दीपोत्सव लक्ष्मी की पूजा से शुरू और सरस्वती के आशीर्वाद से पूर्ण

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सामाजिक एकता का प्रतिक गोवर्धन पर्व

(डॉ.सीमा दाधीच)

पंच दिवसीय दीपोत्सव में लक्ष्मी पूजन के बाद अगले दिन गोवर्धन पूजन किया जाता है इस पर्व को अलग अलग स्थानों पर अपनी परम्परा के अनुसार मनाया जाता है बृज क्षेत्र में गौ माता के गोबर से गोवर्धन की रचना कर पूजन किया जाता है तो श्रीनाथ द्वारा में खेखरा के द्वारा गायों पर श्रीनाथ जी की रंग बिरंगी मूर्ति उकेर कर इन्हें फिर से आने का न्योता देकर लोक परम्परा के अनुसार कार्यक्रम किए जाते है। वैसे अधिकांश जगहों पर भगवान कृष्ण को छप्पन भोग या फिर बाजरा, कड़ी, चांवल, मूंग और खीर का भोग लगाया जाता है इस आयोजन के जरिए सामूहिक एकता का परिचय दिया जाता है। गोवर्धन के बाद ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन कर कलम दवात की पूजा के माध्यम से धन की देवी लक्ष्मी के साथ ही ज्ञान की देवी सरस्वती का भी आशीर्वाद लेकर दीपोत्सव पूर्ण होता है। माना यह जाता है इस पर्व के माध्यम से जहां यश और श्री की स्तुति होती है इससे पूर्व नवरात्रि में शक्ति स्वरूपा और दशहरा मनाकर धन , ज्ञान और शक्ति की अराधना होती हैं।
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। यह पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को की जाती है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन यानी गाय की पूजा की जाती है। इसके अलावा गोवर्धन पर्वत की पूजा करके और परिक्रमा भी लगाई जाती है,यह मान्यता है कि जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव सम्पन्न होते है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। गोवर्धन पूजा कृष्ण को धन्यवाद देने का एक तरीका है, जिन्हें इस दिन 56 व्यंजन या छप्पन भोग चढ़ाया जाता है। विभिन्न व्यंजनों को एक पर्वत के आकार में व्यवस्थित किया जाता है और इस त्यौहार को अन्नकूट (भोजन का पर्वत) भी कहा जाता है। पूजा के बाद अन्नकूट की सब्जी को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
दीपावली पांच दिवसीय हिंदू संस्कृति का त्यौहार है साथ ही मेवाड़ में खेखरा त्योहार नाथद्वारा का प्रसिद्ध त्यौहार है यह दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला एक त्योहार है। इस दिन ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा गायो को सजा कर उस पर पेंटिंग बना कर श्रीनाथ जी की, रंगोली, और फूल पत्तियों की डिजाइन से सुंदर सजाया जाता है फिर एक जगह लाते है और उस स्थान का गेट बंद कर देते है फिर खेखरा भड़काया जाता है और उनको दौड़ाया जाता है ।
नाथद्वारा के गलियों में होने वाली गौ क्रीड़ा का महोत्सव काफी खास है।मंदिर की परिक्रमा लगाने के बाद गौ क्रीड़ा की शुरुआत होती है। इससे पहले गलियों के रास्तों पर बांस की लकड़ियों से बैरिकेडिंग कर दी जाती है। ग्वालों और गायों की क्रीड़ा के लिए बीच में जगह छोड़ी जाती है, वेशभूषा धारण किये ग्वाल-बाल कुंपी से गायों को उकसाते हैं और फिर गाय भागती है। बैरिकेडिंग में खड़े सभी भक्त गायों को छूकर आशीर्वाद लेते हैं। इस क्रीड़ा को देखते हुए बड़ी संख्या में जनसमुदाय एकत्र होता है। अन्नकूट की विशेष प्रसादी भी होती है जो काफी प्रसिद्ध है।
अन्नाकूट (गोवर्धन पूजन) पर एक खास और अनुकरणीय बात नाथद्वारा स्थित श्रीनाथ मंदिर में सामाजिक समरसता और आदिवासी समाज के प्रति स्नेह और सम्मान की भी देखने को मिलती है। भगवान श्री नाथ को चढ़ने वाले अन्नकूट पर पहला अधिकार आदिवासी समाज का माना गया है। आदिवासी (भील) अपनी परम्परागतवेश भूषा में आकर भगवान का प्रसाद लूट कर लेजाते हे ओर प्रसाद के चावल को सुखा कर वर्ष भर में आने वाले मांगलिक कार्यों में इस प्रसाद का उपयोग करते हैं। इस लूट के आयोजन को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
इस अवसर पर मंदिर की गौमाता को मोरपंख ,मेहंदी, रंगो घुघरे, पट्टियों से सुंदर श्रृंगारित कर सजाया जाता है। यह मनोहारी दृश्य देखने का लोग साल भर इंतजार करते हैं और उत्साह से देखने का हिस्सा लेते हैं पर्व ही संस्कृति को जिंदा रखे है आज भी भारतीय संस्कृति की मनोहारी दृश्य पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रही है आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने के लिए त्यौहार में बच्चों की भागीदारी को रखना बहुत आवश्यक है।

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