
जयपुर, 21 जून, 2025: न्यूज़वीक द्वारा लगातार छः सालों तक सर्वश्रेष्ठ प्राईवेट हॉस्पिटल के रूप में सम्मानित, मेदांता – द मेडिसिटी ने जयपुर में एक जागरुकता सत्र का आयोजन किया, जिसमें देश में हैल्थकेयर की दो गंभीर समस्याओं – थैलेसेमिया और एनीमिया के बारे में चर्चा की गई। यह सत्र इंडियन एकेडेमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के सहयोग से आयोजित हुआ था, जिसमें इन समस्याओं के इलाज में हुई अत्याधुनिक प्रगति के बारे में बताया गया। डॉ. सत्य प्रकाश यादव, डायरेक्टर, पीडियाट्रिक्स हेमेटो ऑन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट, मेदांता गुरुग्राम की अध्यक्षता में आयोजित यह सत्र पीडियाट्रिशियंस, मेडिकल के विद्यार्थियों, युवा डॉक्टरों और फिज़िशियंस को बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जीवनरक्षक क्षमता के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित था। बोन मैरो ट्रांसप्लांट बच्चों में थैलेसेमिया, एप्लास्टिक एनीमिया एवं खून के अन्य विकारों के लिए एक बहुत ही कारगर इलाज है।
डॉ. सत्य प्रकाश यादव, डायरेक्टर, पीडियाट्रिक हेमेटो ऑन्कोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट, मेदांता, गुरुग्राम ने जागरुकता के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘‘थैलेसेमिया और एप्लास्टिक एनीमिया जैसे खून के विकार केवल मेडिकल चुनौतियाँ ही नहीं हैं, बल्कि परिवारों के ऊपर गहरा भावनात्मक और आर्थिक बोझ भी डालती हैं। बोन मैरो ट्रांसप्लांट आजीवन के लिए समस्या से छुटकारा दिला सकता है, लेकिन जागरुकता और संसाधनों की कमी के कारण बच्चों का निदान और इलाज नहीं हो पाता है। मेदांता में हम समुदायों में जागरुकता बढ़ाकर, हैल्थकेयर प्रोफेशनल्स को शिक्षित बनाकर तथा सुलभ और विश्वस्तर का इलाज प्रदान करके सभी बच्चों को इन विकारों से छुटकारा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हर बच्चे को स्वस्थ व संतोषजनक जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए और हम इस तरह के सत्र आयोजित करके इस लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। डॉक्टरों, हैल्थकेयर प्रदाताओं, नीति निर्माताओं और आम जनता को साथ मिलकर जागरुकता बढ़ाने, भ्रांतियों को दूर करने और बोन मैरो के लिए एक सहयोगपूर्ण वातावरण का निर्माण करने के लिए काम करना चाहिए। सभी के सामूहिक प्रयास की मदद से हम थैलेसेमिया एवं ल्यूकेमिया से पीड़ित हजारों बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं और कई जानें बचा सकते हैं।
थैलेसेमिया और एप्लास्टिक एनीमिया बच्चों में खून के बहुत गंभीर विकार हैं। स्वास्थ्य पर इनका बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ता है। थैलेसेमिया एक अनुवांशिक विकार है, जो रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन पर असर डालता है और इसके लिए आजीवन खून चढ़ाना पड़ता है। इसके मुकाबले एप्लास्टिक एनीमिया के मामले कुछ कम होते हैं, लेकिन यह भी उतना ही गंभीर है। इस विकार में बोन मैरो पर्याप्त ब्लड सेल्स नहीं बना पाती, जिसकी वजह से थकान रहने लगती है और संक्रमण एवं रक्तस्राव होने का जोखिम बढ़ जाता है। भारत में इन दोनों बीमारियों का भार बहुत ज्यादा है। भारत में हर साल लगभग 10,000 से 15,000 बच्चे थैलेसेमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं। राजस्थान में, विशेषतः आदिवासी आबादी में यह विकार काफी फैला हुआ है। देश में एप्लास्टिक एनीमिया के हर साल लगभग 20,000 नए मामले सामने आते हैं। यह समस्या राजस्थान में पैंसिटोपेनिया का दूसरा सबसे सामान्य कारण है, जिसके 23 प्रतिशत मामले सामने आते हैं। इसके बाद हेपेटाईटिस बी के 16 प्रतिशत मामले सामने आते हैं।
यद्यपि बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) और विकसित होती हुई जीन थेरेपी जैसी आधुनिक विधियों ने थैलेसेमिया के मरीजों के लिए आजीवन खून चढ़वाने की जरूरत को समाप्त कर दिया है और एप्लास्टिक एनीमिया का इलाज प्रदान किया है, पर इस बारे में सीमित जागरुकता, निदान में विलंब और बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) या इम्युनोसप्रेसिव थेरेपी जैसे आधुनिक इलाजों की सीमित उपलब्धता परिवारों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
जयपुर में इस सत्र का आयोजन कोल इंडिया और मेदांता के सहयोग से ‘थैलेसेमिया बाल सेवा योजना’ के अंतर्गत किया गया था। यह प्रोग्राम वंचित बच्चों की बीएमटी प्रक्रियाओं के लिए 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इस साझेदारी से आधुनिक इलाज को सुलभ व किफायती बनाने की मेदांता की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है ताकि जीवनरक्षक केयर को जरूरतमंदों तक पहुँचाया जा सके।