कोलकाता, दिव्यराष्ट्र/ मानवता और चिकित्सा कौशल की अद्भुत मिसाल पेश करते हुए मणिपाल हॉस्पिटल ब्रॉडवे के डॉक्टरों की समर्पित टीम ने एक 16 वर्षीय किशोरी को मृत्यु के मुंह से वापस ला दिया। यह किशोरी, जो एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है और अपने रिश्तेदारों के साथ रहती थी, 19 मार्च की रात को एक इमारत की छत से गिर गई थी और गंभीर हालत में अस्पताल लाई गई थी।
जब उसे अस्पताल लाया गया, वह कोमा में थी। उसके शरीर का रक्त अम्लीय हो चुका था, दिल की धड़कन लगातार गिर रही थी, रक्तचाप अत्यंत कम था और शरीर में कई जगह फ्रैक्चर व अंदरूनी चोटें थीं। अस्पताल के इमरजेंसी विभाग ने तुरंत सक्रिय होकर इलाज शुरू किया, इस पूरी प्रक्रिया का नेतृत्व डॉ. सुस्रुत बंद्योपाध्याय, प्रमुख – आईसीयू और क्रिटिकल केयर विभाग ने किया।
एक दिन के इलाज के बाद जब परिवार आर्थिक रूप से असमर्थ हो गया, तब मणिपाल हॉस्पिटल ब्रॉडवे ने आगे आकर इलाज का खर्च वहन किया, और मणिपाल फाउंडेशन ने भी सहयोग प्रदान किया। सबसे पहले उसकी जांघ की हड्डी (फीमर) की सर्जरी की गई, जिससे संक्रमण फैलने से रोका जा सके और रक्तस्राव नियंत्रित किया जा सके। इसके बाद हाथ की टूटी हुई हड्डी (ह्यूमरस) की सर्जरी की गई, जिसे डॉ. सोहम मंडल, सलाहकार – ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट्स द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न किया गया।
लगातार नौ दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद, किशोरी को धीरे-धीरे सामान्य बेड पर शिफ्ट किया गया और अंततः 5 अप्रैल, शनिवार को स्वस्थ होकर अस्पताल से छुट्टी दी गई, जिससे उसके परिवार और चिकित्सा टीम में खुशी की लहर दौड़ गई।
डॉ. सुस्रुत बंद्योपाध्याय ने कहा, “जब यह बच्ची हमारे पास लाई गई, वह कोमा में थी, रक्तचाप बहुत कम था, शरीर में गंभीर अम्लता थी और कई अंगों के फेल होने के संकेत मिल रहे थे। फीमर और ह्यूमरस जैसी मुख्य हड्डियों में फ्रैक्चर था और गर्दन में भी चोट थी जो कभी भी बिगड़ सकती थी। हमें पता था कि समय बहुत कम है। पहले 48 घंटे हमने केवल उसकी हालत स्थिर करने पर ध्यान केंद्रित किया—सांस की सहायता, अम्लता नियंत्रित करना और अंगों को काम करने लायक बनाए रखना। यह हमारे लिए केवल एक मरीज नहीं थी, बल्कि एक बच्ची थी जिसकी पूरी जिंदगी बाकी है। आर्थिक चुनौतियों के बावजूद इलाज जारी रखने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया। उसे वेंटिलेटर से हटते देखना और फिर से सांस लेते देखना मेरे करियर का सबसे सुकून देने वाला पल था।”
डॉ. सोहम मंडल ने कहा, “जब मैंने उसकी एक्स-रे रिपोर्ट देखी, तो मैं चौंक गया—उसकी दाईं जांघ की हड्डी, जो शरीर की सबसे मजबूत हड्डी होती है, टूटी हुई थी और दोनों हाथों की हड्डियाँ भी टूट चुकी थीं। हमने तुरंत हस्तक्षेप किया। यह केस सिर्फ तकनीकी नहीं, भावनात्मक रूप से भी चुनौतीपूर्ण था—क्योंकि वह सिर्फ 16 साल की एक बच्ची थी जिसने उम्मीद छोड़ दी थी। डिस्चार्ज के दिन उसकी मुस्कान ने हमें याद दिलाया कि हम डॉक्टर क्यों बने थे। यह सिर्फ एक केस नहीं था, यह एक नई शुरुआत थी—उसके लिए, और हमारे लिए भी।”
डॉ. अयनाभ देबगुप्ता, रीजनल सीओओ, मणिपाल हॉस्पिटल्स (ईस्ट) ने कहा, “मणिपाल में हमारा मानना है कि किसी भी जीवन को सिर्फ आर्थिक कारणों से नहीं खोना चाहिए। जब हमें इस बच्ची की जानकारी मिली—जो कोमा में थी, कई फ्रैक्चर थे और उसके इलाज का खर्च उठाने वाला कोई नहीं था—तो हमने तुरंत निर्णय लिया। यह सिर्फ एक मेडिकल इमरजेंसी नहीं थी, यह एक मानवीय संकट था। मणिपाल फाउंडेशन और हमारी अस्पताल टीम के समर्थन से हमने सुनिश्चित किया कि इलाज समय पर हो और पूरा हो। सबसे महत्वपूर्ण बात थी—एक जीवन को बचाना, उसकी गरिमा लौटाना और उसे भविष्य देना। उसे बैठा देखना और जानना कि उसे दूसरा मौका मिला है—यही कारण है कि हम यह काम करते हैं।”