10 जुलाई 2025 को गुरु पूर्णिमा है
गुरू वंदना का पर्व गुरू पूर्णिमा
(दिव्य राष्ट्र के लिए लेखक राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया नैतिक शिक्षाविद, आध्यात्मिक चिंतक मार्गदर्शक हैं।)
जयपुर। दिव्यराष्ट्र/ गुरु पूर्णिमा एक महान उत्सव है। उस दिन शिष्य अपने गुरु का पूजन करता है, नमन करता है, वंदन करता है। सभी कलाकार अपने-अपने गुरु का पूजन करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। अपनी श्रद्धा अनुसार गुरु को भेंट भी चढ़ाते हैं या लाते हैं।
गुरु शिष्य परंपरा में एक प्रथा यह भी है कि उस दिन गुरु अपने शिष्य के दाहिने हाथ में मौली का रंगीन धागा बांधते हैं। गुरु शिष्य परंपरा में इसे गन्डाबंध शिष्य कहते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि वह विद्यार्थी उस गुरु विशेष का शिष्य बन गया है, इसलिए अब वह और किसी को अपना गुरु नहीं बना सकेगा।
यह धागा साल भर तक शिष्य के दाहिने हाथ में बंधा रहता है और अगले साल गुरु पूर्णिमा आने पर पुराना धागा खोलकर नया धागा बांध दिया जाता है। यदि साल भर पूरा होने के बीच में ही वह धागा गल जाता है और टूट जाता है, तो गुरु तुरंत नया धागा बांध देता है। जिससे कि कोई भी व्यक्ति उस शिष्य को अपना शिष्य नहीं बना सकता है।
जैसे अदालत में आपने यदि एक वकील कर लिया है, तो आप दूसरा वकील तब तक नहीं बना सकते हैं, जब तक कि पहले वकील से आपको एन ओ सी प्राप्त नहीं हो जाए।
इसी तरह से शिष्य के हाथ में यदि किसी गुरु का धागा या गन्डा बंधा हुआ है, तो वह पूछेगा कि तुम किस गुरु के शिष्य हो और जब तक उस पहले गुरु से आज्ञा प्राप्त नहीं हो जाती है, नया गुरु उसको अपना शिष्य नहीं बनाएगा।
कला के क्षेत्र में इसका परिणाम यह हुआ कि वह शिष्य किसी विशेष गुरु के साथ बंध गया है और वह शिष्य अपनी उन्नति के लिए अन्य किसी गुरु का सहारा या मार्गदर्शन नहीं ले सकता है।
प्राचीन काल में गुरु शिष्य परंपरा में यह सब कुछ बहुत ही अच्छा था, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को उच्चतम शिखर पर पहुंचा कर ही संतोष प्राप्त करते थे। वह अपने शिष्य के लिए जी जान से मेहनत करते थे और शिष्य भी सफलता की सीढ़ियां चढ़कर अपने गुरु का नाम ऊंचा करता था, परंतु आधुनिक काल में जब सब कुछ धन पर आधारित सम्बन्ध हो गया तो इस परंपरा को भी लोगों ने दूषित कर दिया। कई गुरु अपने शिष्य से बड़ी-बड़ी भेंट मांगते हैं, चाहे वह शिष्य गरीब हो या अमीर, उसकी भेंट में धन देने की शक्ति हो या ना हो, फिर भी गुरु पूर्णिमा के नाम पर उसको छोड़ते नहीं है।
हां, मैंने बहुत से आदर्शवादी गुरु देखे हैं, जो अपने शिष्य से कुछ भी नहीं मांगते हैं परंतु उनकी संख्या नगण्य है।
मेरे भी चार गुरुजी मुझे संगीत सिखाने के लिए रोजाना आते है।
एक कथक नृत्य सिखाने के लिए,
दूसरे तबला वादन सिखाने वाले,
तीसरे शास्त्रीय गायन सिखाने वाले,
चौथे उपशास्त्रीय गायन, सुगम संगीत और गजल को सिखाने के लिए
रोजाना दो-दो घंटे के लिए आते हैं। परंतु इनमें से किसी भी गुरु जी ने मुझसे किसी भी प्रकार की मांग नहीं की है। यह मेरे लिए बहुत खुशी और गौरव की बात है।
दाहिने हाथ में लाल धागा यानी मौली का धागा एक और अवसर पर बांधा जाता है, जब आप पूजा पाठ, हवन यज्ञ आदि करने के लिए बैठते हैं। तब पंडित जी आपके माथे पर तिलक निकाल कर आपके दाहिने हाथ में मौली का लाल धागा बांधते हैं। इसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। पूजा पाठ, हवन यज्ञ के समय यह रक्षा सूत्र इसलिए बांधा जाता है कि आपकी पूजा पाठ, हवन यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हो जाए।
पूजा पाठ संपन्न होने के बाद पंडित जी आवाहन किए गए देवी देवताओं और भगवान को तो यह कहते हैं कि लक्ष्मी जी और गणेश जी हमारे घर में सदा विराजमान रहे और बाकी सभी देवता अपने-अपने देवलोक को प्रस्थान करें, परंतु हाथ में जो रक्षा सूत्र बांधते हैं, वह कब तक बंधा रहना चाहिए, या उसको कब खोल देना चाहिए, इसके बारे में कोई निर्देश नहीं देते हैं। नतीजा यह होता है कि लोगों के हाथ पर वह रक्षा सूत्र बंधा रह जाता है और भोले भाले लोगों को यह पता ही नहीं रहता है कि इसको कब उतारना या खोल देना चाहिए या आपके लिए उनकी उपयोगिता कब समाप्त हो जाती है।
कई लोग तो इनको हमेशा बांधे रखते हैं, जब तक ये घिसकर या गलकर टूट नहीं जाए। परंतु इनको हमेशा हाथ में बांधे रखने से कोई फायदा नहीं है। उल्टे पानी में बार-बार गीले होने से इन्फेक्शन पैदा होने के चांसेस और बने रहते हैं। गले हुए धागे हाथ में बंधे रहने से कई बार कलाई या मणिबन्ध में खुजली की बीमारी और हो जाती है। इन धागों को बांधने में गांठ लगाना पड़ती है, जबकि हमको हमारे तन पर और मन पर बंधी हुई गांठ को हमें खोल देना चाहिए।
यदि आप इन धागों को खोल देंगे, इनकी गांठों को खोल देंगे तो साइकोलॉजिकली आप पर यह प्रभाव पड़ेगा कि आप स्वतंत्र हो गए हैं, आपने अपने बंधन खोल दिए हैं और अब आप आजाद हैं। तब आप तेजी से अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न कर सकेंगे।
लोग कहते हैं कि जब रक्षा सूत्र के रूप में इन धागों को बांधा गया है, तो फिर हम रक्षा सूत्र को कैसे खोल देवे।
उन लोगों से मेरा निवेदन है कि हमारी बहनें रक्षाबंधन के पर्व पर हमारे हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है, राखी बांधती है। फिर हम उस राखी को क्यों खोल देते हैं? वह
तो ज्यादा महत्वपूर्ण रक्षा सूत्र है। बहन के प्यार से, भरपूर भावना से भरा हुआ होता है। बहन की सच्ची प्रार्थना उसके साथ होती है। फिर राखी को क्यों खोल देते हैं?
इसलिए मैं तो कहता हूं कि हमारे हाथों में, पैरों में कोई बंधन बंधा हुआ नहीं होना चाहिए। चोर, डाकुओं और कैदीयों के हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां पड़ी होती है। कुछ लोग हाथों में स्टील के लोहे के कड़े पहनते हैं। अमीर लोग हाथों में सोने की ब्रेसलेट और पैरों में भी आभूषण पहनते हैं। यह लोग इन धातुओं के गुण का लाभ उठाने के लिए पहनते हैं। हम अनावश्यक रूप से हाथों में लाल धागों को कब तक पहनते रहेंगे।
आप वैज्ञानिक तौर से इन सब बातों पर विचार करिए और धर्म का वैज्ञानिक पक्ष समझिए उसी में आपका फायदा है, समाज का फायदा है, सबका फायदा है।