भाजपा पर भरोसा या कांग्रेस के भविष्य का संकेत

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महाराष्ट्र, झारखंड सहित राजस्थान की सात सीटों के उपचुनाव एक परिक्षा
(डॉ. सीमा दाधीच)

महाराष्ट्र, झारखंड में राज्य विधानसभा सभा चुनाव सहित राजस्थान विधान सभा की सात सीटों के लिए नवंबर माह में उप चुनाव होने जा रहे मतदान के संभावित परिणामों को लेकर यहीं कहा जा सकता है की यह परिणाम भाजपा पर भरोसा कायम रखने के लिए होगा या कांग्रेस को संजीवनी देने वाला यह बात चुनावी नतीजों से ही साबित होगी राजस्थान विधान सभा की सात सीटों के लिए हो रहे उपचनाव के नतीजे भी सरकार की कार्य प्रणाली की समीक्षा करने वाला ही होगा इन मे से 6सीट पहले भी कांग्रेस के खाते मे थी और एक भाजपा के खाते की रही है इसलिए इन सभी सातों सीटो के उप चुनाव मे यदि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा घाटे की स्थिति में रहती है तो भाजपा के पास खोने को कुछ नहीं है यू कह सकते है कि यह 6सीटो को बरकरार रखने की सबसे बडी चुनौती मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सामने है। कांग्रेस के खाते वाली 6सीटो मे से झुंझुनूं, दोसा, उनियारा, , खिवंसर, चौरासी, सलूंबर , रामगढ़ पर चुनाव होरहा है इनमे से रामगढ़ मे कांग्रेस विधायक जुबेर खांन के निधन से और आसींद मे भाजपा विधायक रहे अमृत लाल के निधन से सीट रिक्त हुई है जबकि झुंझुनूं सीट से बृजेंद्र ओले, दोसा से कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा, उनियारा देवली सीट से कांग्रेस के हरिश्चंद मीना, चौरासी से भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक का भी सांसद बन जाने और खींवसर से भी कांग्रेस समर्थित राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के विधायक हनुमान बेनीवाल के भी सांसद बन जाने के कारण यह सीट रिक्त हुई है। यदि भाजपा इन सात सीटों मे एक से अधिक सीट जीत लेती है तो राज्य मे भाजपा की सरकार के काम काज पर मोहर लगने की बात आएगी यदि भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाती है तो यह भी संदेश जाएगा की जनता ने भाजपा की भजन लाल सरकार के काम काज को सुधारने का निर्देश दीया हे। इन सात उप चुनावों का आंशिक असर भावी निकाय चुनाव एवम पंचायती राज संस्थानों के चुनाव पर भी असर डालेगा लेकिन खास बात यह है कि इन सातों सीटो के जीतने या हारने का असर प्रदेश सरकार की स्थिरता पर कुछ भी नहीं पड़ेगा क्योंकि चुनावी नतीजे सरकार के विधायक दल की संख्या के भविष्य पर कोई प्रभाव नहीं डालेंगे। दोसा सीट पर भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती स्वयं के नेताओ से ही मिलती दिखाई दे रही है। इस सीट पर भाजपा मे नाराज चल रहे डा. किरोड़ी लाल मीणा की गतिविधियां भी पार्टी के लिए प्रभाव छोड़ेगी। वैसे भाजपा ने तीर का तुरुप चलते हुए डा.किरोड़ी के भाई पूर्व आर ए एस अधिकारी रहे जग मोहन मीणा को प्रत्याशी बनाकर यह सीट जीतने की जिम्मेदारी किरोड़ी लाल मीणा पर ही डाल दी हैं। वहीं महाराष्ट्र मे अभी महायुति यानी भाजपा, शिव सेना शिंदे, एनसीपी अजीत पंवार की गठबंधन सरकार है वहीं झारखंड में कांग्रेस का राज हे। इसलिए यह दोनों राज्यों के विधान सभा चुनाव भाजपा, काग्रेस के लिए जीतना जरूरी है। भाजपा को महाराष्ट्र और झारखंड में सबसे ज्यादा सामंजस्य अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने में बैठाना होगा कुछ हद तक भाजपा इस में सफल भी हो रही है क्योंकि भाजपा के सहयोगी दलों में सीटों को लेकर कोई विवाद नज़र नहीं रहा आरहा है जबकि भाजपा विरोधी दल सीटों के ताल मेल को लेकर उलझन मे हैं। दूसरी तरफ झारखंड मेंभी एनडीए का कुनबा एक जुट होता नज़र आरहा है इस प्रदेश मे भाजपा ने अपने सहयोगी दल आजसू को दस और नीतीश कुमार के जनता दल (यू)को को दो और चिराग पासवान की एलजेपी को एक सीट देकर एनडीए की एक जुटता का सन्देश दिया है। महाराष्ट्र में भी ऐसा ही हो रहा है। महाराष्ट्र मे महा विकास अघाड़ी (एमवीए)ने भले ही लोकसभा चुनाव मे ज्यादा सीटे जीती लेकिन विधान सभा चुनाव मे एमवीए मे शामिल कांग्रेस, शिव सेना (उद्धव) एनसीपी शरद में तालमेल बनाए रखना सा सबसे बड़ी कड़ी चुनौती है महाराष्ट्र की 288विधान सभा सीटों पर पेंच फंस सकता है साथ ही एनडीए में शामिल सभी दल इस चुनाव में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और हिंदुत्व के नाम को आगे रखकर जनता के बीच जाएंगी वहीं भाजपा विरोधी दल कई मुद्दों को लेकर आपस में ही बिखरे नज़र आएंगे। इस लिए लगता है महाराष्ट्र, झारखंड सहित राजस्थान की सभी सात सीटों के उप चुनाव मे मोदी लहर विजय की राह आसान करने का काम कर सकतीहै।यानी यह चुनाव फ़िर से मोदी बनाम मोदी विरोध के बीच होने की संभावना हैं। हम यूं भी कह सकतें हैं कि इन चुनावों में एक बार फ़िर से मोदी लाओ और मोदी हटाओ का नारा जोर पड़ेगा।

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