(उमेन्द्र दाधीच)
पहलगांव में हुए नृशंस हत्या कांड के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए प्रारंभिक कदम को भले ही हम सैन्य कार्यवाही या बल शक्ति का प्रयोग नहीं माने लेकिन इस वर्ष 1960में हुई जल संधि को स्थगित कर भारत नहीं पाकिस्तान की कमर तोड़ने वाले कदम उठाया है। इस कार्यवाही का पाकिस्तान किस प्रकार से विरोध करेगा यह तो अभी दूर की कोड़ी है लेकिन पाकिस्तान अपने मित्र चीन के द्वारा भारत को मजबूर करने की कोशिश कर सकता है क्योंकि चीन से तीन दर्जन से ज्यादा नदियों का जल भारत आता है वहीं भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान के हिस्से वाले जल को स्टोर करने की अभी कोई व्यवस्था भी नहीं है ऐसी स्थिति में जल समझौता स्थगित करने का भारत किस प्रकार से मुकाबला करेगा यह भी एक चुनौती है। वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच भारत-पाक जल संधिहुई (इंडस वाटर्स ट्रीट) दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐसा समझौता है, जिसे आज भी विश्व के सबसे सफल जल-साझा समझौतों में गिना जाता है। यह संधि 19 सितंबर 1960 को पाकिस्तान के कराची शहर में हस्ताक्षरित हुई थी। इसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में तैयार किया गया था।
इस संधि पर
हस्ताक्षरकर्ता: के रूप में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान थे।
कराची,( पाकिस्तान) में हुए इस समझौते को लेकर भले ही मतभेद रहे लेकिन कभी भी स्थगित या रद्द करने की कोशिश नहीं हुई।
इस समझौते के मध्यस्थ विश्व बैंक (तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक) रहे है।
इंडस जल संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों को दो भागों में बांटा गया: इनमें
पश्चिमी नदियाँ (पाकिस्तान को):
सिंधु,झेलमचिनाब, और
पूर्वी नदियाँ (भारत को): दी गई इनमें
सतलुज,ब्यास,रावी, का जल भारत के लिए रखा गया।
भारत को पूर्वी नदियों के जल का पूर्णाधिकार मिला, जबकि पश्चिमी नदियों पर पाकिस्तान का प्राथमिक अधिकार माना गया। भारत को इन नदियों के पानी का सीमित उपयोग (सिंचाई, घरेलू उपयोग, और जलविद्युत उत्पादन के लिए) की अनुमति है, लेकिन पानी को मोड़ना या रोकना नही।
1947 में भारत-विभाजन के बाद सिंधु घाटी की नदियाँ दो देशों में बँट गईं, जिससे जल बंटवारे को लेकर तनाव गहराने लगा। 1948 में भारत द्वारा रावी और सतलुज का पानी रोके जाने के बाद स्थिति गंभीर हो गई। इसी पृष्ठभूमि में विश्व बैंक की पहल पर बातचीत शुरू हुई, जो आठ वर्षों तक चली।
यह संधि अभी तक , भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार उठते तनाव के बावजूद, प्रभावी रूप से लागू रही वर्ष 1960के बाद पहली बार23अप्रैल 2025को भारत ने सख्त कदम उठाया है।
यह संधिअभी तक अंतरराष्ट्रीय विवाद समाधान का एक आदर्श उदाहरण मानी जाती है।
इस समझौते को लेकर
पाकिस्तान ने कई बार शिकायतें भी की है।पाकिस्तान का आरोप है कि भारत कई बार नियमों की आड़ में परियोजनाएं बनाकर पानी रोकने की कोशिश करता है, जैसे कि किशनगंगा और रैटल परियोजना। इस पर भारत का कहना है कि वह संधि की सभी शर्तों का पालन करता है और परियोजनाएं जलविद्युत के लिए हैं, न कि जल मोड़ने के लिए।
इस संधि को लेकर भारत में कई नेताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को संधि को पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि यह एकतरफा और पाकिस्तान-हितैषी है।
वर्ष 2023 में भारत ने विश्व बैंक को पत्र लिखकर संधि के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति दर्ज की थी और पुनरावलोकन की मांग की थी। वहीं, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में मुद्दे को ले जाने की कोशिश कर रहा है।
भारत-पाक जल संधि एक ऐसे समय में बनी जब दोनों देश युद्ध जैसे हालात में थे। यह संधि इस बात का प्रमाण है कि कूटनीति और संवाद से जटिल मुद्दों को सुलझाया जा सकता है। लेकिन, बदलते भू-राजनीतिक हालात और जल संकट के मद्देनज़र इसकी प्रासंगिकता और नीतिगत संतुलन पर फिर से विचार करना आवश्यक हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि”जल, दक्षिण एशिया में अगला संघर्ष का कारण बन सकता है – लेकिन यह सहयोग का पुल भी बन सकता है।”