असुरक्षित हिन्दू आस्था, शासन प्रशासन को रक्षात्मकता से दंडात्मकता कार्यवाही की ओर बढ़ाना होगा

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(दिव्यराष्ट्र के लिए लेखाराम बिश्नोई लेखक व विचारक)

पिछले कुछ वर्षों से देश की राजधानी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय कि रामनवमी उत्सव की पूजा बाधित करने से लेकर जैसलमेर के सीमान्त गांव बासनपीर की ऐतिहासिक छतरियों को 2019 में तोड़-फोड़ से लेकर वर्तमान में पुनर्निर्माण में बाधा तक से करोड़ों हिन्दुओं की भावना से खिलवाड़ करने के साथ पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, झारखंड और राजस्थान के भजन कीर्तन के साथ निकाली गई शोभायात्रा पर पथराव करने तथा आगजनी की घटनाएं चिंताजनक व हिन्दू आस्था को असुरक्षित करती है। राजस्थान के करौली, उदयपुर, जोधपुर,भीलवाड़ा हनुमानगढ़ और जैसलमेर की घटनाएं इसी मानसिकता के लोगों ने हिन्दुओं में भय और असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने के लिए की ऐसा लग रहा है। राज्य सरकारों द्वारा षड्यंत्र करने वालों के साथ में रक्षात्मक नीति द्वारा एक तरह से हौसला अफजाई करता है। पुलिस प्रशासन को इस तरह की घटनाओं को कारित करने और षडयंत्र करने वालों के खिलाफ रक्षात्मकता की जगह दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। जिससे भविष्य में घटनाओं की पुनरावृत्ति पर रोक लगा सके। इन घटनाओं पर वर्ग विशेष का समर्थन करने या मोन रहने वालों का तर्क है, कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में शोभा यात्रा या धार्मिक यात्रा नहीं निकालना चाहिए। परंतु जैसलमेर जिले के बासनपीर गाँव की घटना जिस स्थान पर घटित हुई। वहां रियासतकालीन वीर योद्धाओं रामचंद्र जी सोढ़ा एवं हदूद जी पालीवाल की स्मृति में बनी छतरियाँ जो हमारे इतिहास, बलिदान और गौरव की प्रतीक थीं। उन्हें 2019 में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा ढहा दिया गया था। अब कई वर्षों के संघर्ष और प्रयासों के बाद जब इन छतरियों के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ, तो वही कट्टर मानसिकता दोबारा जागी और जम्मू कश्मीर की पत्थरबाजी की तर्ज पर मुस्लिम बच्चों और महिलाओं को आगे करके न केवल निर्माण रोकने का दुस्साहस किया, बल्कि आम नागरिकों सहित पुलिस-प्रशासन पर हमला कर कई लोगों को लहूलुहान कर दिया। कुछ समय पूर्व जोधपुर के भोपालगढ़ क्षेत्र में ओरण, गोचर पर कब्जा करने का भी प्रयास किया गया।
सच तो यह है। कि इसी आधार पर जम्मू कश्मीर में हिन्दू मुक्त राज्य करने में सहायता का एकमात्र तरीका शुरुआती दौर में यही रहा है। हिंदुओं को और उनके स्थानों को चयनित करके हिंसा को बढ़ावा दिया गया। शासन और प्रशासन को समय रहते हुए कार्यवाही और आवश्यक कदम उठाने चाहिए थे। हालिया हिंसक घटनाक्रम और भारत-हिन्दू विरोधी वातावरण इसके उदयकाल से खून चूसने वाले जोक की भांति चिपका। तुष्टीकरण या रक्षात्मकता का दर्शन स्वभाविक बनता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में जो क्षेत्र मुस्लिम है। जहां मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत या उससे अधिक है। वहां हिंदू और गैर मुसलमानों का जीवन अत्यंत कठिन है। रक्तरंजित और दुखद विभाजन के पश्चात पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो हिंदू आबादी क्रमशः 20 और 30 प्रतिशत थी। वह आज फिर 75 वर्ष पश्चात 2 और 8 प्रतिशत के नीचे पहुंच गई है। खरगोन, राष्ट्रीय राजधानी के विश्वविद्यालय, करौली जोधपुर, जैसलमेर की हिंसा पर अधिकांश वही जमात चुप्पी साधे बैठा है या फिर खाना पूर्ति हेतु निंदा कर रहा है। कोई ठोस कार्रवाई करने से बच रहा है। यही कारण है, कि घटनाओं की पुनरावृति हो रही है। शासन प्रशासन को कठोर कार्रवाई कर ऐसी ही सब घटनाओं की पुनरावृति पर ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।
यह कटु सत्य है। कि हिन्दू समाज शताब्दियों से मजहबी असहिष्णुता का शिकार हो रहा है। और आज शताब्दियों बाद भी हिन्दू उन क्षेत्रों में सर्वाधिक असुरक्षित है। जहां पहले कभी हिन्दू मूल बहुल में रहा है। ऐसा नहीं है, कि भारतीय समाज में पराक्रम और संघर्ष तथा वीरता की क्षमता का अभाव रहा। चिंता का मुख्य कारण तो यह है, कि समाज के एक वर्ग में चैतन्य की कमी रही है। इस पृष्ठभूमि में रही सही कसर रक्षात्मक कार्यवाही, तुष्टिकरण और सेकुलर वादी, भारत-हिन्दूविरोधी मानसिकता पूरी कर रही है।

लेखाराम बिश्नोई
लेखक व विचारक

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