विश्व पर्यावरण दिवस

37 views
0
Google search engine

राजस्थान का जल संकट- बूंद-बूंद बचाने की चुनौती और उम्मीद

(दिव्यराष्ट्र के लिए स्वतंत्र पत्रकार गिरिराज अग्रवाल)

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 पर जब पूरी दुनिया पर्यावरण बचाने की बात कर रही है, राजस्थान अपने सबसे बड़े संकट – पानी बचाने – पर गंभीरता से सोच रहा है और इस पर काम भी कर रहा है. पानी की कमी इस राज्य के लिए सिर्फ़ एक समस्या नहीं, बल्कि यहाँ के लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है। दशकों से कम बारिश, ज़मीन से ज़्यादा पानी निकालने और मौसम में बदलाव (जलवायु परिवर्तन) ने राजस्थान को पानी की भयंकर कमी की ओर धकेल दिया है। यह सिर्फ़ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह कृषि, अर्थव्यवस्था और लोगों के रोज़मर्रा के जीवन को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
राजस्थान, जिसे ‘रेगिस्तानी राज्य’ के रूप में जाना जाता है, हमेशा से पानी की कमी से जूझता रहा है. यहाँ की जलवायु शुष्क है और बारिश अनियमित. लेकिन पिछले कुछ दशकों में ये समस्या और भी गंभीर हो गई है. शहरीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती आबादी ने पानी की मांग को कई गुना बढ़ा दिया है, जबकि प्राकृतिक जल स्रोत सीमित हैं. इस स्थिति ने राज्य के सामने एक विकट चुनौती खड़ी कर दी है, जहाँ हर बूंद पानी बचाना एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गया है।
आंकड़ों से समझें पानी की कमी की गंभीरताः पानी की कमी की भयावहता को समझने के लिए कुछ आंकड़ों पर गौर करना ज़रूरी हैः-
कम बारिश: राजस्थान में हर साल औसतन सिर्फ़ 575 मिलीमीटर बारिश होती है, जो पूरे देश की औसत बारिश (लगभग 1180 मिलीमीटर) का लगभग आधा है. इस कम बारिश के साथ-साथ, बारिश का वितरण भी असमान है, यानी कुछ इलाकों में ज़्यादा बारिश होती है, जबकि ज़्यादातर इलाके सूखे रह जाते हैं।
भूजल का ज़्यादा इस्तेमाल: केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, राज्य के कुल 295 ब्लॉक्स में से 200 से ज़्यादा ब्लॉक्स में ज़मीन का पानी या तो ‘बहुत ज़्यादा इस्तेमाल’ हो चुका है (यानी जितना पानी ज़मीन में जाता है, उससे कहीं ज़्यादा निकाला जा रहा है) या ‘गंभीर’ हालत में है. इसका मतलब है कि इन इलाकों में भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है, जिससे कुएँ और बोरवेल सूख रहे हैं।
पेयजल की समस्या: शहरीकरण और नई फ़ैक्टरियों के लगने से पानी के स्रोतों पर और दबाव पड़ा है. इससे पीने के पानी की उपलब्धता कम हो रही है, खासकर गर्मियों के महीनों में, जब कई शहरों और गाँवों में पानी की भारी किल्लत हो जाती है. टैंकरों से पानी की सप्लाई एक आम दृश्य बन गया है, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
कृषि पर प्रभाव: राजस्थान की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है. पानी की कमी से किसानों को भारी नुक़सान होता है. पारंपरिक फ़सलें, जिन्हें ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है, अब मुश्किल से उग पाती हैं. इससे किसानों की आय प्रभावित होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन भी बढ़ता है।
राजस्थान सरकार इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजनाएं चला रही है, जो दीर्घकालिक समाधानों पर केंद्रित हैं:
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (MJSA): यह खास कार्यक्रम 2016 में शुरू किया गया था और इसे राजस्थान के ग्रामीण परिदृश्य में एक क्रांति के रूप में देखा गया। इसका मक़सद बारिश के पानी को इकट्ठा करने की व्यवस्था बनाना और पुराने जल स्रोतों (जैसे बावड़ियाँ, कुएँ और तालाब) को ठीक करके गाँवों को पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है। इस योजना के तहत, गांवों में लाखों जल संरचनाएं (जैसे छोटे बाँध, चेक डैम, टांके और एनिकट) बनाई गईं। इन संरचनाओं से बारिश का पानी ज़मीन में जाता है, जिससे भूजल स्तर में सुधार होता है और आस-पास के क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ती है। कई गाँवों में इसका सकारात्मक प्रभाव देखा गया है, जहाँ भूजल स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और पीने के पानी की समस्या कम हुई है।
‘जल जीवन मिशन’ से जुड़ाव: केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी ‘हर घर जल’ मिशन के साथ मिलकर, राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर तक पाइप से पीने का साफ़ पानी पहुँचाने का काम कर रही है। दिसंबर 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 50 लाख से ज़्यादा ग्रामीण घरों में नल कनेक्शन दिए जा चुके हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में एक बड़ी प्रगति है। इस मिशन का लक्ष्य 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में नल का पानी पहुँचाना है, और राजस्थान इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तेज़ी से काम कर रहा है।
पानी का दोबारा इस्तेमाल और संरक्षण: शहरी क्षेत्रों में, सरकार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) के ज़रिए गंदे पानी को साफ़ करके उसे दोबारा इस्तेमाल करने पर ज़ोर दे रही है। यह साफ़ किया हुआ पानी बागवानी, उद्योगों और निर्माण कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पीने के साफ़ पानी पर निर्भरता कम होती है. इसके अलावा, राजस्थान नहर प्रणाली, जैसे इंदिरा गांधी नहर, ने रेगिस्तानी इलाकों में पानी पहुँचाकर कृषि और जीवन में बड़ा बदलाव लाया है. नहरों की लाइनिंग करके पानी के रिसाव को रोकना भी एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
लोगों को जागरूक करना: सरकार ‘पानी बचाओ, बिजली बचाओ’ जैसे अभियानों और स्कूली किताबों में जल संरक्षण के महत्व को शामिल करके लोगों में जागरूकता बढ़ा रही है. नुक्कड़ नाटक, कार्यशालाएं और सामुदायिक बैठकें भी आयोजित की जाती हैं ताकि लोगों को पानी के सही इस्तेमाल और संरक्षण के तरीकों के बारे में शिक्षित किया जा सके।
आम लोगों के अनोखे प्रयास और नई सोचः
राजस्थान के लोग सदियों से पानी बचाने के महत्व को समझते रहे हैं. उनकी जीवनशैली में ही पानी का सम्मान और संरक्षण शामिल है. आज भी वे पुराने तरीकों जैसे टांके (ज़मीन के नीचे पानी जमा करने वाले कुंड), नाड़ी (गाँव के तालाब), और बेरी (कुएँ) का इस्तेमाल करते हैं. ये पारंपरिक जल स्रोत न केवल पानी इकट्ठा करते हैं, बल्कि भूजल पुनर्भरण में भी मदद करते हैं।
सामुदायिक भागीदारी: कई स्वयंसेवी संगठन और गाँवों के समुदाय मिलकर अपने इलाक़ों में पानी की संरचनाएँ बनाने और उनकी देखभाल करने में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। उदाहरण के लिए, कुछ समुदायों ने अपने पुराने तालाबों को पुनर्जीवित किया है, जिससे स्थानीय जल स्तर में सुधार हुआ है।
कृषि में नवाचार: जैसलमेर और बाड़मेर जैसे ज़िलों में, जहाँ पानी की सबसे ज़्यादा कमी है, स्थानीय लोग नई तकनीकों को अपना रहे हैं। वे कम पानी में उगने वाली फ़सलें (जैसे बाजरा, मोठ और ग्वार) उगा रहे हैं और ड्रिप इरिगेशन (बूंद-बूंद पानी देने की तकनीक) तथा स्प्रिंकलर (फव्वारा) सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है. कुछ किसान तो ‘फसल विविधीकरण’ के तहत पानी की कम खपत वाली दालों और बाजरे जैसी फ़सलों पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि कम पानी में भी अच्छी पैदावार हो सके।
रेनवाटर हार्वेस्टिंग: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोग अपने घरों में वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ स्थापित कर रहे हैं, जिससे बारिश का पानी सीधे इस्तेमाल के लिए इकट्ठा किया जा सके या ज़मीन में उतारा जा सके।
आगे की राह: हर बूंद बचाने का संकल्पः
राजस्थान में पानी की कमी एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, लेकिन सरकारी प्रयास और जनभागीदारी मिलकर एक स्थायी समाधान की उम्मीद जगाते हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए कुछ उपायों पर भी निरंतर ध्यान देना आवश्यक है जैसे ज़मीन के पानी के ज़्यादा इस्तेमाल पर सख़्त नियंत्रण लगाना और इसके लिए कड़े नियम बनाना ज़रूरी है, अवैध बोरवेल पर रोक लगाना और भूजल के इस्तेमाल को नियमित करना महत्वपूर्ण है। सभी नई इमारतों और ढाँचों में वर्षा जल संचयन प्रणालियों को अनिवार्य बनाना चाहिए, ताकि बारिश की हर बूंद को बचाया जा सके।
हर नागरिक को पानी के प्रति ज़िम्मेदार बनाना होगा. स्कूली पाठ्यक्रमों में जल संरक्षण को और अधिक गहराई से शामिल करना और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना ज़रूरी है। पानी की बचत करने वाली नई तकनीकों (जैसे स्मार्ट सिंचाई प्रणालियाँ) को बढ़ावा देना और किसानों को उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। प्राचीन जल संरक्षण पद्धतियों को आधुनिक तकनीकों के साथ मिलाकर उनका प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिए।
विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें यह संकल्प लेना होगा कि पानी की हर बूंद बचाने के लिए हर संभव कोशिश की जाए, क्योंकि जल ही जीवन है. राजस्थान ने इस चुनौती का सामना करने में जो दृढ़ संकल्प दिखाया है, वह अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा है। यह एक ऐसा प्रयास है जो न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पानी की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here