जयपुर। दिव्यराष्ट्र/भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डॉक्टरों ने राज्य की पहली कार-टी सेल थेरेपी 26 वर्षीय स्टूडेंट के कैंसर उपचार के दौरान दी है। कैंसर उपचार की नवीनतम तकनीक का राज्य में यह पहला केस बीएमसीएचआरसी के मेडिकल एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी के विशेषज्ञों की टीम की ओर से किया गया। चिकित्सालय के ब्लड कैंसर एंव बोन मेरो ट्रांसप्लांट विषेषज्ञ डॉ प्रकाष सिंह शेखावत की ओर से की गई इस थेरेपी ने रोगी को कैंसर मुक्त करने की दिषा में बड़ी सफलता हासिल की है।
मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ अजय बापना ने बताया कि कार टी-सेल थेरेपी देश की पहली घरेलू जीन थेरेपी है जिसे काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी भी करते है। यह जीन थेरेपी का एक रूप है। इस जीन-बेस्ड थेरेपी को देश के बाहर इसकी कीमत के लगभग दसवें हिस्से पर देश में तैयार किया गया है।
डॉ शेखावत ने बताया कार-टी सेल थेरेपी के लिए रोगी की प्रतिरक्षा कोशिकाओं, विशेष रूप से टी कोशिकाओं को संशोधित करने और उन्हें कैंसर से लड़ने के लिए तैयार करने के लिए जटिल इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है। कार टी-सेल थेरेपी की जरूरत उन मरीज़ों को होती है जिनका कैंसर उपचार के बाद वापस आ गया है या जिन रोगियों में उपचार के बाद भी रोग ठीक नहीं हो रहा हो। यह थेरेपी, ल्यूकेमिया, लिम्फ़ोमा, और मल्टीपल मायलोमा जैसे कुछ तरह के रक्त कैंसर के इलाज में कारगर है। हम इन कोशिकाओं को टर्बो चार्जड टी सेल कहते है।
हर रोगी के स्वास्थ्य के आधार पर तैयार होती है थेरेपी*
डॉ शेखावत ने बताया कि यह थेरेपी हर रोगी के लिए कस्टमाइज होती है। इसमें मरीज के शरीर से टी कोशिकाएं लेकर उन्हें कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए बदला जाता है। यह प्रक्रिया आईआईटी बॉम्बे की संबंधित लैब में होती है। जिसके तहत रोगी के ब्लड में मौजूद टी सेल को इस तरह प्रोसेस किया जाता है कि वह रोगी की बॉडी में जाकर कैंसर सेल को खत्म कर सके। इस प्रक्रिया में करीब एक माह का समय लगता है। उसके बाद रोगी की थेरेपी शुरू होती है। यह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की नवीनतम देन है। डॉ शेखावत ने बताया कि इसे लिविंग ड्रग्स अर्थात जीवीत दवाई ध् इम्यूनोथेरेपी भी कह सकते है। इस प्रक्रिया में रोगी को संक्रमण का खतरा अधिक होता है, इसलिए यह पूर्ण विशेष रूप से तैयार उपचार विंग में ही की जाती है।