समारोह, राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े और देवेन्द्र ब्रह्मचारी ने दी विनयांजलि ।
मुंबई,, दिव्यराष्ट्र/ मुंबई महानगरी में तीर्थंकर भगवान महावीर की अक्षुण्ण परंपरा के महान संत, युग श्रेष्ठ, मूकमाटी रचियता और मम गुरुसंत शिरोमणि प. पू. आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के प्रथम समाधि दिवस के अवसर पर स्मरणांजलि समारोह भव्य और श्रद्धा से भरपूर समारोह आयोजित किया गया। इस आयोजन में जैन समाज के तमाम प्रमुख व्यक्तित्वों ने भाग लिया और आचार्य श्री के जीवन और उनके योगदान को विनयांजलि अर्पित की। योगी सभागार मुंबई में उमड़े भक्तजन और जनसैलाव ने इस बात को सिद्ध कर दिया कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के भक्ति में मुंबई समाज किसी से पीछे नहीं है।
कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े द्वारा आचार्य विद्यासागर के फोटो के लोकार्पण व दीप प्रज्वलन के साथ की गई।
संत देवेन्द्र ब्रह्मचारी के प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में महावीरयातन फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस आयोजन के मुख्य अतिथि हरिभाऊ बागड़े, राज्यपाल, राजस्थान रहे। साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य , फिल्म अभिनेता पद्मश्री मनोज जोशी , अभिनेता नितिन देसाई , श्री के सी जैन (सी ए), अध्यक्ष-खण्डेलवाल दि. जैन सभा, मुंबई तरुण जैन काला, गुरुभक्त एवं उद्योगपति, और आचार्य श्री विद्या सागर महाराज के शिष्य बाल ब्रह्मचारी अशोक भैया,गुरु भक्त प्रशांत जी उपस्थित थे।
राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने आचार्य श्री विद्यासागर को विनयांजलि देते हुए कहा, “आचार्य श्री का जीवन सत्य, अहिंसा, और आत्मज्ञान की दिशा में अडिग था। उनका योगदान न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए अनुपम है। उनकी दी हुई शिक्षाएँ हमें समाज में शांति, अहिंसा, और समर्पण के मूल्य सिखाती हैं।” राज्यपाल ने आयोजन के सूत्रधार देवेन्द्र ब्रह्मचारी को सुन्दर आयोजन के लिए धन्यावाद भी दिया और कहा कि आज के युग में एसे गुरुभक्त कम ही मिला करते है जो अपना सब कुछ त्याग कर देश और समाज के लिए आगे आते हैं
श्रद्धेय देवेन्द्र ब्रह्मचारी अपने गुरुदेव आचार्य श्री को याद कर भावुक होते हुए कहा कि गुरु का नाम मात्र लेने से मन भावुकता से भर आता है। ब्रह्मचारी जी ने उनके दीक्षा मार्ग, साधना, और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “आचार्य श्री ने अपने जीवन को साधना और समाज सेवा के लिए समर्पित किया। उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार करने के लिए कई कार्य किए। परम पूज्य गुरुदेव इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए, लेकिन उनका जीवन, उनकी शिक्षाएँ और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग की रोशनी आज भी हमारे दिलों में जीवित है। उनका जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।”
कार्यक्रम के दौरान, संत शिरोमणी गुरु विद्या सागर के महान ग्रंथ मूकमाटी का विमोचन और भारत गौरव पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने आचार्य श्री के कार्यों और उनके समाज सेवा के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा, “आचार्य श्री का योगदान समाज के हर वर्ग के लिए था, उन्होंने हमें यह सिखाया कि हमारे जीवन का उद्देश्य सिर्फ आत्म-उन्नति नहीं, बल्कि समाज के लिए काम करना है।”
कार्यक्रम में खण्डेलवाल दि. जैन सभा, मुंबई के अध्यक्ष के सी जैन, उद्योगपति तरुण जैन काला, और जैन साधक अशोक भैया ने भी आचार्य श्री की शिक्षाओं और उनके जीवन को याद करते हुए अपने विचार साझा किए।
आचार्य श्री विद्यासागर का जीवन केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। उन्होंने भारतीय संस्कृति, साहित्य, शिक्षा, गौशाला, और हथकरघा उद्योग के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी लिखित काव्य रचनाएं, जैसे “मूक माटी,” आज भी भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती हैं।
आचार्य श्री के योगदान से ही कई गोशालाओं का निर्माण हुआ, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हुए और समाज में नए सामाजिक आदर्श स्थापित हुए। उनकी शिक्षाओं ने भारत में एकजुटता और भाईचारे को बढ़ावा दिया।
कार्यक्रम के सफल आयोजन में कई सहयोगियों का अहम योगदान रहा है, जिनके निरंतर प्रयासों और समाजसेवा से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।