झटकों और समय से पहले हो रहे हार्मोनल बदलावों से मिली राहत, आरएफए तकनीक से सुरक्षित सर्जरी
मुंबई, , दिव्यराष्ट्र/ नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल, मुंबई में डॉक्टरों ने 5 साल की एक बच्ची का सफल इलाज कर एक बेहद दुर्लभ और गंभीर बीमारी पर जीत हासिल की है। यह बच्ची हाइपोथैलेमिक हमार्टोमा नामक जन्मजात बीमारी से जूझ रही थी। मस्तिष्क में एक गांठ की वजह से उसे दिन में करीब 15 बार झटके (सीज़र) आते थे—खासकर हँसी जैसे झटके (गेलास्टिक सीज़र), जो बेहद असामान्य माने जाते हैं। इस चुनौतीपूर्ण बीमारी का इलाज स्टीरियोटैक्टिक रेडियो फ्रीक्वेंसी एबलेशन तकनीक से किया गया।
इस जटिल इलाज का नेतृत्व वरिष्ठ पीडियाट्रिक न्यूरोसर्जन डॉ. सौरव सामंतराय और वरिष्ठ पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रदन्या गाडगिल ने किया। उनकी टीम में न्यूरोसर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट, एंडोक्रिनोलॉजिस्ट और न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट जैसे विशेषज्ञ शामिल थे।
कुछ हफ्ते पहले यह बच्ची नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के ओपीडी में डॉ. प्रदन्या गाडगिल को दिखाई गई थी। उसे लंबे समय से झटकों के दौरे पड़ रहे थे। इसके साथ ही उसमें चिड़चिड़ापन और जरूरत से ज्यादा सक्रियता जैसे व्यवहार संबंधी लक्षण भी दिखने लगे थे। इसके अलावा वह समय से पहले यौवन (प्रीकॉशियस प्यूबर्टी) की स्थिति से भी जूझ रही थी — मासिक धर्म शुरू हो जाना और स्तनों का विकास इसका संकेत था।
बच्ची को कुछ हफ्ते पहले नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रेन हॉस्टिपल के ओपीडी में डॉ. प्रद्न्या गाडगिल के पास लाया गया था। उसे लंबे समय से बार-बार झटके आ रहे थे, साथ ही चिड़चिड़ापन और जरूरत से ज्यादा सक्रियता जैसी व्यवहार संबंधी समस्याएं भी थीं। इसके अलावा, उसे समय से पहले यौवन (प्रीकॉसियस पुबर्टी) के लक्षण भी दिख रहे थे जैसे मासिक धर्म की शुरुआत और स्तन विकास।
मिर्गी की सटीक जांच के लिए उसकी लंबी अवधि तक वीडियो ईईजी रिकॉर्डिंग की गई। इसके साथ एपिलेप्सी प्रोटोकॉल एमआरआई के जरिए मस्तिष्क में मौजूद गांठ की स्थिति को देखा गया। जांच में साफ हुआ कि बच्ची के हाइपोथैलेमस में एक जन्मजात लेकिन गैर-घातक गांठ (हमार्टोमा) है। यह वही हिस्सा है जो शरीर में हार्मोन का संतुलन बनाए रखता है और भूख, प्यास, तापमान, व्यवहार आदि को नियंत्रित करता है। इसी गांठ से बार-बार हँसी के झटके (गेलास्टिक सीज़र) उत्पन्न हो रहे थे। बच्ची के हार्मोन स्तर की भी पूरी जांच की गई।
दरअसल, यह बच्ची महज छह महीने की उम्र से ही ऐसे झटकों का सामना कर रही थी। शुरुआत में इन झटकों को सामान्य शिशु व्यवहार समझ लिया गया, जिससे बीमारी की पहचान में देरी हुई। जब बाद में समय से पहले यौवन के लक्षण — योनि से रक्तस्राव और स्तनों का विकास — दिखने लगे, तब पता चला कि इसके पीछे हार्मोनल असंतुलन है। इसके बाद इलाज की दिशा तय की गई।
एमआरआई जांच में पता चला कि बच्ची के मस्तिष्क में हाइपोथैलेमिक हमार्टोमा नाम की एक दुर्लभ और जन्मजात गांठ है। यह गांठ मस्तिष्क के उस हिस्से में थी, जो हार्मोन के स्तर और भावनात्मक व्यवहार को नियंत्रित करता है। यही गांठ उसके झटकों और हार्मोन से जुड़ी समस्याओं की मुख्य वजह थी। कई दवाएं देने के बावजूद बच्ची को रोजाना 10 से 15 झटके आते रहे। इसके साथ ही उसमें चिड़चिड़ापन और अत्यधिक सक्रियता जैसे व्यवहार संबंधी बदलाव भी देखे गए।
नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल, मुंबई के सीनियर कंसल्टेंट – पीडियाट्रिक न्यूरोसर्जरी, डॉ. सौरव सामंतराय ने बताया, “ग्रेड III हाइपोथैलेमिक हमार्टोमा का ऑपरेशन करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि यह मस्तिष्क के बहुत भीतर ऐसे हिस्सों के पास होता है जो जीवन के लिए बेहद जरूरी होते हैं — जैसे ब्रेन स्टेम और आंखों की नसें। पारंपरिक ओपन सर्जरी से लकवा, दृष्टिहानि या हार्मोनल गड़बड़ी जैसी जटिलताओं का खतरा करीब 30% तक रहता है। लेकिन हमने रेडियो फ्रिक्वेंसी एब्लेशन (आरएफए) तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसमें केवल 2 मिमी के पांच छोटे छेदों के जरिये मिलीमीटर स्तर की सटीकता वाले इलेक्ट्रोड्स की मदद से गांठ को सुरक्षित रूप से नष्ट किया गया। इस प्रक्रिया की योजना कई घंटों तक विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से बेहद सावधानीपूर्वक बनाई और पूरी की गई। इस आधुनिक तकनीक से जोखिम काफी कम हो गया और ऑपरेशन के बाद बच्ची के झटके पूरी तरह बंद हो गए।”