अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
(दिव्यराष्ट्र के लिए लेखाराम बिश्नोई, लेखक एवं विचारक)
प्रत्येक कार्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और अपने अधिकारों से अनजान महिलाओं को जागरूक करने व महिला समानता के अधिकार से उनके जीवन सकारात्मक और प्रभावी भूमिका के साथ परिवर्तन आए। प्राचीन भारतीय संस्कृति में नारी को सदैव ऊंचा स्थान मिला है। नारी को मर्यादा के क्षेत्र में पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ माना गया है। तथा स्त्री और श्री में कोई भेद नहीं किया गया। स्त्री के बिना कोई यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता था। स्त्री का नाम हमेशा पुरुष से पूर्व आता था। जैसे सीताराम राधा कृष्ण और स्त्री युद्ध कौशल राजनीति और सामाजिक जीवन में बराबर की सहभागी होती थी।
11 वीं से 18 वीं शताब्दी के काल को मध्यकाल कहा जाता है। इस काल को महिलाओं की दृष्टि से काला युग कहा जा सकता है। भारत में राजाओं की आपसी फूट का फायदा मुसलमानों ने उठाया और भारत देश पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। कुछ समय बाद बादशाहों द्वारा जोर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया गया तथा महिलाओं के साथ ज्यादतियों की शुरुआत हुई। बाल्यकाल में पिता के साथ युवावस्था में पति के साथ और वृद्धावस्था में पुत्र के संरक्षण में रहने का विधान भी इसी युग मैं दिया गया। इसी काल में महिला की स्थिति दयनीय बना दी गई। पर्दा प्रथा ने महिला को घर की चारदीवारी में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया और बाल विवाहों महिलाओं का बाहुल्य हो गया। शिक्षा के द्वार उसके लिए लगभग बंद कर दिए। मध्यकाल में महिलाओं की स्वतंत्रता सब प्रकार से छीन ली गई और उन्हें जन्म से मृत्यु तक पुरुषों के अधीन कर दिया गया।
19वीं से बीसवीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए विश्व के विभिन्न भागों में अनेक आंदोलन शुरू हुए। इस दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव 26 अगस्त 1920 को अमेरिका में महिलाओं को वोट देने का अधिकार संविधान संशोधन के तहत दिया गया। जिसके परिणाम स्वरूप महिला सशक्तिकरण बढ़ने लगा और एक स्वस्थ समाज की शुरुआत शुरू हुई। अनेक महापुरुषों ने महिला शिक्षा व सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। विधवा विवाह को समाज में स्थापित किया। महिलाओं को समानता का अधिकार विभित्र क्षेत्रों में दिए जाने की शुरुआत की गई। भारत में महिलाओं को शिक्षा का वोट देने का अधिकार और मौलिक अधिकार प्राप्त है। धीरे धीरे परिस्थितियां बदल रही है। भारत में आज महिला आर्मी, एयरफोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। समाज, राजनीति, संगीत, साहित्य, शिक्षा और खेल जगत में महिलाओं ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। माता पिता बेटी बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लेकिन यह सोच समाज के कुछ वर्ग तक ही सीमित है। सही अर्थ में महिला सशक्तिकरण व समानता तभी सार्थक होगा, जब विश्व भर में महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से संपूर्ण आजादी मिले। जहां उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा जहां उन्हें दहेज के लालच में जिंदा नहीं जलाया जाएगा। कन्या भ्रूण हत्या नहीं होगी। जहां बलात्कार नहीं होगा। समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नजरिए को महत्वपूर्ण समझा जाएगा। जहां वह सिर उठाकर अपने महिला होने का गर्व कर सके। ऐसे स्वस्थ समाज में ही महिला का सशक्तिकरण संभव है और महिलाओं के पक्ष में लिखते हुए मुझे गौरव का अनुभव हो रहा है। मातृशक्ति पुरुषों से कहीं अधिक हर कार्य में श्रेष्ठ और अग्रज रही रही है। मानव जीवन को दिशा और दशा दी। इसी को आत्मसात करना सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण व महिला समानता की दिशा में हम एक कदम आगे बढ़ पाएंगे।