जयपुर। दिव्यराष्ट्र/युवतियां अपनी दुर्दशा से बाहर निकलना चाहती हैं और राज्य और समाज को उनके इस संघर्ष में मदद करनी होगी, यह कहना है नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की पूर्व अध्यक्ष तथा मेग्सेसे पुरस्कार प्राप्त प्रो. शांता सिन्हा का।
दूसरा दशक, राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति तथा संधान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अनिल बोर्दिया स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘किशोर लड़कियां- शिक्षा और जेंडर समानता’ विषय पर व्याख्यान देते हुए पद्मश्री अलंकरण प्राप्त प्रो. शांता सिन्हा ने कहा कि किशोरियां अपने जीवन को फिर से बनाने तथा समाज में बराबरी की भागीदार निभाने की पूरी क्षमता रखती हैं। उनकी मदद करके उनकी शिक्षा और स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया जाना आज की यहां जरूरत है।
शिक्षा को गरीबी और लैंगिक हिंसा के चक्र को तोड़ने का एकमात्र अवसर बताते हुए उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे लड़कियां शिक्षा की सीढ़ी चढ़ती जाती हैं, उनमें मौजूदा सत्ता संरचनाओं को चुनौती देने की ताकत बढ़ती जाती है।
प्रो. सिन्हा ने कहा कि शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों में एक सूक्ष्म परिवर्तन होता है जो उन्हें आत्मविश्वास देता है तथा लड़कियों द्वारा प्राप्त किया गया प्रत्येक अधिकार रूढ़िवादी समाज की संरचना को बदलने और लोकतंत्र को गहरा करने में सहायक होता है।
राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सभागार में उनका व्याख्यान सुनने के लिये महिला सशक्तिकरण के अभियान में लगे सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों के लोगों के अलावा अनेक शिक्षाविद् व पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे।
दूसरा दशक के अध्यक्ष अभिमन्यु सिंह ने कार्यक्रम का संयोजन किया । इस अवसर परसंस्थान के अध्यक्ष राजेन्द्र भानावत एवम दूसरा दशक के निदेशक राघवेन्द्र देव शर्मा ने भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला