लोन लेने वालों के लिए इसका क्या मतलब है?
मुंबई,, दिव्यराष्ट्र/ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अप्रैल 2025 में गोल्ड लोन को लेकर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की थीं। इसका मकसद वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित कर, सेक्टर की सेहत को लंबी अवधि तक मजबूत करने के साथ साथ सिस्टम से जुड़े जोखिमों को कम कर उपभोक्ताओं के हितों की भी रक्षा भी करना था। लेकिन ये गाइडलाइंस दक्षिण भारत के कई राज्यों में विरोध का कारण बन गईं। किसानों, छोटे कारोबारियों और आम लोगों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे उन्हें प्राइवेट साहूकारों से ऊंचे ब्याज दर पर गोल्ड लोन लेना पड़ेगा।
बढ़ते विरोध के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी लिखी और आरबीआई से गाइडलाइंस पर दोबारा विचार करने की अपील की। उन्होंने लिखा कि ये नियम खासतौर पर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों के लोन लेने वालों पर बुरा असर डाल सकते हैं, जो गोल्ड लोन पर काफी निर्भर हैं। इसके बाद वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले फाइनेंशियल सर्विसेज विभाग (डीएफएस) ने आरबीआई को इन गाइडलाइंस पर अपनी प्रतिक्रिया भेजी।
आरबीआई के मसौदे में कुछ बड़े बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं – जैसे सोने की शुद्धता का सर्टिफिकेट अनिवार्य करना, गिरवी रखे गए सोने की मिल्कियत (ऑनरशिप) साबित करने के लिए कागजी प्रक्रिया को सख्त बनाना, सोने के तय रूप ही लोन के लिए मान्य रखना, और लोन लिए पैसे के खर्च की निगरानी करना। इसके जवाब में डीएफएस ने सुझाव दिया कि 2 लाख रुपये से कम के गोल्ड लोन लेने वालों को इन नियमों से छूट मिलनी चाहिए। DFS के मुताबिक यह छूट ज़रूरी है ताकि कम आय वाले परिवारों, महिलाओं, किसानों और छोटे कारोबारियों को समय पर और आसान तरीके से लोन मिल सके, खासकर जब उन्हें अचानक पैसों की जरूरत हो।
भारत में सोने को हमेशा खास महत्व मिला है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय परिवारों के पास करीब 25,000 टन सोना है – जो दुनिया के टॉप 10 केंद्रीय बैंकों के कुल रिजर्व से भी ज्यादा है। ये सिर्फ मूल्य नहीं, बल्कि विरासत, परंपरा, प्यार और सुरक्षा का प्रतीक है।
कई पीढ़ियों से, गोल्ड लोन ज़रूरत के समय भरोसेमंद और आसानी से मिलने वाला क़र्ज़ रहा है – चाहे वह इलाज के लिए हो, पढ़ाई के लिए, छोटे कारोबार के लिए या खेती के मौसम के लिए। अब जब गोल्ड लोन सेक्टर में बदलाव की तैयारी हो रही है, तो ज़रूरी है कि आरबीआई के ड्राफ्ट को जमीनी और ग्राहक की नज़र से देखा जाए।
तो आरबीआई के ड्राफ्ट में क्या प्रस्ताव रखे गए हैं? और वित्त मंत्रालय ने 2 लाख रुपये तक उधार लेने वालों को छूट क्यों सुझाई है?
मिल्कियत साबित करने की ज़रूरत*
ड्राफ्ट का एक बड़ा प्रस्ताव यह है कि उधार लेने वालों को यह साबित करना होगा कि जो सोना गिरवी रख रहा है, वह उसी का है। लेंडर को भी यह जांचना और दस्तावेज़ रखना होगा। अगर मिल्कियत (ऑनरशिप) संदिग्ध हो तो लोन नहीं दिया जाएगा। इसका मकसद धोखाधड़ी रोकना है, लेकिन आम लोगों के लिए यह एक चुनौती है। ज्यादातर भारतीय घरों में सोना पीढ़ियों से चला आता है। पुराने जेवरों के बिल या कागज़ अक्सर नहीं होते। आरबीआई ने भले ही डिक्लेरेशन की इजाजत दी है, लेकिन वह कैसे मान्य होगा – ये साफ नहीं है। इससे बहुत से उधार लेने वाले जेनुइन लोग बाहर हो सकते हैं।
शुद्धता का सर्टिफिकेट अनिवार्य*
अब लोन देने से पहले लेंडर को एक डिटेल्ड सर्टिफिकेट देना होगा, जिसमें सोने की शुद्धता, वज़न, कटौती, फोटो और मूल्य जैसी जानकारियां होंगी। ये पारदर्शिता बढ़ाने और झगड़े कम करने के लिए है, लेकिन इससे दस्तावेज़ी काम बढ़ेगा, जिससे लोन मिलने में देरी हो सकती है।अक्सर गोल्ड लोन इमरजेंसी में लिया जाता है – ऐसे में देरी उधार लेने वालों को मुश्किल में डाल सकती है।
कौन-सा सोना मान्य होगा*
आरबीआई ने साफ किया है कि सिर्फ जेवर, 1 किलो तक के आभूषण और बैंकों द्वारा जारी 22 कैरेट से ऊपर के गोल्ड कॉइन (50 ग्राम तक) ही मान्य होंगे।ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में लोग जो भी सोना हो, वही गिरवी रखते हैं – जैसे कोई बर्तन या उपहार में मिले सिक्के। ये प्रस्ताव इस विकल्प को सीमित कर सकते हैं और लोगों को फिर से अनौपचारिक कर्ज़ की ओर धकेल सकते हैं।