(डा. सीमा दाधीच)।
भारत श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है जहां प्रति दिवस आस्था प्रकट करने के लिए देवी देवताओं की पूजा हेतु पर्व मनाए जाते है। संसार के निर्माण में तीन शक्तियों का योगदानों माना गया है। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश को ही मूल आधार मानकर भगवान के रूप में पूजा गया है। इनमें केवल देवाधिदेव के रूप में महादेव की वंदना की गई है। महादेव जिन्हें विभिन्न नामों से जाना और पूजा गया है। महा शिवरात्रि पर्व महादेव की पूजा का सबसे बड़ा पर्व माना गया है। संपूर्ण भारत में महाशिवरात्रि को श्रद्धा से मनाया जाता है । शिव ने जगत रक्षा के लिए समुद्र मंथन में सबसे पहले निकले कालकूट विषका पान किया। शिव ने ही देवता और जगत की रक्षा के लिए स्वयं ने पी लिया विष को पीने से उनके कंठ नीले हो गए इसलिए शिव नीलकंठ महादेव भी कहलाए।शिव भोले भी हैं और जगत कल्याण कारक भी है उन्हें शक्ति,भक्ति और वैराग्य का प्रतीक भी माना गया है इसलिए शिव उपासकों को मोह माया से दूर माना गया है। महादेव की पूजा शक्ति की प्राप्ति के लिए सूर और असुर दोनों ने की है भगवान राम भी शिव पूजक रहे वही रावण भी शिव भक्त के रूप में जाना गया। शिव के विवाह की रात्रि महाशिवरात्रि भगवान शिव का प्रमुख पर्व है इस दिन शिव ने वैराग्य का त्याग कर माता पार्वती को जीवन संगिनी बनाया था यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले के त्रियुगीनारायण गांव में हुआ था,इस दिन से सृष्टि का प्रारम्भ भी माना गया है।
श्रीमदभागवत के अनुसार भगवान शिव महाकाल है , जिसका अर्थ है कि वे समय या काल से परे हैं , अर्थात भूत भविष्य वर्तमान तीन कालों से परे। काल या समय सृष्टि का गुण है, जो सृष्टि के जन्म से पूर्व भी हो और सृष्टि के अंत के बाद भी रहे वही महाकाल है। इसी मान्यता के अनुसार सृष्टि का जन्म एक ऊर्जा के एक अनन्त पुंज की तरह होता है और वही पुंज महाकाल या भगवान् शिव होते हैं। इसी प्रथम पुंज को स्वयंभू शिवलिंग की तरह भी पूजा जाता है। शिवलिंग सृष्टि के आरंभ का प्रतीक होते हैं। इसमें
वैष्णव , शैव, शाक्त , गाणपत्य और सौर ये पांच तरह के सनातनी हैं जो कि क्रमशः विष्णु , शिव , शक्ति, गणपति और सूर्य के उपासक होते हैं ये अपने उपास्य को ईश्वर तथा अन्य चारों को देवता मानकर उनकी आराधना करते हैं। वैसे शैव मत वाले लोग भगवन शिवजी को अधिक मानते हैं। वैष्णव मत वाले भगवान विष्णु को अधिक मानते है।वर्तमान में भगवान ब्रम्हा को जीवो,मनुष्यो आदि की सृष्टि का जनक,भगवान विष्णु को सृष्टि का पालक तथा भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता गया है।तीनो भगवान को उनके कर्तव्यानुसार बराबर आदर दिया जाता है तथा उनमे बराबर श्रद्धा रखी जाती है अतः शैव वो हैं तो शिव को ईश्वर माना जाता था अन्य को देवता मानते हैं और वैष्णव वो हैं जो विष्णु को ईश्वर और अन्य समस्त को देवता मानते हैं। जगगद्गुरु शंकराचार्य जी ने इसका निराकरण किया और सभी के लिए शिव और विष्णु दोनों की उपासना सात्विक उपासना का प्रचार कर हिन्दुओं को संगठित किया । तुलसीदास जी ने शिव और वैष्णव मत के झगड़े का अंत यह बताकर किया उनके अनुसार श्रीराम को विष्णु का अवतार बताना और उनसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर और शिव और विष्णु को एक दूसरे का उपासक सिद्ध कर इस सारे झगड़े का ही अंत कर दिया ।
शिव-पार्वती के विवाह से शुद्ध चेतना, वैराग्य और विनाश, यानी भगवान शिव और शक्ति का मिलन ही महाशिवरात्रि है। वैसे शिव की मासिक शिवरात्रि एक नियमित भक्ति को बताती है,जबकि महाशिवरात्रि आध्यात्मिक परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है जिस दिन स्वयं भगवान शंकर का हृदय परिवर्तित होकर संसार के कल्याण के लिए वैराग्य को त्याग कर शक्ति यानी पार्वती से विवाह किया जगत को विवाह का महत्व बताया इस रात्रि का अर्थ
महा का अर्थ है महान, रात्रि का अर्थ है रात, और जयंती का अर्थ है ‘जन्म तिथि/समय’ के है। “शिव” शब्द संस्कृत से उत्पन्न है, जिसका अर्थ है “उपकारक”। इसलिए, “शिवरात्रि” का तात्पर्य है कि निराकार भगवान (शिव) हमारी दुनिया में ऐसे समय में अवतरित होते हैं जब घोर अंधकार की रात छा जाती है। यहाँ “रात्रि” शब्द सूर्यास्त के बाद होने वाले अंधकार को नहीं दर्शाता है, बल्कि यह दुनिया में अत्यधिक अज्ञानता ( आध्यात्मिक ज्ञान की कमी ) और अधर्म के अंधकार को दूर करने से है। शिवरात्रि भारत में ताम्र युग से मनाई जाती है। इसमें
रात्रि, जिसका अर्थ है रात, वह है जो मनुष्य को आराम या शांति देती है, जब सब कुछ शांत और शांतिपूर्ण हो जाता है। शिवरात्रि केवल शरीर के लिए ही नहीं, बल्कि मन और अहंकार के लिए भी आराम है। इसलिए ही शिवरात्रि विशेष महत्व रखती हैं क्योंकि यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है, शक्ति स्त्री सिद्धांत, सक्रिय शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। ईशान संहिता के अनुसार
महाशिवरात्रि पर्व को भगवान शिव के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और शिवलिंग की पूजा की जाती है। माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ”॥*
शिव और शक्ति के मिलन से ही क्रिया, गति और सृजन की उत्पत्ति होती है। जब तक ऊर्जा में चेतना नहीं समाती, तब तक वह अज्ञानी, अव्यवस्थित, लक्ष्यहीन और “अंधा” होती है। अकेले ऊर्जा कुछ भी उत्पन्न नहीं कर सकती; चेतना उसे सामग्री, रूप और दिशा प्रदान करती है। शिव कोआध्यात्मिक रूप में ऐसे भी देखा जा सकता है शिवम, शांतम, अद्वैतम: शिव का अर्थ है आपकी आत्मा,आपका अंतरतम केंद्र, सबसे शुद्ध आत्मा। शांतम शांत, शांतिपूर्ण और बहुत मासूम है। अद्वैतम अद्वैत है, जहाँ केवल एक ही है।
जब मानव आत्माएँ 5 विकारों (वासना, क्रोध, लोभ, अहंकार, भौतिक आसक्ति) के प्रभाव में अशुद्ध हो जाती हैं, और जब पवित्रता और शांति का सच्चा धर्म और आध्यात्मिक आत्म-पहचान भूल जाती है, तो वे मानवता को उसके उच्चतम स्तर पर पुनर्स्थापित करने के लिए आते हैं, जो देवताओं का मूल धर्म है। ऐसी ही रात्रि में, भगवान को हमें जगाने, शांति, पवित्रता और सार्वभौमिक प्रेम और भाईचारे के सत्य धर्म (सच्चे धर्म) को फिर से स्थापित करने के लिए आना पड़ता है। वे पूरी मानवता का उत्थान करने और इस तरह हम सभी को दुखों से मुक्त करने के लिए आते हैं।
महा शिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है ,खास तौर पर स्कंद पुराण,लिंग पुराण और पद्म पुराण में। मध्यकालीन युग के ये शैव ग्रंथ इस त्यौहार से जुड़े अलग- अलग संस्करण प्रस्तुत करते हैं,जैसे उपवास करना और शिवलिंग के प्रति श्रद्धा अर्पित करना जो शिव का एक प्रतीकात्मक स्वरूप है। खजुराहो शिव मंदिरों में, महा शिवरात्रि पर एक प्रमुख मेला और नृत्य समारोह, जिसमें शैव तीर्थयात्री मंदिर परिसर के चारों ओर मीलों तक डेरा डालते थे, का दस्तावेजीकरण 1864 में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा किया गया था। यह भगवान के प्रति आस्था का प्रतीक रहा,
महाशिवरात्रि को कश्मीर के हिंदुओं द्वारा भी बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है और इसे कश्मीरी में “हेराथ” कहा जाता है, यह शब्द संस्कृत शब्द “हरारात्रि” से लिया गया है जिसका अर्थ है “हरा की रात यह शिव का दूसरा नाम। यह उधर के समुदाय का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार शिवरात्रि है यह उनके द्वारा फाल्गुन (फरवरी-मार्च) के महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या तेरहवीं को मनाया जाता है, न कि देश के बाकी हिस्सों की तरह चतुर्दशी या चौदहवीं को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में 16 संस्कार में पाणिग्रहण संस्कार का महत्व शिव और शक्ति के विवाह से समझे आज यदि आराध्य देव महादेव से सीखे जो पत्नी को केवल अर्धांगिनी कहा ही नहीं इसको जीवंत पेश किया आज यदि गृहस्थ जीवन यापन करने वाले इस बात को समझे तो उन्हें अदालत का द्वार नहीं देखना पड़े इसमें महादेव ने शक्ति का सम्मान किया और शक्ति रूप में पार्वती ने शिव का ।