। वहीं स्कंद पुराण के अनुसार गौतम ऋषि के आश्रम में कई वर्षों तक अकाल पड़ा था। उनके तपोबल से इंद्रदेव ने पुनः वर्षा की। वायु पुराण महर्षि गौतम को सप्तर्षियों में से एक बताया गया है।
न्याय दर्शन और महर्षि गौतम*
महर्षि गौतम ने न्याय सूत्र की रचना की, जो भारतीय न्याय दर्शन का आधार ग्रंथ है।
महर्षि गौतम और न्याय शास्त्र*
महर्षि गौतम भारतीय दर्शन के छह प्रमुख दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक न्याय दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने न्यायसूत्र नामक ग्रंथ की रचना की, जो भारतीय तर्कशास्त्र और न्यायशास्त्र की आधारशिला है।
न्याय दर्शन का मूल उद्देश्य तर्क (लॉजिक), प्रमाण (एविडेंस) और मोक्ष (मुक्ति) के मार्ग की खोज करना है। यह दर्शन सत्य को प्रमाणों के आधार पर जांचने और समझने की विधि सिखाता है।
न्याय शास्त्र की व्याख्याओं का पहला संशोधन 200 ईसा पूर्व – 400 ईस्वी में हुआ जिसमें वत्स्यायन ने न्यायसूत्र की पहली विस्तृत टीका लिखी।
इस टीका में मूल सूत्रों की विस्तार से व्याख्या की गई और कई नए तर्क जोड़े गए।
न्याय सूत्र का सबसे बड़ा बदलाव मंगेश उपाध्याय (13वीं सदी) द्वारा किया गया, जिन्होंने नव्य-न्याय की स्थापना की।
नव्य-न्याय ने तर्कशास्त्र को अधिक विश्लेषणात्मक और दार्शनिक बना दिया।
इसमें प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द आदि प्रमाणों की और गहरी व्याख्या की गई। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय न्याय दर्शन पर पाश्चात्य तर्कशास्त्र का प्रभाव पड़ा।
भारतीय न्यायविदों और दार्शनिकों ने न्यायसूत्र की तुलना आधुनिक लॉजिक से करनी शुरू की। न्यायशास्त्र पर कई अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत टीकाएँ लिखी गईं। गौतम ऋषि के मूल सूत्र वही हैं, लेकिन न्यायशास्त्र को समयानुसार विस्तारित और विकसित किया गया।
आधुनिक भारतीय दर्शन और न्याय प्रणाली में भी न्यायसूत्र के सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।
महर्षि गौतम का राजस्थान पर प्रभाव*
महर्षि गौतम का प्रत्यक्ष रूप से राजस्थान से कोई ऐतिहासिक संबंध ग्रंथों में स्पष्ट रूप से नहीं मिलता, लेकिन उनके विचार, परंपराएँ और गोत्र-परंपरा का इस क्षेत्र पर गहरा प्रभाव देखा जाता है। राजस्थान में उनकी शिक्षाओं, न्याय दर्शन, और गोत्र परंपरा के प्रभाव कई रूपों में देखे जा सकते है। राजस्थान में गौतम गोत्र के ब्राह्मण, राजपूत और अन्य जातियाँ पाई जाती हैं।
कई ब्राह्मण कुल (विशेष रूप से गुरु ब्राह्मण, सरस्वती ब्राह्मण और गौड़ ब्राह्मण) अपने गोत्र के रूप में गौतम गोत्र को मानते हैं।
राजपूतों और क्षत्रियों में भी गौतम गोत्र का प्रभाव मिलता है, जो अपनी वंशावली महर्षि गौतम से जोड़ते हैं।
जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, और अजमेर जिलों में गौतम गोत्र के ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदायों की अच्छी संख्या है।
मेवाड़ और मारवाड़ क्षेत्रों में कई कुल गौतम ऋषि से अपनी वंशावली मानते हैं।
राजस्थान में प्राचीनकाल में पंचायती राज और ग्राम न्याय प्रणाली न्यायसूत्र के सिद्धांतों पर आधारित थी।
पुष्कर को सप्तर्षियों में से एक गौतम ऋषि की तपोभूमि भी माना जाता है।
स्कंद पुराण और पद्म पुराण में वर्णन है कि गौतम ऋषि ने यहाँ गंगा प्रकट करने के लिए यज्ञ किया था।
स्थानीय ग्राम पंचायतों और कुल-सभा में न्याय दर्शन के सिद्धांतों का पालन किया जाता था। मरुस्थलीय क्षेत्रों में गौतम ऋषि से जुड़े लोकगाथाएँ मिलती हैं।
कुछ परंपराओं में माना जाता है कि गौतम ऋषि के शिष्य यहाँ आए और अपने आश्रमों की स्थापना की*
राजस्थान के पंडित और पुरोहित परंपरा में सप्तर्षियों की पूजा होती है, जिसमें महर्षि गौतम का भी स्थान है। उन्हें गोदावरी नदी के प्रकट होने का श्रेय दिया जाता है।
राजस्थान में जल संरक्षण और सरोवर निर्माण की परंपरा वैदिक कालीन संस्कृति से जुड़ी मानी जाती है, जिसका संबंध गौतम ऋषि की शिक्षाओं से जोड़ा जाता है।
महर्षि गौतम के तर्कशास्त्र का उपयोग वेदांत, बौद्ध और जैन दर्शन में भी हुआ।
न्यायशास्त्र ने आगे चलकर नव्या-न्याय के रूप में भारतीय दार्शनिक परंपरा को प्रभावित किया*
वे अंगिरस गोत्र के ऋषि थे। ऋषि शरद्वान महर्षि गौतम के पुत्र थे, जो धनुर्विद्या में निपुण थे। महाभारत में कौरवों और पांडवों के गुरु कृपाचार्य, गौतम वंश के थे।
यह गोत्र प्रमुख रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और कुछ वैश्य समुदायों में पाया जाता है।
कई राजवंश जैसे गुप्त, परमार, चालुक्य आदि अपने वंश को गौतम ऋषि से जोड़ते हैं।
भारत में कई तीर्थस्थल, जैसे त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र) और गया (बिहार), गौतम ऋषि से जुड़े हुए हैं।
न्यायसूत्र की मौलिकता और संरक्षण
न्यायसूत्र मूलतः गौतम ऋषि (500 ईसा पूर्व या उससे पूर्व) द्वारा रचित मानी जाती है। यह लगभग 528 सूत्रों (संक्षिप्त वाक्यों) में विभाजित है।
मूल ग्रंथ का संस्कृत सूत्र-रूप अब भी उपलब्ध है, न्यायसूत्र अपने प्रारंभिक स्वरूप में तो सुरक्षित रही, लेकिन विभिन्न आचार्यों और विद्वानों ने इसकी टीकाएँ लिखीं और इसे समय के अनुसार विस्तारित किया।