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यूसीबी क्षेत्र डिजिटल बदलाव के लिए तैयार

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समावेशी विकास की ओर बढ़ता कदम, एनयूसीएफडीसी और ट्रांसयूनियन सिबिल द्वारा सहकार ट्रेंड्स रिपोर्ट

मुंबई, दिव्यराष्ट्र*/ नेशनल अर्बन कोऑपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ( एनयूसीएफडीसी) और ट्रांसयूनियन सिबिल ने संयुक्त रूप से ‘सहकार ट्रेंड्स’ रिपोर्ट का पहला संस्करण 2025 क्रेडिट कॉन्फ्रेंस के दौरान जारी किया। अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों द्वारा सिबिल को दी गई जानकारी पर आधारित यह रिपोर्ट दर्शाती है कि, मार्च 2025 तक अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों (यूसीबीएस) का कुल पोर्टफोलियो बैलेंस 2.9 लाख करोड़ तक पहुँच गया है। मार्च 2020 के मुकाबले बीते पाँच वर्षों में इसमें 1.8 गुना की वृद्धि देखने को मिली है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि प्रमुख उत्पाद श्रेणियों में दो अंकों की दर से वृद्धि हुई है, जो उधारी की बढ़ती मांग और विस्तृत बाजार पहुँच के कारण संभव हो सकी है। तकनीक-आधारित बदलाव की दिशा में आह्वान के बीच यूसीबी सेक्टर एक मज़बूत वित्तीय समावेशन के वाहक के रूप में उभर रहा है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि शहरी सहकारी बैंक तकनीक-आधारित पुनरुत्थान के ज़रिए अपने अगले विकास चरण के लिए तैयार हैं। डिजिटल परिवर्तन को तेज़ी से अपनाने और संचालन में आधुनिकता लाने की भरपूर संभावनाएँ मौजूद हैं। तकनीक पर केंद्रित रणनीतिक पहल न केवल इस सेक्टर की विकास गति को मज़बूती देगी, बल्कि तेजी से बदलते वित्तीय परिदृश्य में प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ाएगी।

‘सहकार ट्रेंड्स’ रिपोर्ट के पहले संस्करण में अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों (यूसीबीएस) के प्रदर्शन का विस्तृत विश्लेषण दिया गया है, इसमें उन्हें समान श्रेणी के अन्य संस्थानों के साथ तुलना करते हुए, ऐसे सुझाव पेश किए गए हैं जो डेटा पर आधारित हैं और बैंकों को स्मार्ट तरीके से प्रतिस्पर्धा करने, सतत रूप से बढ़ने और बेहतर सेवा देने में मदद कर सकते हैं। रिपोर्ट इस बात को भी उजागर करती है कि भारत के 1,472 अर्बन कोऑपरेटिव बैंक (यूसीबीएस) देश की अगली वित्तीय वृद्धि में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं, खासतौर पर ये बैंक छोटे शहरों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोगों तक आसान और व्यापक रूप से ऋण पहुंच में मदद कर रहे हैं।

2030 तक बैंकिंग सेक्टर में हर साल 11.5% की दर से वृद्धि का अनुमान है। ऐसे में अर्बन कोऑपरेटिव बैंक (यूसीबीएस) को भारत के समावेशी विकास लक्ष्यों के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ माना जा रहा है। स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में इनकी गहरी पकड़ और समुदायों से मजबूत जुड़ाव, इन्हें भारत के उधारकर्ताओं को औपचारिक ऋण उपलब्ध कराने की दिशा में विशिष्ट रूप से सक्षम बनाती है। करीब 9 करोड़ भारतीयों को सेवाएं देने वाले यूसीबीएस केवल वित्तीय संस्थान नहीं, बल्कि लोगों के लिए भरोसे का स्थानीय आधार हैं। जैसे-जैसे भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, ये बैंक जिम्मेदारी और तकनीक के सहारे आगे बढ़ने को तैयार हैं — ताकि सूक्ष्म उद्यमियों, स्वरोज़गार करने वाले युवाओं, महिला-नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और पहली बार घर खरीदने वालों को सशक्त बनाया जा सके।

रिपोर्ट के लॉन्च पर एनयूसीएफडी सी के सीईओ प्रभात चतुर्वेदी ने कहा, “यूसीबीएस लंबे समय से भरोसे और आम लोगों तक पहुंच के मजबूत आधार रहे हैं। आज ये डेटा आधारित जानकारी, डिजिटल तकनीक और संस्थागत सहयोग की मदद से समावेशी वित्तीय विकास के नए दौर का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। ‘सहकार ट्रेंड्स’ सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं है, बल्कि यह एक रास्ता दिखाने वाला नक्शा है कि यूसीबीएस कैसे खुद को तेज़, सक्षम और भविष्य के अनुरूप बना सकते हैं, जहां पुरानी ताकत के साथ-साथ गति, विस्तार और डिजिटल कौशल का संतुलन हो।”

“भारतीय रिज़र्व बैंक की हाल ही में जारी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट इस बात को दर्शाता है की, यूसीबीएस अब और अधिक मजबूत होकर उभर रहे हैं। मार्च 2025 तक प्राइमरी यूसीबीएस में कर्ज़ वितरण की वार्षिक वृद्धि दर 7.4% तक पहुँच गई है, जिसमें शेड्यूल्ड ( और नॉन-शेड्यूल्ड दोनों श्रेणियों ने इस ऋण गतिविधि में अहम भूमिका निभाई है। पूंजी की स्थिति में भी उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है । कुल कैपिटल टू रिस्क-वेटेड एसेट्स रेश्यो (सीआरए आर ) बढ़कर 18.0% हो गया है। साथ ही, संपत्ति गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। ग्रॉस एनपीए घटकर 6.1% और नेट एनपीए 0.6% पर आ गया है।

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