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नवजात को मिर्गी जैसे घातक विकार से बचाने के लिए जन्म पूर्व जांच जरूरी, इलाज भी संभव

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जयपुर, 21 सितम्बर, 2024.

यहां झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, (आरआईसी) में चल रही इनबोर्न एरर्स ऑफ मेटाबॉलिज्म पर तीन दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस आईएसआईईएम 2024 में आज चर्चाओं में मेजर फोकस लाइसोसन डिसॉडर्स पर रहा। यह वह विकार होते हैं जिसमें बच्चा जन्म के समय सामान्य होता है परंतु जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती है तब कुछ तत्व जो नॉर्मली टूट के निकल जाने चाहिए वे नही टूटते औaर शरीर में एकत्रित होते रहते हैं इस कारण उनके लीवर का बढ़ना तिल्ली का बढना, हार्ट, ज्वाइन्ट्स पर प्रभाव आना, मस्तिष्क का डेवलप नहीं होना जैसे विकार जन्म लेने लगते हैं। इन बिमारियों के इलाज के लिए चिकित्सा जगत में क्या क्या नई दवाइएं आई है भविष्य में क्या होने वाला है के बारे मंे जानकारी दी गई।

 

मिर्गी के दौरों का इलाज अब संभव: जन्म पूर्व जांच जरूरी

 

इसमें बताया गया कि विटामिन बी (पाइरिडोक्सिन) की कमी से मिर्गी केे दौरे पड़ते हैं या दौरे और भी बदतर हो जाते हैं। यह कमी मुख्य रूप से नवजात शिशुओं और शिशुओं में होती है और दौरे का कारण बनती है जिसे नियंत्रित करना मुश्किल होता है। इस सत्र में विटामिन रिस्पॉन्सिव ईपीलिप्सिस यानी मिर्गी और उससे जुड़ एन्सेफेलोपैथीज जैसे गंभीर विषय पर डॉ अजय गोयनका और डॉ वर्षा वैद्य ने मुख्य वक्ता रहे वहीं इस सत्र में डॉ. भावना शर्मा, डॉ. दिनेश खंडेलवाल, डॉ. अनुराग तोमर और डॉ. रमेश चौधरी ने अध्यक्षता की।

 

औरगाबाद से आई शिुशु रोग विशेषज्ञ डॉ वर्षा वैद्य ने बताया कि ऐसा आम तौर पर जब होता है कि विटामिन्स हमारी बॉडी सही तरीके से या तो पहुंच नहीं पाता या फिर सही तरीके से काम नहीं कर पाता। इन बातों को बच्चे के जन्म के समय पहचान जिया जाए तो इन विटामिन डिफिशिएंसीज को हम दवाओं के माध्यम से संतुलित कर सकते है। कुछ बच्चों को मिर्गी की समस्या अनुवांशिक होती है। इन बच्चों के एक या इससे अधिक जीन्स इस समस्या का मुख्य कारण होते हैं। इसमें जीन्स किस तरह से मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं और किस तरह यह मिर्गी की वजह बनते हैं इसका पता नहीं लगाया जा सका है।

जब इस प्रकार के डॉयग्नोसिस संभव नहीं होते तो शिुशु मृत्युदर अधिक थी, लेकिन आज नवीनतम औषधियों और निदान उपकरणों के कारण मिर्गी का समय रहते न केवल इलाज किया जाने लगा है अपितु उसके आने वाली पीढी को भी इस प्रकार के रोगां से मुक्ति मिलने लगी है। उन्होंने कहा कि नवजात शिशु के मस्तिष्क में सही मात्रा में विटामिन्स नही मिलने के कारण उसका मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है नतीजतन उसके मस्तिष्क में सूजन आ सकती है और यही कारण है कि उसे फीट आना यानी मिर्गी के दौरे आना शुरू हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि मिर्गी का इलाज झाड़ फूक से कदापि संभव नहीं है इसके लिए तो शिशु में ऐसे लक्षण दिखाई देते ही विशेषज्ञ चिकित्सक के पास जाना चाहिए।

आज ही तीसरे पहर ट्रीटमेंट चैलेंजेज इन एमपीएस पेशेन्ट विषय पर चर्चा की गई इसकें प्रमुख वक्ता आईएसआईइएम के आयोजन सचिव डॉ. प्रियाशु माथुर ने अपनी बात रखते हुए म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस बीमारी के बारे में अपना व्यख्यान दिया उन्होंने कहा म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस टाइप 2 एक दुर्लभ एक्स लिंक्ड रिसेसिव डिसऑर्डर है। इसकी शुरुआत कम उम्र में होती है और इसके नैदानिक लक्षण कई अंग प्रणालियों से जुड़े होते हैं। रोग की गंभीरता फेनोटाइप पर निर्भर करती है। गंभीर फेनोटाइप में उच्च रुग्णता और मृत्यु दर होती है। संदिग्ध रोगियों में प्रारंभिक निदान मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

प्रोटोटाइप के साथ आईइ्रएम का न्यूट्रेशन मैनेजमेंट पर हुई चर्चा में डॉ. रानी एच सिंह ने अपने विचार साझा किए। इस सत्र में डॉ. नीलम मोहन, डॉ. दीपक शिवपुरी, डॉ. ज्योति बागला और डॉ. नीता जिंदल ने भाग लिया।

एक्यूट क्राइसिस के दौरान आईईम को किस प्रकार मैनेज किया जा सकता है विषय पर डॉ. उमा माहेश्वरी ने अपने महत्वपूर्ण विचार एवं जानकारी उपस्थित चिकित्सकों को दी इस पैनल डिस्कशन में डॉ. नागराम दांडे, डॉ. आलोक गुप्ता,, डॉ. आर एन सेहरा,डॉ. प्रशांत मिथरवाल शामिल हुए।

न्यूरोट्रांसमीटर विकारों का निदान और मैनेजमेंट विषय पर वक्ता  डॉ. लोकेश लिंगप्पा थे वही अध्यक्षता डॉ. रूपेश मसंद डॉ. जूही गुप्ता डॉ. मीनल गर्ग ने की।

 

मेटाबालिज्म संबंधी विकारों में जीनोमिक्स और अन्य ओमिक्स दृष्टिकोणों की भूमिका विषय पर हुई चर्चा में अमेरिका से आए डॉ. पंकज अग्रवाल ने विचार व्यक्त किए इस चर्चा में डॉ. अशोक शारदा, डॉ. सविता बंसल,डॉ. नेहा अग्रवाल, डॉ. एस पी सेठी ने भाग लिया।

आईईएम में निदान न किए गए रोगियों का निदान करना विषय पर डॉ. रत्ना दुआ पुरी जानकारी दी डॉ. अश्विनी कामदार, डॉ. अनुपा प्रसाद और डॉ. वरुण शर्मा भी उपस्थित रहे।

मेटाबॉलिज्म विकारों में वीओयूसीईएस का अर्थ समझना के बारे में डॉ. शीतल शारदा ने जानकारी दी इस चर्चा में डॉ. रामबाबू शर्मा, डॉ. संजय गुप्ता डॉ. तरुण पाटनी और डॉ. मोहित वोहरा शामिल हुए।

जीनोमिक युग में आईईएम का प्रबंधन- लघु अणु और माइटोकॉन्ड्रियोपैथिस विषय पर वक्ता डॉ. चैतन्य दातार रहे डॉ. भावना ढींगरा एवम डॉ. श्याम अग्रवाल ने भाग लिया।

रोगियों में ईआरटी विषय आयोजित सत्र में उपचार परिणाम और निगरानी के बारे में डॉ. उमा रामास्वामी ने जानकारी दी डॉ. धनंजय मंगल डॉ. कपिल शर्मा डॉ. शिखा गर्ग डॉ. सुनील दत्त शर्मा इस चर्चा मं शामिल हुए।

लाइसोसोमल स्टोरेज का निदान पर एक डिबेट आयोजित की गई जिसका विषय  एंजाइम पहले बनाम जीनोमिक्स पहले रहा इस डिबेट का संचालन डॉ. दिव्या अग्रवाल इस डिबेट में डॉ. रवनीत कौर और डॉ. मयंक निलय ने फैकल्टी के तौर पर भाग लिया वहंी  डॉ. सीमा ठाकुर, डॉ. रत्ना दुआ पुरी भी इसमें शामिल हुए। आयोजन कें अंत में आईएसआईईएम की जनरल बॉडी मीटिंग हुई जिसमें, डॉ. बी.एस. चरण, डॉ. समीर भाटिया, डॉ. आश्का प्रजापति और कौशिक डॉ. कौशिक मण्डल ने भाग लिया।

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