मुंबई के नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल में 11 वर्षीय बच्चे का सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट, बहन के स्टेम सेल से मिली जिंदगी
मुंबई, दिव्यराष्ट्र*: इस रक्षाबंधन पर एक बहन ने सिर्फ राखी नहीं बाँधी, बल्कि अपने भाई को जीवन का अनमोल उपहार दिया। मुंबई के नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल में यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते का ही नहीं, बल्कि साहस, त्याग और जीवनदान का प्रतीक बन गया।
अस्पताल के पीडियाट्रिक वार्ड में एक नन्ही बहन ने अपने 11 वर्षीय भाई की कलाई पर राखी बाँधी—यह सिर्फ परंपरा का पालन नहीं था, बल्कि उस जीवन के प्रति आभार था जिसे उसने अपने स्टेम सेल दान कर बचाया था।
बचपन से ही कॉमन वैरिएबल इम्यून डिफिशिएंसी (सीवीआईडी-) नामक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से जूझ रहे इस बच्चे के फेफड़े बुरी तरह प्रभावित थे। वह लगातार संक्रमणों से लड़ता रहा और हर महीने इम्युनोग्लोब्युलिन इंजेक्शन पर निर्भर था। डॉक्टरों के अनुसार, पूरी तरह ठीक होने की उसकी एकमात्र उम्मीद थी बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी)—एक बेहद जटिल और जोखिम भरी प्रक्रिया।
परिवार के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था जब जांच में पता चला कि उसकी बहन 100% एचएलए मैच है—जो बेहद दुर्लभ होता है। अपनी उम्र से कहीं अधिक साहस दिखाते हुए उसने भाई के लिए स्टेम सेल डोनेट किए और ‘रक्षा’, ‘प्यार’ और ‘निस्वार्थ समर्पण’ के असली अर्थ को जी लिया।
नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी, हीमेटो-ऑन्कोलॉजी और बीएमटी विशेषज्ञ डॉ. चिन्तन व्यास और उनकी मल्टीडिसिप्लिनरी टीम की देखरेख में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। पूर्व संक्रमणों और फेफड़ों की क्षति के कारण मामला चिकित्सकीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था। साथ ही, यह भावनात्मक रूप से भी संवेदनशील था, क्योंकि बच्चे की परवरिश एक सिंगल मदर द्वारा की जा रही थी। आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, अस्पताल ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और दानदाताओं की मदद से सुनिश्चित किया कि परिवार को इलाज के लिए हर संभव सहयोग मिले।
सटीक प्री-ट्रांसप्लांट प्लानिंग, संक्रमण नियंत्रण और पल्मोनोलॉजी विशेषज्ञों के सहयोग से प्रक्रिया सहज और सफल रही। न तो आईसीयू में भर्ती की जरूरत पड़ी, न कोई गंभीर जटिलता हुई। कुछ ही हफ्तों में बच्चा संक्रमण-मुक्त होकर बेहतर स्वास्थ्य के साथ डिस्चार्ज हुआ। छह महीने बाद वह इम्युनोग्लोब्युलिन थेरेपी से पूरी तरह मुक्त है, फेफड़े काफी हद तक ठीक हो चुके हैं और वह अब सामान्य बच्चों की तरह पढ़ाई, खेलकूद और स्वस्थ जीवन जी रहा है।
डॉ. चिन्तन व्यास ने कहा, “यह सिर्फ चिकित्सकीय सफलता नहीं, बल्कि अद्भुत साहस, निस्वार्थ प्रेम और उम्मीद की प्रेरणादायक कहानी है—एक ऐसा बालक जिसने जानलेवा बीमारी से मुकाबला किया, एक अकेली मां जिसने आर्थिक संघर्षों के बावजूद हार नहीं मानी, और एक बहन जिसने निःस्वार्थ होकर जीवनदान दिया। यह हमें याद दिलाता है कि समय पर इलाज और सहयोग मिल जाए तो सीवीआईडी जैसी दुर्लभ और गंभीर बीमारी भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट से पूरी तरह ठीक हो सकती है।”
डॉ. ज़ुबिन परेरा, फैसिलिटी डायरेक्टर, नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, “यह मामला मल्टीडिसिप्लिनरी केयर, अत्याधुनिक चिकित्सा उपचार और परिवार की अटूट प्रतिबद्धता की शक्ति को दर्शाता है। यह उदाहरण है कि जब संकल्प और चिकित्सा उत्कृष्टता मिलते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। हमें गर्व है कि हम इस बच्चे को जीवन की एक नई शुरुआत देने में सहभागी बने।”
इस रक्षाबंधन, उसकी कलाई पर बंधी राखी सिर्फ प्यार का धागा नहीं थी—वह साहस, जीवन और उस भविष्य की प्रतीक थी जिसे कभी असंभव माना गया था।