Home Blog संघ ने सिखाया राष्ट्रवाद

संघ ने सिखाया राष्ट्रवाद

0

शक्ति की उपासना के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना

(डॉ.सीमा दाधीच)

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) को श्रेष्ठ नागरिक बनाने की परिकल्पना के साथ आज से 99वर्ष पूर्व विजया दशमी के दिन डा.केशव राव बलिराव हेडगेवार ने नागपुर में स्थापित किया तभी से यह संघठन अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए राष्ट्रवाद की भावना का संकल्प लेकर राष्ट्र भक्तो की विशाल फौज खड़ी कर मां भारती की सेवा के लिए संकल्पित हे।अच्छे अनुभवी और कार्य कुशलता में निपुण स्वयं सेवकों के साथ मर्यादित संगठन जो समाज में समय के साथ काम करने बुजुर्ग से लेकर बच्चों तक सभी को एक नई ऊर्जा से कार्य करने के लिए वचनबद्ध होकर हिंदुत्व का गौरव बढ़ा रहा है। जब भी भारत देश को चुनौतियों का सामना करना पड़ा तब स्वयं सेवकों ने अपनी जान की परवाह किए बगेर भारत वासियों की मदद मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चाहे कबालियो द्वारा कश्मीर पर किया गया हमला हो या कोई भी आपदा स्वयं सेवक कभी पीछे नहीं रहे।संघ एक ऐसा मजबूत संगठन हे जिसको वैचारिक मतभेद छू तक नही सका और देश का पहला ऐसा संघठन है जिसने देश में 99 वर्ष तक लगातार काम किया और लोगो की संख्या बढ़ती ही रही।दशहरा के मौके पर शस्त्रधारियों के लिए शस्त्र के पूजन का विशेष महत्व है. इस दिन शस्त्रों की पूजा घरों और सैन्य संगठनों द्वारा की जाती है। धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों की आवश्यकता होती है। हमारी सत्य सनातन परंपरा ही “परित्राणाय च साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम” का उद्घोष करती है।नौ दिनों की उपासना के बाद 10 वें दिन विजय कामना के साथ शस्त्रों का पूजन किया जाता है। विजयादशमी पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की पूजा के साथ शस्त्र पूजा की परंपरा हिंदू धर्म में लंबे समय से रही है, छत्रपति शिवाजी ने इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न कर भवानी तलवार प्राप्त की थी।शक्तिपूजा का अर्थ सिर्फ सामरिक शक्ति की उपासना नहीं है। अपने व्यापक अर्थ में इसमें आर्थिक शक्ति, वैज्ञानिक शक्ति, टैक्नोलॉजी की शक्ति और नागरिकों के आत्मबल की ताकत भी शामिल है,यह संदेश देने के लिए स्थान-स्थान पर शक्ति के प्रतीक के रूप में विजयदशमी के निमित शस्त्र पूजन करने की परंपरा भारत में है।
आरएसएस ही देश का वह संगठन है जिसने 99 वर्ष तक देश में एक मजबूती के साथ काम किया और बिना वैचारिक मतभेद आगे बढ़ता रहा यहीं वह हिंदू संगठन है जिसने नारी शक्ति को भी आगे बढ़ाने का कार्य किया यह संगठन भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देता है और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को “मजबूत” करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करता है।आरएसएस भाजपा का वैचारिक अभिभावक है। आरएसएसएस को 1947 में चार दिनों के लिए प्रतिबंधित किया गया था, तथा उसके बाद स्वतंत्रता के बाद की भारतीय सरकार द्वारा तीन बार प्रतिबंधित किया गया था; पहली बार 1948 में जब हिन्दू महासभा से जुड़े नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी; फिर आपातकाल के दौरान (1975-1977); तथा तीसरी बार 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद लेकिन यह संगठन हमेशा मजबूती से खड़े होकर अपने 98 वर्ष पूर्ण कर 99 वर्ष में प्रवेश हो गया देश का पहला ऐसा संघठन जिसने शताब्दी वर्ष के पास पहुंच बनाई।संघ के हर कार्य मे राष्ट्रवाद की झलक नज़र आती है इसलिए संघ ने व्यक्ति पूजा से स्वयं को परे रख कर ध्वज वंदना को सुनाया और प्रार्थना मे भी मातृ भूमि का ही वंदन किया। “नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमिये”संघ प्रार्थना की प्रथम पंक्ति ही राष्ट्र वाद का संदेश देती है। संघ अपनी शाखाओं के माध्यम से छोटे, छोटे स्वयं सेवकों मे राष्ट्रीयता का भाव जागृत करने के साथ ही हिंदुत्व का गौरव जागृत कर उनका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास कर श्रेष्ठ भारतीय बनाने का कार्य कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप ही स्वयं सेवकों ने हर क्षैत्र मे कदम रखा है जिसके उदाहरण डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी जैसे लाखो राष्ट्र भक्त राजनेताओं की कार्य प्रणाली में प्रकट होता है। देश के प्रथम प्रधान मंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने संघ के राष्ट्रवादी कार्यों को देखते हुए गणतंत्र दिवस पर संघ को परेड मे भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था।आरएसएस की विचारधारा हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर आधारित है। संगठन का मानना है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इसकी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना आवश्यक है। आरएसएस ने हमेशा से ही भारत की एकता और अखंडता के लिए काम किया है। आरएसएस का उद्देश्य भारत को एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र बनाना है।संघ के कुछ उल्लेखनीय कार्य:1962 का युद्ध,कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय,कश्मीर का विलय,1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली,गोवा का विलय,आपातकाल(1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है),भारतीय मज़दूर संघ,ज़मींदारी प्रथा का अंत,सेवा कार्य में संघ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। संघ ने महिलाओ को अपने विचारो से जोड़ने के लिए राष्ट्र सेविका समिति और दुर्गा वाहिनी को अनुषंगी संगठन के रूप मे खड़ा कर नारी शक्ती का सम्मान किया है। संघ की विचार धारा को राजनेतिक क्षैत्र मे प्रतिपादित करने के लिए पहले जनसंघ अब भारतीय जनता पार्टी, छात्र वर्ग मे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) मजदूर वर्ग मे भारतीय मजदूर संघ और कृषकों मे भारतीय किसान संघ, शिक्षा के क्षैत्र मे विद्या भारती, सेवा क्षैत्र मे सेवा भारती, सहित विभिन्न वर्गो के लोगो को जोड़ कर कार्य किया जा रहा है इनमे विश्व हिन्दू परिषद वन वासी कल्याण परिषद, धर्म जागरण संगठन प्रमुख है

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version