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पालतू जानवरों की परवरिश के लिए छोटे शहरों में मिला नया ठिकाना

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भारत में एक शांत लेकिन एक भारी बदलाव देखने को मिल रहा है

जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ पालतू जानवरों को पालना अब सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं रही है। छोटे शहरों में भी अब रोज़ाना की सैर से लेकर महीने भर में एक बार डॉक्टर के पास अपने पालतू जानवरों को ले जाने का चलन बढ़ रहा है, और इन जानवरों को परिवार का हिस्सा मानने लगे हैं। पालतू जानवरों के प्रति स्नेह और उनकी देखभाल पर होनेवाला खर्च, दोनों में बढ़ोतरी हो रही है।
नितिन जैन, चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर, गोदरेज पेट केयर (गोदरेज निंजा डॉग फूड निर्माता) सिर्फ पांच साल पहले तक, मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे मेट्रो शहर भारत की पेट केयर मांग का लगभग 60% हिस्सा रखते थे। लेकिन आज यह आंकड़ा घटकर 45% हो गया है, जबकि टियर 2 और टियर 3 शहर में पेट केयर की कुल मांग का लगभग आधा हिस्सा चला रहे हैं। यह बदलाव साफ़ तौर पर दिखाता है कि भारत में पालतू जानवरों के साथ भावनात्मक जुड़ाव अब केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह लगाव देश के छोटे शहरों और कस्बों में भी गहराई से जड़ें जमा रहा है।
छोटे शहरों में यह उछाल क्यों?
रिमोट और हाइब्रिड वर्क के चलन ने कई लोगों को अपने गृहनगरों में लौटने या शांत शहरों में बसने की सुविधा दी है। घर में ज़्यादा जगह, कम तनावपूर्ण दिनचर्या और पारिवारिक सहयोग के चलते लोगों के लिए पालतू जानवरों को अपनाना आसान और आनंददायक बन गया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक युवा, जानकार और डिजिटल रूप से जानकार पीढ़ी इस बदलाव का नेतृत्व कर रही है। वे सलाह, उत्पादों और सहयोग के लिए ऑनलाइन समुदायों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का सहारा लेते हैं, जबकि खिलौने, कपड़े और एक्सेसरीज़ जैसी नई श्रेणियों की खोज कर रहे हैं, जिन्हें कभी वैकल्पिक माना जाता था लेकिन अब वे नियमित पालतू देखभाल की टोकरी का हिस्सा हैं।
इसके अलावा, जैसे-जैसे कॉर्पोरेट कंपनियां टियर 2 शहरों में अपने हेडक्वार्टर स्थापित कर रही हैं और वर्क-फ्रॉम-होम की सुविधा दे रही हैं, तो इन क्षेत्रों में दोहरी आय वाले परिवार अब गुणवत्ता युक्त पैक्ड पेट फूड और स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे पालतू जानवरों और उनके मालिकों के बीच का संबंध और भी मजबूत हो रहा है।
पालतू जानवरों पर खर्च तेजी से बढ़ रहा है
दिलचस्प बात यह है कि इन नए पेट पैरेंट्स में से ज़्यादातर पहली बार पालतू जानवरों को अपना रहे हैं। टियर 2 और 3 शहरों में पहली बार पालतू जनवरों को अपनाने वालों की संख्या मेट्रो शहरों की तुलना में कहीं तेज़ी से बढ़ रही है। जहां मेट्रो शहरों में सीमित जगह के चलते लोग छोटे नस्ल के कुत्तों की ओर रुख कर रहे हैं, तो वहीं छोटे शहरों में मध्यम आकार की नस्लों को प्राथमिकता दी जा रही है, जो लोगों की बदलती जीवनशैली के अंतर को दर्शाता है।
लोग सिर्फ पालतू जानवरों को ही अपना नहीं रहे, बल्कि उन पर खर्च भी कर रहे हैं। हालिया उद्योग आंकड़ों के अनुसार, भारत में पेट पैरेंट्स अब सालाना लगभग 50,000 रुपये पेट केयर पर खर्च कर रहे हैं, जो कि औसतन घरेलू आय का 5–8% है। यह बढ़ता हुआ खर्च इस श्रेणी के प्रीमियमाइजेशन को दर्शाता है, जहां लोग अपने पालतू जानवरों के लिए अधिक स्वास्थ्यवर्धक, सुविधाजनक और स्पेशलाइज्ड उत्पादों की चाह रखते हैं। खासकर टियर 1 और टियर 2 शहरों में प्रीमियम पैक्ड फूड, एक्सेसरीज़ और ट्रीट्स के चलते कई पेट पैरेंट्स का मासिक खर्च काफी बढ़ गया है।
भारत का पेट केयर बाज़ार वित्त वर्ष 2027-28 तक 2.5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की राह पर है,जो अगले कुछ ही वर्षों में बढ़कर दोगुना हो जाएगा। लेकिन, यह वृद्धि सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत के विविध शहरों और कस्बों में इंसानों और उनके पालतू जानवरों के बीच का बंधन कितना गहरा होता जा रहा है।
जैसे-जैसे और लोग एक प्यारे दोस्त के साथ जीवन का सुख और सुकून अनुभव कर रहे हैं, यह स्पष्ट है कि पालतू जानवरों की परवरिश अब सिर्फ बड़े शहरों की चलन नहीं रही, यह अब एक जीवनशैली बन चुकी है, जो भारत के दिल में तेज़ी से जड़ें जमा रही है।

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