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जूते का दर्द

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✍️नवीन कुमार आनन्दकर

उं..ह.ह नए-नए तो हम काटते हैं, अब ये हमें काटने लगा है। हां यार मेरे जख्म में से जब इसका अंगूठा बाहर की ओर झांकता है, सच बड़ी तकलीफ होती है। ये कहां आया है……. ओह ये सफेद टाइल्स चमचमा रही है! लगता है आज इंटरव्यू है फिर से। आज शायद कुछ हो जाएगा। अरे छोड़ो, दाएं पैर के जूते ने बाएं से फुसफुसा कर कहा। तुमने सुना… तुमने सुना। क्या ? अभी-अभी इसे कहा कि आपको फोन कर देंगे। अब इसकी नौकरी लग ही जाएगी। हम्मम……… ज्यादा खुश न हो, ये मना करने का सभ्य तरीका है। इससे मना करने वाले के मन में कोई भार नहीं रहता। अच्छा!

आह… ये सड़क आज कुछ ज्यादा ही गर्म है, हां सुना था पारा 42 के पार है। हम्म…. अब तलवे में भी छेद हो गया। क्या कह रहा है दाएं! अब तेरे कारण मुझमें भी कील ठुकेगी, फिर वही बदबूदार सॉल्यूशन और दर्द भरे सुई-धागे। कायदे से अब हमें फेंक दिया जाना चाहिए। या तो छिन्न-भिन्न होकर फिर नए रूप में अवतरित हो जाएंगे। न बाएं, मुझे लगता है कि जूतम-पैजार वाली सभाओं में फेंके जाकर हमारा मोक्ष हो जाना ज्यादा सार्थक है।

एक यह है कि कुछ करता ही नहीं, बस हम पर लदा हुआ है। एक बूढ़ा बाप इसका पेंशन के सहारे इसे ढो रहा है, एक हम मरम्मत के सहारे चले जा रहे हैं, बस कर, यार ये भी अपनी किस्मत को रो रहा है। भाई मेरी दुआ है इसका कुछ हो जाए। फिर ये शायद हमारी भी जान छोड़ दे। अब नाम के सिवाय हममें जूतों जैसा कुछ नहीं बचा। हां यार, चमचमाते बूटों के आगे शर्म आती है, सैंडल सामने हो तो….तो…तो जमीन में गढ़ जाने को दिल करता है। सच।

श्श्श्श्श्श्…… घर आ गया। अब उतारेगा हमें। थोड़ी राहत मिलेगी। हां, पसीने और गर्मी से। आह वक्त की मार से कटे इस ढांचे को कुछ आराम आएगा। यह कुछ कह रहा है क्या ? हां। बाउजी मेरे जूते………….. बस इतना ही कह पाया। और बाबा? उनने कहा, श्यामली आ रही है, बड़ा खर्च है, दामाद भी संग है और इस बार हाथ तंग है, तेरा कुछ हुआ क्या ? जवाब नहीं…..। इसके बाद….. वही एक अजब खामोशी। फिर बाबा का रटा-रटाया जवाब, कोई बात नहीं, रूखी-सूखी तो मिल ही रही है, बाकी रामजी भला करे। यानी कि? यानी क्या, वही अभी तुझे दाएं पैर में मुझे बाएं पैर में और घिसना है। हम्म!

एक बार इसकी नौकरी लग जाए। फिर? ये हमें मुक्त कर देगा इस नारकीय जीवन से। और उसके बाप का क्या? वो…… कोने में पड़ा रहेगा। जिंदगी के दिन गिनेगा। न न न न न ऐसा भी नहीं है। कोई ऐसा नहीं है, भाई यह नवयुग की रीति है। अच्छा!

अरे, आज ये फोन सुन कर इतना उछल क्यों रहा है। मेरे अंदर की कील मुझमें और धंस रही है, सिलाई पर दबाव पड़ रहा है। बाएं कुछ कर। अरे सह ले दाएं, आज इसे नौकरी मिल गई है। क्या? सच कह रहा है। ये अब भी हमें पहनकर जाएगा क्या ? अम्ममममं….. हां, शायद 1 तारीख तक या एडवांस मिलने तक।

ओह! ये आज कैलेंडर को क्यों निहार रहा है। अरे आज अपना मुक्ति दिवस है, क्या आज 1 तारीख….। जी हां। वाह ये दिन कितने इंतजार के बाद …………. काश! मैं रो सकता। मत रो, देख नया डिब्बा, इसमें क्या है? दाएं नासमझ है रे तू तो, इसमें हमारी पीढ़ी के नौजवान हैं। क्या नया दायां ….बायां। हां जी चाहता है इन्हें गले लगा लूं। अरे…र…ररे थम जा। वो मुंह न लगाएंगे। अच्छा तो क्या हम अब फेंके जाएंगे।

ये..ये क्या कर रहा है। हमें साफ करते….रो क्यों रहा है। इसके आंसुओं के खारेपन में इतना दर्द क्यों महसूस हो रहा है मुझे। देख बाएं ये फुसफुसा कर कुछ कह रहा है। हां दाएं ये याद कर रहा है उन दिनों को, उस मुफलिसी को, कह रहा है, तुम सिर्फ जूते नहीं, मेरे संघर्षों की निशानी हो, मेरे हर लड़खड़ा कर संभलना वाले कदमों के साक्षी हो, तुमको मैं हटा नहीं सकता। अब तुम आराम करोगे मेरे संदूक मैं, तुम्हे प्यार से झाड़ा-पोछा करूंगा। तुम मेरे बच्चों को बताओगे, जीवन के पथ की दुर्गमता और मेरा साहस। तुम साक्षी होंगे तब, मेरे अभावों से प्रभावों तक के सफर के। यार दाएं ये हमे अब क्यों चूम रहा है, और हां, इसके बाबा का क्या हुआ, अरे वो देख बाबा तो नया कुर्ता पहनकर झूम रहा है।

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