दान करना सिखाया महर्षि दधीचि ने।
(डॉ .सीमा दाधीच ) विश्व मे सबसे पहले मानव को दान करने का ज्ञान महर्षि दधीचि ने स्वयं की देह का दान कर सिखाया। अभी जिस प्रकार वृक्ष कभी अपना फल स्वयं नही खाते और नदी अपना जल नहीं पीती वैसे ही महान और परोपकारी परोपकार के लिए ही जन्म लेते है । महर्षि दधीचि की माता ‘चित्ति’ और पिता ‘अथर्वा’ थे, इसीलिए इनका नाम ‘दधीचि’ हुआ ,महर्षि दधीचि का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था।
महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता होने के साथ ही स्वभाव के बड़े ही दयालु थे अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं पाया था।
नैमिषारण्य में महर्षि दधीचि ऋषि का आश्रम था । उनके त्याग और तप की ख्याति सम्पूर्ण संसार मे व्याप्त थी।
दधीचि महान चरित्र वाले महान ऋषियों में से एक थे ।
संपूर्ण अथर्ववेद और अन्य अनुवर्ती शास्त्र, और मधुविद्या का ज्ञान (मधुविद्या) उनकी सबसे बड़ी प्रतिभा है। उन्हें नारायण कवच प्राप्त था लेकिन उन्होंने कभी अहंकार नहीं किया।
यदि हम दान की बात करे तो अन्नदान,जलदान, भूमिदान,गो दान, वस्त्र दान, वचनदान, कन्यादान, अस्त्र शस्त्रदान, विद्या दान भी पीछे रहे , कर्ण का (यौवन दान, कवच दान ),
राजा कीर्कित्तध्वज का स्वर्ण दान, इन सभी के दान से बढ़ कर दिया दधीचि ने किया अस्थिदान। महादेव से दधीचि को वरदान प्राप्त था वो अपनी अस्थि से वज्र बना सकते थे।
जब सभी इंद्र देव और ऋषि दधीचि के आश्रम आए और विनती करने लगे की वृतासुर का आतंक बढ़ गया और आपके अस्थि से बने वज्र से ही नाश होगा तो दधीचि ऋषि ने भगवान शिव का ध्यान कर अपनी सांस को बंद कर कपाल में खींच लिया तब इन्द्र देव ने कामधेनू गाय से आग्रह कर ऋषि की देह को चटवा कर अस्थि का ढांचा सा बना दिया ,इनकी रीढ़ की हड्डी से वज्र बना जो वृतासुर को मारने में काम आया,वज्र का उपयोग न केवल वृत्रासुर को मारने के लिए किया गया था, बल्कि उसके दुष्ट साथियों को भी मारने के लिए किया गया था।
बाकी सीने की हड्डी से
विश्वकर्मा ने तीन धनुष तैयार किया।
भगवान श्री राम ने जिस धुनुष को तोड़ा वह भी दधिचि की अस्थियों से ही बना था इस लिए हम यह भी कह सकते है की महर्षि दधीचि ने ही राम और सीता का मिलन करवा दिया। ऋषि अस्थि धनुष पिनाक ने स्वयं उपस्थित ना रहे जीव से ,मन से राम ने नमन किया उठा पिनाक को तोड़ दिया दधीचि के आशीर्वाद से।अर्जुन गांडीव युद्ध में ले गया युद्ध हुआ महान।
तीसरा शस्त्र शारंग जो कृष्ण का धनुष रहा।
बंशी बजेया श्री कृष्ण को महादेव ने सुन्दर मनोहारी बंशी महानंदा/ सम्मोहिनी दी जो दधीचि के हड्डी को घिस कर स्वयं शंकर ने बनाई थी।शुक्राचार्य जी ने ऋषि दधीचि को महामृत्युंजय मंत्र का ज्ञान दिया। वर्तमान समय मे देश को मेडिकल क्षेत्र मे देह दान और अंग दान की आवश्यकता है इसलिए हम महर्षि दधीचि जयंती पर संकल्प ले की त्याग मूर्ति महर्षि दधीचि के आदर्श को जीवन मे साकार करने के लिए देह दान, अंग दान को बढ़ावा दें।