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तिलक के गणेश उत्सव ने आमजन को दिया स्वराज और एकता का संदेश

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(दिव्यराष्ट्र के लिए गोविंद पारीक पूर्व अतिरिक्त निदेशक डीआईपीआर)
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा धारा 144 के कड़े कानून से व्याप्त भय को खत्म कर इस कानून का विरोध करने के लिए सार्वजनिक रूप से भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत की। इस शुरुआत के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से अंग्रेजों को भगाने और भारत के स्वराज की प्राप्ति में भगवान गणेश की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

भारतीयों मे अंदरूनी रुप से चल रही स्वराज की धारणा को नियंत्रित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने वर्ष 1894 में धारा 144 का नया कानून लागू किया। इस कठोर कानून तहत किसी भी स्थान पर पांच से अधिक भारतीय एकत्रित नहीं हो सकते थे। इस प्रकार सार्वजनिक आयोजनों की मनाही कर दी गई। इस कानून का उल्लंघन करने पर कोड़े मारने कठोर दण्ड दिया जाता था।

सनातन परंपरा में भगवान गणेश को
प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। पुरातन काल से ही गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में
भाद्रपद मास की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का अयोजन किया जाता था।सातवाहन, राष्ट्रकूट तथा चालुक्य वंश के काल में भी गणेश जन्मोत्सव मनाने के प्रमाण मिलते हैं। छत्रपति शिवाजी ने इसे राष्ट्रधर्म और संस्कृति से जोड़ दिया। गणेशजी पेशवाओं के कुलदेवता थे। पेशवाओं ने गणेश उत्सव को व्यापक स्तर पर मनाना प्रांरभ किया।

अंग्रेजी शासन के दौरान गणेश उत्सव सीमित होता गया और वर्ष 1892 तक केवल सनातनी घरों में ही गणेश उत्सव का आयोजन किया जाता था। तिलक द्वारा सार्वजनिक रूप से की गणेश उत्सव मनाने की इस शुरुआत ने न केवल आमजन को स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के लिए एकजुट किया बल्कि अंग्रेजी शासन का खुला विरोध करने का जोश भी भरा।

लोकमान्य तिलक ने सर्वप्रथम 20 से 30 अक्टूबर 1894 तक पुणे के शनिवारवाड़ा में वृहद् स्तर पर आयोजन कर गणेश उत्सव की पुनः ठोस शुरुआत की जो आज तक जारी है। इससे पूर्व घरों में ही गणेश उत्सव मनाया जाता था। उत्सव के दौरान प्रतिदिन तिलक आमजन में जोश भरने के लिए बड़े क्रांतिकारी को आमंत्रित करते थे। बंगाल के सबसे बड़े नेता विपिन चन्द्र पाल 20 अक्टूबर को तथा 21 अक्टूबर को उत्तर भारत के लाला लाजपत राय वहां पहुंचे।

चापेकर बंधू सहित अनेक महान क्रांतिकारियों ने पुणे के इस आयोजन में लगातार 10 दिनों तक उद्बोधन होते रहे। इन उद्बोधनों में भगवान गणेश से देश को अंग्रेजों से आजाद कराकर स्वराज्य की प्रार्थना की जाती रही। अंग्रेजी पुलिस धारा 144 के तहत राजनीतिक समारोह में उमड़ी भीड़ को ही जेल में डाल सकती थी। धार्मिक समारोह गणेश उत्सव में उमड़ी भीड़ को इस कानून के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था।

अगले वर्ष 1895 में पुणे में 11 गणपति स्थापित किए गए। यह संख्या बढ़ते हुए वर्ष 1896 में 31 और वर्ष 1897 में 100 तक पंहुचा गई। गणपति उत्सव का आयोजन कालांतर में मुंबई, नागपुर, अहमदनगर आदि अनेक शहरों में किया जाने लगा। इन सभी गणपति उत्सवों में भारी संख्या में श्रद्धालु व आमजन एकत्रित होने लगे तथा इनमे स्वाधीनता सेनानियों के जोश भरे उद्बोधन स्वराज और एकता का संदेश देते रहे। परिणाम स्वरूप देशवासियों में राष्ट्रभक्ति का ज्वार बढ़ता गया।

गणेश उत्सवों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए लोकमान्य तिलक ने सन् 1904 में स्पष्ट रूप से कहा था कि इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य देश से अंग्रेजों को भगाकर स्वराज्य हासिल करना है।
गणेश उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। पुणे से प्रांरभ हुआ दस दिवसीय गणेश उत्सव अब विश्व के अनेक देशों में अत्यंत उत्साह, उमंग और उल्लास से मनाया जाता है। मान्यता है कि इन 10 दिनों तक भगवान गणेश पृथ्वी पर ही रहकर भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। गणेश चतुर्थी के दिन से व्यासजी श्लोक बोलते गए और गणेशजी उसे लिपिबद्ध करते गए। गणेशजी ने लगातार लेखन के बाद 10वें दिन चतुर्दशी पर सरस्वती नदी में स्नान किया। इसी कारण गणेश चतुर्थी के दिन स्थापित गणेश की 10 दिन पूजा करने के बाद प्रतिमा को अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन कर दिया जाता है।

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