भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ: एक पुनर्विचार

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(दिव्यराष्ट्र के लिए डा. पूजा सिंह वीजीयू यूनिवर्सिटी)

भारतीय संविधान, जिसे 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया, आज अपनी 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह महज एक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों की उम्मीदों, अधिकारों और कर्तव्यों का प्रतिनिधित्व करता है। भारतीय संविधान को “दुनिया का सबसे विस्तृत और सर्वश्रेष्ठ संविधान” कहा जाता है। इस ऐतिहासिक अवसर पर यह देखना अनिवार्य है कि क्या हम, एक समाज और एक राष्ट्र के रूप में, संविधान के मूल सिद्धांतों और लक्ष्यों को पूरा कर पाए हैं। भारतीय संविधान की रचना एक अद्भुत लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उदाहरण है। संविधान सभा, जिसमें देश के विभिन्न वर्गों, भाषाओं और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व था, ने लगभग तीन साल तक गहन विमर्श के बाद इसे तैयार किया।
संविधान की रचना प्रक्रिया
भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया इतिहास में सबसे अनूठी है। संविधान सभा ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन तक विचार-विमर्श किया।
• संविधान सभा: इसमें विभिन्न पृष्ठभूमियों, भाषाओं, और विचारधाराओं के प्रतिनिधि शामिल थे।
• डॉ. भीमराव अंबेडकर: संविधान के मुख्य शिल्पकार, जिन्होंने इसे न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित किया।
• लक्ष्य: एक ऐसा संविधान तैयार करना, जो न केवल आधुनिक भारत की जरूरतों को पूरा करे, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान भी करे।
भारतीय संविधान की विशेषताएँ-
भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इसे अन्य संविधानों से अलग करती हैं:
1. लिखित और विस्तृत: यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
2. संविधान की प्रस्तावना: यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है।
3. मूल अधिकार और कर्तव्य: नागरिकों को अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का बोध कराना।
4. संसदीय प्रणाली: लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाने के लिए संसदीय शासन प्रणाली।
5. संविधान का लचीलापन: इसे समयानुसार संशोधित करने की सुविधा।

मुख्य उद्देश्य: सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करना।
• नेतृत्व: डॉ. भीमराव अंबेडकर, जो संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, ने इसे एक प्रगतिशील और समावेशी दस्तावेज़ के रूप में तैयार किया।
संविधान के प्रमुख सिद्धांत
भारतीय संविधान ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित किया। इसके प्रमुख सिद्धांत हैं:
1. मूल अधिकार (Fundamental Rights): हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा, और जीवन का अधिकार दिया गया।
2. न्याय और समता: सामाजिक अन्याय और असमानता को खत्म करने का प्रयास।
3. लोकतंत्र और गणराज्य: प्रत्येक व्यक्ति को सरकार चुनने का अधिकार।
4. संविधान की लचीलापन: इसे समय और परिस्थितियों के साथ बदलने की शक्ति।
75 वर्षों की यात्रा: उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ
उपलब्धियाँ
1. लोकतंत्र की मजबूती: भारत ने सफलतापूर्वक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने का गौरव हासिल किया।
2. संवैधानिक संस्थाएँ: सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, और अन्य संस्थाएँ संविधान की रक्षा करने में सफल रही हैं।
3. सामाजिक न्याय: आरक्षण नीति और अन्य योजनाओं के माध्यम से दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को सशक्त किया गया।
4. संविधान का लचीलापन: अब तक 105 बार संशोधन कर इसे प्रासंगिक बनाए रखा गया।
चुनौतियाँ
1. समानता और समरसता का अभाव: जातीय भेदभाव और आर्थिक असमानता अभी भी बड़ी समस्याएं हैं।
2. संविधान की भावना से दूरी: नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों की समझ और उनके पालन का अभाव है।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप: संवैधानिक संस्थाओं में कभी-कभी राजनीतिक दबाव देखने को मिलता है।
4. शिक्षा में संवैधानिक जागरूकता की कमी: संविधान को स्कूलों और कॉलेजों में पर्याप्त रूप से पढ़ाया नहीं जाता।
वर्तमान परिदृश्य: आत्ममूल्यांकन का समय
आज के समय में भारतीय लोकतंत्र और संविधान के प्रति जनता और सरकार दोनों के रवैये पर आत्मचिंतन आवश्यक है।
• अधिकार बनाम कर्तव्य: जबकि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए हैं, कर्तव्यों का पालन अभी भी कमज़ोर है।
• लोकतंत्र की जड़ें: लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं है; यह जिम्मेदार शासन और नागरिक सहभागिता पर आधारित है।
• संवैधानिक मूल्यों का ह्रास: धर्मनिरपेक्षता, समानता, और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को लेकर कई बार प्रश्न खड़े होते हैं।
आगे की राह
1. संवैधानिक शिक्षा का प्रचार: संविधान के मूल सिद्धांतों को स्कूली पाठ्यक्रम और जनसंचार माध्यमों में शामिल करना।
2. नागरिक कर्तव्यों पर जोर: संविधान के अनुच्छेद 51ए में उल्लेखित कर्तव्यों को प्रोत्साहित करना।
3. संविधान की आत्मा को पुनर्जीवित करना: लोकतंत्र, स्वतंत्रता, और समता के सिद्धांतों को फिर से प्राथमिकता देना।
4. संविधान को रोजमर्रा का हिस्सा बनाना: इसे केवल सरकारी कामकाज तक सीमित न रखकर, आम नागरिकों के जीवन का हिस्सा बनाना।

भारतीय संविधान, अपनी 75वीं वर्षगांठ पर, हमें न केवल जश्न मनाने का अवसर देता है, बल्कि आत्ममूल्यांकन का भी। यह हमारे लिए एक पुकार है कि हम न केवल संविधान को पढ़ें, बल्कि उसकी भावना को आत्मसात करें। हमें ऐसे नागरिक बनना होगा जो अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी सम्मान करें। यही संविधान के प्रति सच्चा सम्मान होगा, और यही भारतीय लोकतंत्र को आने वाले वर्षों में और अधिक मजबूत बनाएगा।

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